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ललिता जयंती पर होती है राधा रानी की सबसे प्रिय सखी की पूजा, जानिए क्या है पौराणिक महत्व

हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण और राधा को प्रेम का प्रतीक माना गया है। स्थानीय किवदंतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी की धुन पर राधा रानी के साथ-साथ गांव की अन्य गोपियाँ (सखी या मित्र) भी मोहित थीं, जो कान्हा की मुरली पर नृत्य करने लगती थीं। इन सभी गोपियों ने मन ही मन श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व माना हुआ था लेकिन इनमें आठ गोपियां ऐसी थीं जो राधा रानी की सखी थीं और हमेशा उनके साथ रहती थीं। ये सभी गोपियां श्री कृष्ण को राधा रानी की तरह ही प्रेम करती थीं और भगवान कृष्ण भी इन्हें अपने हृदय के करीब रखते थे। इन सभी गोपियों के नाम ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंग देवी, तुंगविद्या और सुदेवी है। जिनमें से ललिता और विशाखा को श्री राधा जी की प्रमुख सखी माना जाता है और इनका वर्णन हर उस ग्रंथ में भी मिलता है जहां कृष्ण प्रिया राधा का वर्णन होता है। राधा जी की इन्हीं परम सखियों में से एक ललिता की जन्मतिथि को ललिता जयंती के नाम से जाना जाता है और इनका जन्मदिन राधा रानी से ठीक एक दिन और श्री कृष्ण जी के जन्म के 2 हफ्ते बाद मनाया जाता है। आइए जानते हैं ललिता के बारे में सारी जानकारी विस्तार से…..


क्या है ललिता सप्तमी ? 


ललिता सप्तमी का त्योहार संतान सप्तमी के दिन यानी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। ये पर्व ललिता देवी को समर्पित है और इस दिन सभी लोग ललिता देवी की पूजा अर्चना और व्रत करते हैं। ये त्योहार खास तौर पर बृज और बरसाने में मनाया जाता है। इस दौरान वृंदावन और ब्रज भूमि में के मंदिरों में ललिता देवी की विशेष पूजा की जाती है, कुछ स्थानों पर तो ऐसे भी मंदिर हैं जहां भगवान कृष्ण और राधा रानी के साथ विशाखा और ललिता नाम की दो सखियों की भी मूर्ति स्थापित है। 


इसके अलावा वृंदावन में एक ललिता कुंड भी स्थित है, जिसे प्रेम और समर्पण के मार्ग में आने वाली बाधाओं और रुकावटों को दूर करने वाला स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि ललिता सप्तमी पर व्रत और पूजा करने से विवाहित जोड़े लंबी आयु जीते हैं तथा उनके बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। इस त्योहार पर कृष्ण मंदिरों में जश्न जैसा माहौल होता है और राधा रानी के साथ ललिता देवी की कहानियां सुनाई जाती हैं।


ललिता सप्तमी का शुभ मुहूर्त और तिथि :


इस बार शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 9 सितंबर की रात्रि 11 बजकर 55 मिनट पर  शुरू होकर 10 सितंबर की रात्रि 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। ललिता सप्तमी का व्रत 10 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन दोपहर 3 बजकर 24 मिनट  से लेकर शाम 4 बजकर 58 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इस दिन पूजा करने का सही समय सुबह 9 बजकर 17 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।


ललिता सप्तमी का पूजा और व्रत कैसे करें?


 - ललिता सप्तमी का व्रत रख रहे लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

 - साफ और धुले वस्त्र पहनकर पूजा कक्ष में प्रवेश करें।

- पूजा स्थल को साफ करें और लाल कपड़ा बिछाकर उसपर कलश स्थापित करें जिसके मुंह पर आम के पत्ते रखे हों। फिर इसके ऊपर नारियल स्थापित करें।

- दीया जलाएं और फूल, अक्षत, पान, सुपारी और नैवेद्य चढ़ाएं। 

- सबसे पहले भगवान श्री गणेश का ध्यान करें। 

- इसके बाद गणेश महाराज, देवी ललिता, माता पार्वती, देवी शक्ति शिव और शालिग्राम की विधिवत तरीके से पूजा करें। 

- अब भगवान को हल्दी, चंदन, चावल, गुलाल, फूल, फल, नारियल, आंटी व प्रसाद चढ़ायें।

- इसके साथ ही देवी-देवताओं को प्रसाद के रूप में पंचामृत अर्पित करें।

- ललिता सप्तमी के दिन व्रज मंडल में व्रत संकल्प लेने के लिए खीर-पुरी के प्रसाद के साथ आटे और गुड़ से बने मीठे पुए का भोग लगाने की परंपरा है।

- भोग लगाने के बाद आरती करें।


व्रत के नियम :  


बता दें कि, ललिता सप्तमी का व्रत पूरे दिन का होता है, अर्थात 10 सितंबर को सूर्योदय से लेकर अगले दिन 11 सितम्बर के सूर्योदय तक आपको ये व्रत करना चाहिए। इसलिए कामकाजी महिलाओं और चिकित्सा समस्याओं वाले लोगों को इस उपवास को करने की सलाह नहीं दी जाती।उन्हें सिर्फ आज के दिन पूजा-पाठ और प्रार्थना ही करनी चाहिए। पूजा के अगले दिन व्रत पूरा होने पर घर वालों में और अपने आस-पड़ोस में इस प्रसाद को वितरित कर दें।


ललिता सप्तमी का महत्व :


ब्रह्मा वैवर्त पुराण के अनुसार, ललिता देवी के अपार स्नेह और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उन्हें यह वरदान दिया की वह राधा कृष्ण की अनन्य भक्त के रूप में पूजनीय होंगी। कहा जाता है कि ललिता सप्तमी का व्रत रखने से संतान सुख से वंचित विवाहित जोड़ों को गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान स्वस्थ और दीर्घायु होती है। मान्यता है कि जिन स्त्रियों का बार-बार गर्भपात होता है, उन्हें ललिता सप्तमी का व्रत रखना चाहिए। जो व्यक्ति श्री ललिता सप्तमी का व्रत करता है उसे राधा कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के पिछले जन्म के पापों का नाश होता है और बैकुंठ की प्राप्ति होती है। 


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शिव पूजा विधि

सर्वप्रथम पहले की तरह आचमन कर पवित्री धारण करे। अपने ऊपर और पूजा-सामग्री पर जल का प्रोक्षण करे।

श्री रुद्राष्टकम् , Sri Rudrashtakam

॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥ ॥ Shrirudrashtakam ॥
namaamishmishan nirvanarupam
vibhum vyapakam bramvedasvarupam .
nijam nirgunam nirvikalpam niriham
chidakashamakashavasam bhaje̕ham . 1.

श्री कृष्ण चालीसा ( Shri Krishna Chalisa)

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Durga Ashtottara Shatanama Stotram)

दुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र एक पवित्र हिंदू मंत्र या स्तोत्र है, जिसमें देवी दुर्गा के 108 नामों का वर्णन है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती के अंदर आता है और देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है।

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