विश्वकर्मा जयंती पर होती है मशीन और औजारों की पूजा, जानिए भगवान विश्वकर्मा की कथा समेत पूजा विधि और सही मुहूर्त

भाद्रपद मास जिसे हिंदू धर्म में त्योहारों का महीेने कहा जाता है अपने आप में एक विशिष्ट ऊर्जा और श्रेष्ठता से भरा हुआ महीना है। भाद्रपद शब्द में आने वाले भद्र शब्द का अर्थ होता है पवित्र या बहुत अच्छा जबकि पद शब्द को त्योहारों के रूप में देखा जाता है। इस तरह महीने के नाम का अर्थ ‘पवित्र त्योहारों का महीना होता है।’ जैसा की सभी जानते भी हैं कि इस माह में भगवान श्री कृष्ण और राधारानी के जन्मोत्सव समेत कई ऐसे त्योहार आते हैं जो अपने आप में परिपूर्ण होते हैं। वहीं भाद्रपद मास में एक विशिष्ट त्योहार ऐसा भी आता है जिसमें लोग अपने घर और मंदिर में नहीं बल्कि अपने कार्यस्थल, व्यावसायिक स्थान, कारखाने, मिल और कार्यालयों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और बड़े ही उमंग और उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं। इस त्योहार को हम विश्वकर्मा जयंती के नाम से जानते हैं। भक्तवत्सल के इस लेख में हम जानेंगे विश्वकर्मा जी से जुड़ी सभी कथाओं को विस्तार से, साथ ही जानेंगे कौन हैं भगवान विश्वकर्मा और क्या है इनकी पूजा करने की सही विधि …….



सबसे पहले जानते है कि कौन हैं देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा


भगवान विश्वकर्मा को अक्सर ब्रह्मदेव के सातवें पुत्र के रूप में पूजा जाता है। भगवान विश्वकर्मा को सृजन का देवता माना गया है और पौराणिक कथाओं में जिस भी नगर, अस्त्र-शस्त्र या राज्य के बारे में जिक्र मिलता है उसे ज्यादातर भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही तैयार किया गया होता है। कुछ ग्रंथों के मुताबिक विश्वकर्मा को भगवान शिव का अवतार भी बताया जाता है। वहीं ब्राह्मण और निरुक्त में उन्हें भुवन का पुत्र भी कहा गया है. जबकि महाभारत और हरिवंश के अनुसार वे वसु प्रभास और योग-सिद्ध के पुत्र हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्ण को तीन बेटियों का आशीर्वाद प्राप्त है, जिनके नाम बरहिष्मती, समजना और चित्रांगदा हैं। कुछ ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को ग्रिताची का पति बताया गया है।

शास्त्रों के अनुसार नारायण ने सबसे पहले ब्रह्माजी और विश्वकर्मा जी की रचना की थी। फिर ब्रह्माजी के निर्देश पर ही विश्वकर्मा जी ने पुष्पक विमान, इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारका और हस्तिनापुर, कलयुग में जगन्नाथ पुरी का निर्माण किया। इसके साथ ही प्राचीन शास्त्रों में वास्तु शास्त्र का ज्ञान, यंत्र निर्माण विद्या, विमान विद्या आदि के बारे में भी भगवान विश्कर्मा ने ही जानकारी प्रदान की है।



विश्वकर्मा पूजा का महत्व


सनातन धर्म में विश्वकर्मा पूजा का खास महत्व है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार में तरक्की होती है और निर्माण कार्य में होने वाली समस्या से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ कारखाने में बरकत होती है। विश्वकर्मा जयंती पर अपने काम के औजारों और अस्त्र-शस्त्र की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नौकरी व व्यापार में उन्नति के योग बनते हैं। कहा जाता है कि इस दिन मशीन, औजार और वाहन आदि की पूजा करने से वे औजार कभी बीच काम या वक्त बेवक्त खराब नहीं होते और आपके काम में आसानी बनी रहती है।



विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त 


इस साल विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर के दिन की जाएगी। इस दिन पूजा का अभिजीत मुहूर्त (किसी भी काम को करने के लिए सर्वेश्रेष्ठ मुहूर्त) सुबह 11 बजकर 51 मिनट से लेकर 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य देव संध्याकाल 07 बजकर 42 मिनट पर सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे । इस तिथि पर कन्या संक्रान्ति का क्षण भी बन रहा है जो संध्याकाल 07 बजकर 53 मिनट पर है। कन्या संक्रांति के दिन पुण्य काल दोपहर 12 बजकर 16 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 25 मिनट तक है। वहीं महा पुण्य काल शाम 04 बजकर 22 मिनट से 06 बजकर 25 मिनट तक है। यानी अगर आप इन कालों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं तो ये उच्च फल प्रदान करने वाली हो सकती है।



इस विधि से पूजा करने से हो सकता है धनलाभ


भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। ऐसे में अपने कार्यस्थल पर पूजा करते समय विश्वकर्मा जी का ध्यान करते हुए उनकी विधिवत पूजा करने से लाभ हो सकते हैं। विश्वकर्मा जयंति के दिन भगवान की पूजा के लिए - 


1. सुबह जल्दी उठकर अपने वाहन, औजार और अस्त्र-शस्त्रों को साफ करें, चाहें तो उनको पानी से धो भी सकते हैं।

2. इसके बाद स्वयं स्नान कर पूजा की थाली तैयार करें।

3. फिर अपनी नित्य कर्म पूजा के साथ भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति और कलश की स्थापना कर, धूप, सुपारी, पीली सरसों, अक्षत, माला, फूल, चंदन आदि सामग्री से उनकी पूजा करें।


इसके बाद अपने हाथ में फूल और अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें - 


ओम् आधार शक्तपे नम:
ओम् कूमयि नम:
ओम् अनंतम नम: 
ओम् पृथिव्यै नम:
ओम् श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नम:


फिर मंत्र पढ़ने के बाद हाथ में रखे अक्षत और फूल भगवान को अर्पित कर दें।


  • इसके बाद पीली सरसों को चार पोटलियों में बांधकर कार्यस्थल या ऑफिस की चारों दिशाओं में लटका दें या फिर उनको खोलकर कुछ जगहों पर छिड़क दें।


  • हाथ में मौली बांधें और भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए अपनी मशीन, वाहन, औजार इत्यादि की पूजन कर आरती कर लें।


  • प्रसाद बांटकर पूजा संपन्न करें और फिर अपने कार्यस्थल की तरफ रवाना हों।



तो इस तरह आप विश्वकर्मा जयंती के दिन देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा कर शुभ फल की प्राप्ति कर सकते हैं। इस लेख में इतना ही ऐसे ही और भी पूजाविधि और धार्मिक कथाओं या जानकारी के लिए जुडें रहिए भक्तवत्सल की वेबसाइट और सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ……


विश्वकर्मा जयंती के दिन कुछ जगहों पर पूजा के पहले शस्त्र और औजारों का उपयोग करना वर्जित होता है।


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श्री गणपति स्तोत्रम् (Shri Ganpati Stotram)

जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता
स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।

श्री शनि चालीसा

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ब्रह्माजी ने कहा कि हे मनिश्रेष्ठ ! गंगाजी तभई तक पाप नाशिनी हैं जब तक प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती। तीर्थ और देव स्थान भी तभी तक पुण्यस्थल कहे जाते हैं जब तक प्रबोधिनी का व्रत नहीं किया जाता।

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