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देश भर में गणपति बप्पा का आगमन हो चुका है और हर तरफ गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। लेकिन बप्पा के आगमन के साथ-साथ महिलाओं में गौरी के आगमन का भी उत्साह देखने को मिल रहा है। पौराणिक महत्व है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माता गौरी का आगमन पृथ्वी पर होता है और इस तिथि जिसे ज्येष्ठ गौरी आह्वानकहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती के एक रूप ज्येष्ठ गौरी की उपासना के लिए किया जाता है। यह आह्वान विशेष रूप से महाराष्ट्र और अन्य भारतीय राज्यों में मनाया जाता है। ज्येष्ठ गौरी आह्वान का अर्थ है माता पार्वती का आह्वान करना। इस वर्ष यह शुभ त्योहार 10 सितंबर से शुरू होगा और 12 सितंबर 2024 तक जारी रहेगा। आज भक्तवत्सल के इस लेख में जानते हैं ज्येष्ठ गौरी आह्वान की पौराणिक कथा और इसकी पूजा विधि को साथ ही जानेंगे माता गौरी की पूजा का शुभ मुहुर्त और इससे होने वाले व्रत के लाभ को भी…..
ज्येष्ठा गौरी आह्वान का शुभ मुहूर्त 10 सितंबर को सूर्योदय से लेकर संध्या 6 बजकर 27 मिनट तक है।
अवधि - 12 घण्टे 23 मिनट
राहू काल : दोपहर 3 से दोपहर 4 बजकर 30 मिनट तक होगा।
अनुराधा नक्षत्र प्रारंभ : 9 सितंबर को संध्या 6 बजकर 4 मिनट से
अनुराधा नक्षत्र समाप्ति : 10 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 3 मिनट तक होगा।
ज्येष्ठ गौरी पूजा: बुधवार, सितम्बर 11, 2024
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन: गुरूवार, सितम्बर 12, 2024
इस दिन गौरी अर्थात देवी पार्वती और गणपति की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी के दो या तीन दिन बाद देवी पार्वती का आह्वान किया जाता है। मान्यता के अनुसार इसी दिन कैलाश पर्वत से माता पार्वती धरती पर अवतरित हुईं थीं। यह ज्येष्ठ नक्षत्र के दौरान आता है, इसलिए इसे ज्येष्ठ गौरी आह्वान कहा जाता है। गजानन की ही तरह गौरी का भी उत्साह के साथ स्वागत होता है। भगवान गणेश की मूर्ति के साथ ज्येष्ठ गौरी की एक विशेष मूर्ति स्थापित की जाती है। इस समय फूलों और कलाकृतियों से सजावट की जाती है। बाजार में सुंदर और सुबक गौरी के मुखौटे मिलते हैं। इसमें शाडू, पीतल, कपड़ी, फाइबर जैसे कुछ प्रकार देखने को मिलते हैं। कुछ लोग केवल मुखौटों की पूजा करते हैं: जबकि कुछ लोगों के पास खड़ी गौरी यानी मूर्ति होती है। इस दिन भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा की जाती है। विवाहित महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की बेहतरी के लिए उपवास भी रखती हैं।
नोट: पूजा विधि में पारिवारिक पूजा विधि के तौर पर बदलाव किए जा सकते हैं।
महाराष्ट्र में गौरी के आगमन और पूजा की पद्धतियां अलग-अलग हैं। कोकण में कुछ स्थानों पर खुर्ची पर बैठी हुई गौरी देखने को मिलती है। इसके अलावा समुद्र या नदी से पत्थर लाकर पूजने की रीति भी है। कुछ स्थानों पर तांबे पर चेहरा बनाकर गौरी पूजन किया जाता है। प्रत्येक परिवार में अपनी-अपनी पद्धति से गौरी स्थापित की जाती हैं। मनोभाव से गौरी की स्थापना करके उनका पूजन किया जाता है। महाराष्ट्र में इस त्योहार को महालक्ष्मी पूजन भी कहा जाता है। इस दिन गौरी का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध व्यंजनों का नैवेद्य अर्पण किया जाएगा। विवाहित महिलाओं द्वारा तीन दिन व्रत और पूजा की जाती है। विशेष सजावट की जाती है और विवाहित महिलाएं उत्सव में भाग लेने के लिए अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को आमंत्रित करती हैं। हल्दी- कुमकुम समारोह इस त्योहार के महत्वपूर्ण आयोजन में से एक है। समारोह के बाद मेहमानों के बीच प्रसाद वितरित किए जाते हैं। कई स्थानों पर गौरी आगमन को माहेरवाशीणी भी कहा जाता है।
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