हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में भगवान विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मिलता है। इन्हीं में से तीसरा अवतार वराह अवतार के रूप में वर्णित है। वराह जयंती के अवसर पर इसी अद्भुत और दिव्य अवतार की स्मृति को मनाया जाता है। यह कथा धर्म, सत्य और सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान के अद्वितीय प्रयास का प्रतीक है। इस वर्ष यह पर्व 25 अगस्त को मनाया जाएगा।
प्राचीन काल में हिरण्याक्ष नामक एक अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस था। उसने अपने बल और अत्याचार से तीनों लोकों में उत्पात मचा दिया। अपने अभिमान में आकर उसने पृथ्वी को चुराकर गहरे समुद्र में छिपा दिया। इससे संपूर्ण सृष्टि संकट में पड़ गई और देवताओं सहित समस्त प्राणी भयभीत हो उठे।
देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वराह (जंगली सूअर) का रूप धारण किया। यह स्वरूप अत्यंत विशाल और दिव्य था। भगवान वराह ने समुद्र में प्रवेश कर पृथ्वी की खोज आरंभ की।
जब हिरण्याक्ष को पता चला कि भगवान विष्णु वराह रूप में समुद्र में प्रवेश कर चुके हैं, तो उसने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच एक भीषण और लंबा युद्ध हुआ। यह युद्ध धर्म और अधर्म के मध्य संघर्ष का प्रतीक था। भगवान वराह ने अपनी अद्भुत शक्ति और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से हिरण्याक्ष का वध कर दिया।
हिरण्याक्ष का वध करने के बाद भगवान वराह ने अपनी थूथनी पर पृथ्वी को उठाया और समुद्र से बाहर निकालकर पुनः ब्रह्मांड में उसकी स्थिर स्थापना की। यह कार्य न केवल पृथ्वी की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब-जब सृष्टि पर संकट आता है, भगवान स्वयं धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं।