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हिंदू धर्म में भगवान विष्णु त्रिदेवों में प्रमुख और सृष्टी के संचालक या पालनहार के रूप में पूजे जाते हैं। उन्होंने धरती पर अधर्म और अन्याय का नाश करने के लिए 10 अवतार लिए। जिनमें से एक अवतार है वामन अवतार। भगवान विष्णु ने भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभीजीत मुहूर्त यानि श्रवण नक्षत्र में वामन के रूप में अवतार लिया था। तभी से इस तिथि को वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल वामन जयंती 15 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के अनुयायी सच्चे मन से वामन देवता की पूजा करेंगे और उनके नाम का व्रत रखेंगे।
भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार त्रेतायुग में धारण किया था जो इस युग का पहला अवतार भी था। इसके पहले श्री हरि ने सतयुग में चार अवतार लिए थे और वे सारे अवतार पशु के रूप में थे जिनमें मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और सिंह अवतार के नाम शामिल हैं। अगर मनुष्य रूप में श्री हरि विष्णु के अवतार की बात की जाए तो वामन रूप में उनका ये पहला अवतार था। तो आइए भक्तवत्सल के इस वामन अवतार विशेष लेख में जानते हैं भगवान के पहले मनुष्य़ अवतार की पौराणिक कहानी को विस्तार से, साथ ही जानेंगे कि वामन जयंती कैसे मनाना चाहिए और पूजा विधि क्या है...
लेख में आगे बढ़ने से पहले ये जानना जरूर है कि आखिर भगवान विष्णु ने वामन अवतार क्यों लिया था। दरअसल, प्राचीन काल में राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर दिया था और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के घमंड को तोड़ने और उन्हें सबक सिखाने के लिए वामन अवतार में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने इस अवतार में माता अदिति के गर्भ से जन्म लिया था और उनके पिता ऋषि कश्यप थे। इसके बाद वे राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। जब राजा बलि ने भगवान से भिक्षा में कुछ मांगने को कहा तो श्री हरि ने तीन पग धरती मांगी जिसका संकल्प लेकर बलि ने दान देने के लिए स्वीकृती प्रदान कर दी। जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर लिया और दो ही पग में सारा ब्रह्माण्ड और पाताल नाप दिया। राजा बलि को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने भगवान से अपना तीसरा पैर अपने सिर पर रखने के लिए कहा।
वामन जयंती 2024 कब मनाई जाएगी
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन वामन जयंती मनाई जाती है। इस साल ये तिथि 15 सितंबर 2024 के दिन पड़ रही है। इस दिन लोग वामन देव के नाम का व्रत रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इस बार वामन जयंती यानी द्वादशी तिथि की शुरुआत 14 सितंबर की शाम को 8 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और इसका अंत 15 सितंबर 2024 को शाम को 6 बजकर 12 मिनट पर होगा। श्रवण नक्षत्र की बात करें तो इसकी शुरुआत 14 सितंबर को शाम 08 बजकर 32 मिनट पर होगी और इसका अंत 15 सितंबर 2024 को शाम 06 बजकर 49 मिनट पर होगा। वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है।
वामन जयंती के दिन उपासक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए।
नित्यक्रिया के बाद स्नान और भगावन विष्णु का ध्यान कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए।
इसके बाद वामन देव की सोने या फिर मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा करें।
वामन जयंती के दिन उपवास का भी विशेष महत्व बताया गया है, इसलिए भक्त भगवान विष्णु के अवतार वामन देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रख सकते हैं।
इस दिन पूजा करने का सबसे उत्तम समय श्रवण नक्षत्र होता है।
श्रवण नक्षत्र में भगवान वामन देव की वैदिक रीति-रिवाजों से पूजा संपन्न करें।
इस दौरान भगवान वामन देव की व्रत कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए।
कथा के समापन के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसादी वितरण करना चाहिए।
इसके बाद ही उपवास खोलना लाभकारी होगा।
ऐसा माना जाता है कि वामन जयंती पर चावल, दही और मिश्री का दान करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। वामन जयंती श्रवण नक्षत्र के दिन आती है, तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भक्त वामन देव की पूजा पूरे वैदिक विधि और मंत्रों के साथ करते हैं, तो उनके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है। अर्थात भगवान वामन अपने उपासकों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से वह आपके सारे दु:ख दर्द हर लेते हैं। इस दिन यदि आप विष्णु सहस्रनाम और भगवान विष्णु के 108 नामों का पाठ करते हैं, तो आप पर श्री हरि की कृपा बरसेगी।
1. व्रत का आरंभ: वामन जयंती व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रखा जाता है।
2. सुबह जल्दी उठना: व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
3. वामन देवता की पूजा: व्रत रखने वाले व्यक्ति को वामन देवता की पूजा करनी चाहिए और उन्हें पीले वस्त्र पहनाने चाहिए।
4. व्रत का पालन: व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए।
5. व्रत का पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।
6. दान और पुण्य: व्रत रखने वाले व्यक्ति को दान और पुण्य करना चाहिए, जैसे कि गरीबों को भोजन कराना और दान देना।
वामन अवतार कथा
प्राचीन काल में एक बलि नाम का दैत्य राजा था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपने बल और तप की बदौलत पूरे ब्रह्मांड पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त और अत्यन्त बलशाली बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग को भी जीत लिया था। तब इंद्र भगवान विष्णु के पास आए, और उन्होंने अपना राज वापस दिलाने की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने इंद्र को आश्वासन दिया कि वह इंद्र को स्वर्गलोक वापस दिलाएंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोग पर इंद्र के अधिकार को वापस दिलाने के लिए वामन अवतार लिया। उन्होंने ॠषि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया। राजा बलि भगवान विष्णु का परमभक्त तो था, लेकिन वह एक अभिमानी शासक भी था। राजा बलि ने हमेशा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया, उसने अपने पराक्रम की बदौलत तीनों लोकों को जीत लिया था।
एक दिन जब राजा बलि अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तब श्री हरि विष्णु वामन अवतार में उसके घर पहुंच गए। उस समय वहां पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थी। जैसे ही शुक्रचार्य ने वामन को देखा, वह तुरंत ही समझ गए कि यह विष्णु जी है। शुक्राचार्य ने राजा बलि को बुलाकर उन्हें कहा कि यहां विष्णु वामन रूप में पहुंच चुके हैं, वह तुमसे संकल्प करवाकर कुछ भी मांग सकते हैं, तो मुझ से बिना पूछे उन्हें कुछ देने का वचन मत देना, लेकिन राजा बलि ने इस बात को अनसुना कर दिया। तभी वामन देव राजा बलि के पास आए, और कुछ मांगने की इच्छा जाहिर की था। राजा बलि बहुत दानवीर भी थे, उसने वामन को दान देने का वचन दे दिया। इस बीच शुक्राचार्य ने उन्हें वचन न देने इशारा भी किया, लेकिन वह नहीं माने और उन्हें वामन देव को वचन दे दिया।
राजा के मुख से मुंह मांगा दान पाने का वचन मिलते ही, उन्होंने राजा बलि से तीन पग धरती की याचना की। राजा बलि सहर्ष वामन देव की इच्छा पूर्ति करने के लिये सहमत हो गये। राजा बलि के सहमत होते ही वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया। इन्होंने एक पग में पूरा भू लोक नाप दिया और दूसरे पग में स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया। वामन रूपी श्री हरि विष्णु ने जब तीसरा पग उठाया, तो राजा बलि श्री हरि विष्णु को पहचान गया, और उसने अपना शीश वामन देव के सामने प्रस्तुत कर दिया। वह भगवान विष्णु का परमभक्त भी था, तो उन्होंने बलि की उदारता का सम्मान किया, और उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक भेज दिया। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आ सकता है। दक्षिण भारत में ऐसा माना जाता है कि राजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आता है। इस दिन को ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के नाम से भी मनाया जाता है।
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