प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जयंती मनाई जाती है। इसे विनायक चतुर्थी अथवा वरद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी का उद्भव हुआ था। इसी के कारण इसे गणेश जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिन गणपति पूजा से हर तरह की परेशानी से निजात मिल जाता है। साथ ही सुख-समृद्धि की आती है। तो आइए, इस आर्टिकल में गणेश जयंती का शुभ मुहूर्त, तिथि और मंत्र के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
इस साल चतुर्थी तिथि दो दिन होने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर किस दिन गणेश जयंती बनाना शुभ होगा। हालांकि, चतुर्थी तिथि का आरंभ 1 फरवरी 2025 को 11:38 बजे होगा। वहीं, चतुर्थी तिथि का समापन 02 फरवरी 2025 को 09:14 बजे होगा। इस कारण उदया तिथि के आधार पर गणेश जयंती 1 फरवरी 2025 को ही मनाई जाएगी।
वैदिक पंचांग के अनुसार, गणेश जयंती पर परिघ योग के साथ शिव और रवि योग बन रहा है। इस दिन परिघ योग दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शिव योग आरंभ हो जाएगा। इसके साथ ही रवि योग सुबह में 7 बजकर 9 मिनट से बन रहा है, जो अगले दिन 2 फरवरी को तड़के 2 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। वहीं, गणेश जयंती के दिन भद्रा का साया रात में 10 बजकर 26 मिनट पर लगेगी, जो 2 फरवरी को सुबह 7 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने उबटन से गणेश जी की रचना की थी। इस दिन गणेश जी का जन्म हुआ था। गणेश जी की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और जीवन के हर एक दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही जीवन में शुभ फल पड़ता है और विध्न बाधाएं से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन चंद्र दर्शन करने की मनाही होती है। माघ शुक्ल चतुर्थी, तिलकुट चतुर्थी और वरद चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है।
गणेश जयंती के दिन चंद्रमा को देखने की मनाही होती है। इस दिन तय अवधि में चंद्रमा देखने से चोरी का दोष लगता है। इसलिए इस दिन सुबह 08:52 से 21:01 तक चंद्र का दर्शन ना करें।
बता दें कि अवधि चन्द्र का दर्शन ना करने की अवधि 12 घंटे 08 मिनट होगी।
बिहार के गया के बारे में गयासुर की कथा काफ़ी प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि गयासुर के नाम पर ही बिहार का गया जिला बसा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया था.
अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का प्रेतशिला वेदी पर होता है पिंडदान, जानिए क्या है महत्व
शास्त्रों में वर्णित है कि हम अपने पितरों को जो देते हैं उससे कई गुना ज्यादा वो हमें प्रदान कर देते हैं। उनका आशीर्वाद सदा हमें हमारे जीवन में आगे की ओर बढ़ने को मार्ग प्रशस्त करता है।
आखिर क्यों वेश्यालय की मिट्टी से ही बनती है माता दुर्गा की मूर्ति, इन 10 जगहों की मिट्टी का होता है इस्तेमाल