हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य देवता माना गया है। हर शुभ कार्य की शुरुआत श्री गणेश के स्मरण से ही होती है। गणेश जी के कई नाम प्रचलित हैं, जिनमें से एक है ‘एकदंत’। संस्कृत में ‘एक’ का अर्थ है एक और ‘दंत’ का अर्थ है दांत। यानी जिनका केवल एक ही दांत है। इस नाम के पीछे एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जिसे जानना दिलचस्प है।
कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के अवतार और महादेव के परमभक्त परशुराम जी कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे। उस समय भगवान शिव गहन ध्यान में लीन थे। ऐसे में प्रवेश द्वार पर खड़े गणेश जी ने परशुराम को रोक दिया और पिता की आज्ञा के अनुसार उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।
परशुराम जी अपने आराध्य भगवान शिव से मिलने के लिए दृढ़ निश्चय किए हुए थे, वहीं गणेश जी अपने कर्तव्य और पिता की आज्ञा पर अडिग रहे। इसी बात पर दोनों के बीच विवाद हो गया। धीरे-धीरे यह विवाद युद्ध का रूप ले बैठा।
कहा जाता है कि क्रोधित होकर परशुराम जी ने भगवान गणेश को युद्ध के लिए ललकार दिया। गजानन ने भी यह चुनौती स्वीकार कर ली और दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस दौरान परशुराम जी ने अपने प्रिय अस्त्र फरसा (परशु) से गणेश जी पर प्रहार किया। यह फरसा उन्हें भगवान शिव से ही प्राप्त हुआ था।
गणेश जी ने पिता के अस्त्र का सम्मान करते हुए वार को झेला और उसे रोकने का प्रयास नहीं किया। परिणामस्वरूप उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत नाम से पुकारा जाने लगा।
इस घटना के बाद परशुराम जी को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत गणेश जी से क्षमा मांगी और उन्हें आशीर्वाद दिया। परशुराम ने गणपति को समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान से परिपूर्ण होने का वरदान दिया। तभी से बप्पा को ज्ञान, बुद्धि और विवेक का अधिष्ठाता माना जाने लगा।
गणेश जी के एक दांत टूटने को लेकर एक अन्य कथा भी कही जाती है। मान्यता है कि जब महर्षि वेदव्यास महाभारत की रचना कर रहे थे, तब उन्होंने गणेश जी से इसे लिखने का अनुरोध किया। लेखन के दौरान उनकी लेखनी टूट गई, तो बप्पा ने बिना रुके लिखने के लिए अपना एक दांत तोड़कर उसे कलम के रूप में प्रयोग कर लिया।