गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है। दस दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में भक्त घर और पंडालों में गणपति बप्पा की स्थापना करते हैं। गणेश जी को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता माना जाता है, इसलिए इन दिनों उनकी विशेष पूजा-अर्चना का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें प्रिय व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि बप्पा को मिठाइयां और खास प्रसाद अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
गणेश जी का सबसे प्रिय प्रसाद मोदक माना जाता है। पहले दिन गणेश चतुर्थी की स्थापना के बाद मोदक का भोग लगाने से उत्सव की शुरुआत शुभ होती है। मान्यता है कि मोदक अर्पित करने से बप्पा प्रसन्न होकर घर में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गणपति जी को मोतीचूर के लड्डू भी बहुत पसंद हैं। दूसरे दिन इस प्रसाद को अर्पित करने से जीवन में सौभाग्य और सकारात्मकता बढ़ती है।
तीसरे दिन गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन बेसन के लड्डू अर्पित करने से स्वास्थ्य लाभ और मनोकामना पूर्ति होती है।
गणेश जी को फल अर्पित करने की परंपरा भी है। चौथे दिन केले का भोग लगाना शुभ माना जाता है। यह प्रसाद परिवार में संतुलन और स्वास्थ्य बनाए रखने वाला माना जाता है।
गणपति जी को मखाने की खीर अति प्रिय मानी जाती है। पांचवे दिन इसका भोग लगाने से परिवार में समृद्धि और धन लाभ के योग बनते हैं।
पूजा-पाठ में नारियल का महत्व विशेष रूप से बताया गया है। छठे दिन बप्पा को नारियल का भोग लगाने से विघ्न दूर होते हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
गुड़ और घी का भोग पूजा-पाठ में पारंपरिक माना जाता है। सातवें दिन इसका प्रसाद अर्पित करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
आठवें दिन गणेश जी को मावे के लड्डू चढ़ाना चाहिए। मान्यता है कि यह भोग अर्पित करने से परिवार में उन्नति और खुशहाली आती है।
नौवें दिन कलाकंद और खोपरा पाक जैसी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद अर्पित करने से जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है।
गणेश उत्सव के अंतिम दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर बप्पा को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा है। यह दिन विशेष होता है और इसे पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।