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गणपति जी सबसे पहले क्यों पूजे जाते हैं?

गणपति जी सबसे पहले क्यों पूजे जाते हैं?

Bhagwan Ganesh Puja: मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम क्यों होती है भगवान गणेश की पूजा? पढ़ें इससे जुड़ी कथा

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। सनातन परंपरा में हर शुभ और मांगलिक कार्य की शुरुआत गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना से करने का विधान है। विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ, नया कार्य आरंभ करने या किसी भी मंगल अवसर पर सबसे पहले गणेश जी को याद किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है? इस प्रश्न का उत्तर हमें एक रोचक पौराणिक कथा में मिलता है।

श्रेष्ठता को लेकर उठे विवाद

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवताओं के बीच यह प्रश्न उठा कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है और किसे सबसे पहले पूजना चाहिए। हर देवता स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे। इस विषय पर समाधान खोजने के लिए सभी ने महर्षि नारद की शरण ली। नारद जी ने कहा कि इस विवाद का निपटारा महादेव ही कर सकते हैं।

शिव जी ने दी परीक्षा की राह

जब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर प्रतियोगिता से मिलेगा। आप सभी अपने-अपने वाहन पर सवार होकर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा कर आइए। जो सबसे पहले परिक्रमा पूरी करके लौटेगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा और उसकी पूजा सबसे पहले की जाएगी।

बुद्धि और भक्ति का अनोखा संगम

प्रतियोगिता शुरू हुई। सभी देवी-देवता अपने वाहनों पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल पड़े। इंद्रदेव अपने ऐरावत पर, विष्णु भगवान गरुड़ पर और अन्य देवता भी तेज गति से आगे बढ़े। लेकिन गणेश जी का वाहन चूहा था, जो आकार और गति में अन्य वाहनों की तुलना में बेहद छोटा और धीमा था। यह देखकर गणेश जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उन्होंने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की बजाय अपने माता-पिता—भगवान शिव और माता पार्वती—की परिक्रमा की और उन्हें प्रणाम किया।

गणेश जी बने विजेता

जब अन्य देवता ब्रह्मांड की परिक्रमा पूरी करके लौटे, तब तक गणेश जी पहले ही अपने माता-पिता की परिक्रमा कर चुके थे। शिव-पार्वती के समक्ष उन्होंने निवेदन किया कि माता-पिता ही संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रतीक हैं। उनके चारों ओर घूमना ही ब्रह्मांड की परिक्रमा के समान है। इस तर्क और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गणेश जी को विजेता घोषित किया। उन्होंने कहा कि माता-पिता की पूजा और परिक्रमा ही समस्त संसार की परिक्रमा के समान है। तभी से गणेश जी को प्रथम पूज्य माना गया और हर शुभ कार्य की शुरुआत उनके नाम से करने का नियम स्थापित हो गया।

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