गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन अब इसकी छटा पूरे देश और विदेशों तक फैल चुकी है। इस दिन को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीगणेश को बुद्धि, विवेक और समृद्धि का देवता माना जाता है, साथ ही वे विघ्नहर्ता यानी संकटों को दूर करने वाले देवता हैं। यही कारण है कि हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन से की जाती है।
गणेश चतुर्थी से जुड़ी सब से प्रसिद्ध कथा माता पार्वती से संबंधित है। कथा के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर के उबटन से गणेश जी की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठित कर उन्हें द्वार पर पहरेदार के रूप में खड़ा कर दिया। उसी दौरान भगवान शिव आए और द्वार पर खड़े इस बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। क्रोधित होकर शिव ने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती ने यह देखा तो वे व्याकुल हो गईं। तब शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि सबसे पहले जिस प्राणी का सिर मिले, उसे ले आओ। गणों को सबसे पहले एक हाथी का सिर मिला, जिसे लाकर गणेश जी के शरीर पर स्थापित किया गया। इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ और वे विघ्नहर्ता के रूप में पूजनीय बने।
गणेश जी से जुड़ी एक और मान्यता है जो बताती है कि उन्हें क्यों विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोनों कहा जाता है। कहा जाता है कि देवताओं ने भगवान शिव और पार्वती से एक ऐसे देव की रचना की प्रार्थना की थी, जो राक्षसों के लिए विघ्न उत्पन्न करे और देवताओं व भक्तों के लिए मार्ग प्रशस्त करे। इस प्रकार गणेश जी को दोनों शक्तियां प्रदान की गईं। वे दुष्टों के मार्ग में बाधा डालते हैं और अपने भक्तों के जीवन से कठिनाइयों को दूर करते हैं। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले गणपति की पूजा की जाती है ताकि कार्य निर्विघ्न पूरा हो सके।
गणेश चतुर्थी का ऐतिहासिक महत्व भी है। इसका आरंभ मराठा काल से माना जाता है, लेकिन इसे सार्वजनिक उत्सव का रूप लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने दिया। अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन के समय तिलक ने इस त्योहार को लोगों को एकजुट करने का माध्यम बनाया। गणपति उत्सव ने समाज में एकता और भाईचारे की भावना को प्रबल किया और यह आज भी सामूहिक उत्सव का प्रतीक है।
गणेश चतुर्थी का उत्सव 10 दिनों तक चलता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। पहले दिन गणेश स्थापना की जाती है और दसवें दिन विसर्जन के साथ बप्पा को विदा किया जाता है। वर्तमान समय में गणपति उत्सव केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक बन चुका है। साथ ही, अब इसमें पर्यावरण जागरूकता का संदेश भी शामिल किया जाने लगा है। लोग मिट्टी की प्रतिमाओं और प्राकृतिक सजावट का उपयोग कर बप्पा का स्वागत करते हैं।