हिंदू धर्म में वनदेवी को जंगलों, वनस्पतियों, और वन्य जीवों की अधिष्ठात्री माना जाता है। वे प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन का प्रतीक हैं। इतना ही नहीं, कई आदिवासी समुदायों में वनदेवी को आराध्य देवी के रूप में पूजा जाता है। वे देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों में से एक हैं और शक्ति का प्रतीक हैं। उन्हें प्रकृति की माता के रूप में भी पूजा जाता है जो सभी जीवित प्राणियों की रक्षा करती हैं। वनदेवी जीवन के चक्र की अनंत का प्रतीक भी मानी जाती हैं। वे जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को नियंत्रित करती हैं। वनदेवी उपजाऊ शक्ति का प्रतीक हैं। वे कृषि और पशुपालन से जुड़े लोगों की देवी हैं। अब ऐसे में अगर आप वनदेवी की पूजा कर रहे हैं, तो किस विधि से करने से शुभ परिणाम मिल सकते हैं। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
वनदेवी की पूजा आम तौर पर किसी पेड़ के नीचे, जंगल में या किसी प्राकृतिक स्थल पर की जाती है। आप अपने घर के बगीचे में भी एक छोटा सा मंदिर बनाकर पूजा कर सकते हैं।
अगर आप वनदेवी की पूजा कर रहे हैं, तो मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें।
अगर आप वनदेवी की पूजा कर रहे हैं, तो सुबह के समय कभी भी कर सकते हैं। पूजा करने से पहले वनदेवी का आह्नान जरूर करें।
जय वनदेवी महाक्रूरा,दुनिया में तेरी है धूम।हर जंगल में तेरा डंका,सर्वश्रेष्ठ है तेरा रूप।।जय वनदेवी महाक्रूरा।काटे जो बुरा समय हो,तू उनसे भी न कोई दूर।तेरे चरणों में बसा सुख,तू है सबकी आशा और पूर।।जय वनदेवी महाक्रूरा।हिरण, बाघ और हाथी,तेरे आशीर्वाद से बहे।जो सच्चे मन से तुझे पूजे,उसके घर में सुख समेटे।।जय वनदेवी महाक्रूरा।गगन में तेरी महिमा गाई,धरती पर भी तेरा राज।हर पेड़-पौधा, हर झाड़ी,हर स्थान में तेरा ताज।।जय वनदेवी महाक्रूरा।
वनदेवी की पूजा करने से व्यक्ति को सभी रोगों से भी छुटकारा मिल सकता है। साथ ही अन्न से लेकर फल, फूल पेड़-पौधे सभी वनदेवी के द्वारा ही व्यक्ति को मिलते हैं। वनदेवी की पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति भी मिलती है। साथ ही वनदेवी की कृपा भी बनी रहती है।
फरवरी माह में प्रकृति में भी बदलाव आता है, मौसम में ठंडक कम होने लगती है। पेड़ों पर कोमल पत्ते आने लगते हैं। इस साल फरवरी में गुरु मार्गी होंगे और सूर्य, बुध भी राशि परिवर्तन करेंगा। इसलिए यह महीना बहुत खास रहने वाला है।
इष्टि यज्ञ वैदिक काल के प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। संस्कृत में ‘इष्टि’ का अर्थ ‘प्राप्ति’ या ‘कामना’ होता है। यह यज्ञ विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति और जीवन में समृद्धि लाने के उद्देश्य से किया जाता है।
हनुमान जी भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं। इसलिए, श्रीराम की पूजा में भी हनुमान जी का विशेष महत्व है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों के सभी दुःख और कष्ट हर लेते हैं।
देशभर में रामनवमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसलिए, राम भक्त पूरे साल इस दिन का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।