शांति केवल बाहर के वातावरण में नहीं, हमारे भीतर भी जरूरी है। जब मन अशांत हो, जीवन में बाधाएँ बार-बार आएं या मानसिक बेचैनी बनी रहे। तब शास्त्र हमें एक उपाय बताते हैं: शांति पूजा। यह पूजा न केवल हमारे विचारों को स्थिर करती है, बल्कि जीवन में सौभाग्य, सुख और समृद्धि भी लाती है। यह एक पूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे आप घर पर ही सहजता से कर सकते हैं।
शांति पूजा मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन के लिए की जाती है। यह देवी-देवताओं की कृपा पाने का मार्ग है, जिससे हमारे जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
शांति पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए। इसके लिए पूजा स्थल की सफाई सबसे पहले करें। भगवान गणेश, विष्णु और शिव की मूर्ति या तस्वीर आवश्यक है। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर), फूल, फल, अक्षत (चावल), जल, धूप, दीपक, कपूर, मौली (पवित्र धागा), नारियल, पान के पत्ते, सुपारी, इलायची, लौंग, हवन सामग्री और शुद्ध घी का समावेश करें। ये सभी सामग्री मिलकर पूजा को संपूर्ण और प्रभावशाली बनाती हैं।
पूजा से पहले घर के पूजा स्थान की सफाई करें। भगवान गणेश, विष्णु और शिव की प्रतिमा या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें। स्वयं स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
पूजा से पहले हाथ में जल, फूल और चावल लेकर संकल्प करें — "मैं अमुक स्थान व गोत्र में स्थित अमुक नामधारी व्यक्ति शांति पूजा कर रहा/रही हूँ।"
भगवान गणेश को दूर्वा, फूल, चंदन और मिठाई अर्पित करें और उनका आह्वान करें —
“ॐ गणपतये नमः।”
तांबे के कलश में जल भरकर उसमें आम या अशोक के पत्ते डालें। ऊपर नारियल रखें और भगवान के समक्ष स्थापित करें।
भगवान की मूर्ति को दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान कराएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं।
“ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः...ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”
यह मंत्र पूरे वातावरण को शांत और सकारात्मक बनाता है।
हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करें और हवन सामग्री डालते हुए “ॐ अग्नये स्वाहा”, “ॐ सोमाय स्वाहा” जैसे मंत्रों के साथ आहुति दें।
कपूर से आरती करें, भगवान को प्रणाम करें और प्रसाद सभी को वितरित करें।
सभी सामग्री समेटकर किसी पवित्र स्थान पर रखें और अंत में भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें।
पूरी पूजा श्रद्धा और नियम से करें। हर मंत्र को स्पष्ट और शांत चित्त से उच्चारित करें। पूजा के बाद भगवान का आभार व्यक्त करें।
हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, जो भगवान शिव की पूजा को समर्पित होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत कन्याओं के लिए बेहद खास होता है, इस दिन भोलेनाथ की उपासना करने और व्रत रखने से मनचाहा वर पाने की कामना पूरी होती हैं।
सनातन धर्म में प्रदोष व्रत बेहद फलदायी माना जाता है। इसका इंतजार शिव भक्तों को बेसब्री से रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर शिव पूजन करने और उपवास रखने से भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शनि प्रदोष का दिन भगवान भोलेनाथ के साथ शनिदेव की पूजा-आराधना के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन शनिदेव और शिवजी की पूजा करने से जीवन के समस्त दुखों से छुटकारा मिलता है और शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा समेत अन्य परेशानियां भी दूर होती है।
हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। पंचांग के मुताबिक साल 2025 का पहला प्रदोष व्रत 11 जनवरी को रखा जाएगा, इस दिन शनिवार होने के कारण यह शनि प्रदोष भी कहलाएगा।