महामृत्युंजय मंत्र को अत्यंत प्रभावशाली और सिद्धिदायक माना गया है। यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है और इसका जाप जीवन के भय, रोग, शोक और अकाल मृत्यु से रक्षा करता है। परंतु बिना विधि और नियम के मंत्र जाप करना लाभ के बजाय हानि का कारण बन सकता है। इसलिए इस लेख में हम आपको महामृत्युंजय मंत्र की पूरी जानकारी दे रहे हैं—जैसे कि इसे कब, कैसे और कितनी बार जपना चाहिए।
'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥'
इस मंत्र को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसके साथ गायत्री मंत्र के बीज मंत्रों को जोड़ा जाता है। इसका विस्तृत रूप इस प्रकार होता है—
'ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे... मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुव: स्व: ॐ स: जूं हौं ॐ।'
इस मंत्र की रचना ऋषि मृकण्डु के पुत्र मार्कण्डेय ने की थी। अल्पायु होने की बात जानकर उन्होंने भगवान शिव की आराधना कर यह मंत्र सिद्ध किया था। महर्षि वशिष्ठ, शुक्राचार्य, रावण और द्रोणाचार्य जैसे विद्वान इस मंत्र के साधक रहे हैं।
जाप से होने वाले लाभ
सुबह और शाम दोनों समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुभ होता है। किसी विशेष संकट के समय पंडित की सलाह पर कभी भी जाप किया जा सकता है। श्रावण मास में इसका दैनिक जाप विशेष फलदायी होता है।
महा मृत्युंजय हवन एक प्रभावशाली वैदिक अनुष्ठान है, जो दीर्घायु, रोग निवारण और जीवन संकट से मुक्ति के लिए किया जाता है। यह हवन महामृत्युंजय जाप के बाद सम्पन्न होता है। रुद्राक्ष की माला से 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें, फिर शिवलिंग पर पुष्प, दूध व जल अर्पित कर संकल्प लें। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर भगवान शिव का आह्वान करें और मंत्र उच्चारण के साथ आहुतियाँ दें। पूजन सामग्री में बेलपत्र, धतूरा, सुपारी, चावल, चंदन, घी आदि शामिल हों। सावन, महाशिवरात्रि या सोमवार को यह हवन विशेष फलदायी होता है।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था।
सनातन धर्म में भाद्रपद माह को सभी माह में विशेष माना जाता है। इस माह को भगवान कृष्ण के जन्म से जोड़ा गया है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कन्हैया का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
सनातन हिंदू धर्म में, यशोदा जयंती का दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रत के साथ माता यशोदा और भगवान श्री कृष्ण के पूजन का भी विधान है। इस पर्व पर शुद्ध भाव से पूजा-पाठ, व्रत और सेवा करने से माता यशोदा और भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
हिंदू धर्म में यशोदा जयंती बहुत ही पावन मानी गई है। इस दिन को भगवान श्री कृष्ण की मां यशोदा के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था।