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कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर, बीरभूम, पश्चिम बंगाल (Kanchi Devgarbha Kankali Tala Temple, Birbhum, West Bengal)

कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर, बीरभूम, पश्चिम बंगाल (Kanchi Devgarbha Kankali Tala Temple, Birbhum, West Bengal)

माता सती का कंकाल : माता सती के कंकाल से बना कांची देवगर्भा कंकाली ताला शक्तिपीठ मंदिर, तंत्र पूजा के लिए प्रसिद्ध 

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में शांति निकेतन के पास बोलपुर में कोपई नदी के किनारे माता का कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर स्थित है। माना जाता है माता सती का कंकाल यहां गिरा था। कंकाल गिरने के कारण यहां की धरती दब गई और वहां पानी भर गया जिससे एक कुंड का निर्माण हुआ।  स्थानीय लोगों के अनुसार, कुंड के नीचे आज भी मां की अस्थियां स्थित है। इसी कुंड के बगल में माता का शक्तिपीठ मंदिर स्थापित है। यहाँ सती मां को देवगर्भा और भगवान शिव को रूरू के नाम से पूजा जाता है। स्थानीय लोग इस पवित्र मंदिर को 'कंकाल बाड़ी' रक्त टोला कंकालेश्वरी मंदिर और कंकाली ताला के नाम से पुकारते हैं।


मंदिर से सटा है श्मशान घाट 

मंदिर के पास शमशान घाट भी है, जहां कई बड़े तांत्रिकों की समाधि भी है। यह स्थान तंत्र- मंत्र विद्या के लिए भी प्रसिद्ध है कई बड़े तांत्रिकों ने यहीं अपनी सिद्धि को प्राप्त की है। मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं बल्कि मां कोंकली की एक ऑयल पेंटिंग तस्वीर है। यह मंदिर काफी छोटा और सादा, प्रसिद्धि से दूर है। यहां प्रसाद के रूप में परंपरागत बंगाली मिष्ठान्न के अलावा गुड़हल के लाल फूल की माला भी मिलती है। गुड़हल का लाल फूल मां कोंकली को विशेष तौर पर चढ़ाया जाता है।


शांति निकेतन से 12 किमी की दूरी पर स्थित है मंदिर 

बीरभूम जिले में स्थित यह शक्तिपीठ बोलपुर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से 9 किलोमीटर और शांति निकेतन से करीब 12 किलोमीटर की दूर स्थित है। राजधानी कोलकाता से इस जगह की दूरी ढाई घंटे तथा दुर्गापुर 1 घंटे की है। 


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देवउठनी एकादशी व्रत के नियम और महत्व

सनातन धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है, लेकिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर विशेष रूप से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

देवउत्थायनी एकादशी के दुर्लभ योग

हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थायनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

देव उठनी एकादशी के नाम की कथा

हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का देश है। हमारी उत्सवप्रियता और उत्सव धर्मिता के सबसे श्रेष्ठतम उदाहरणों में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है।

देवउठनी एकादशी का महत्व, पूजा विधि

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी एकादशी को भगवान नारायण विष्णु योग मुद्रा यानी शयन मुद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं।

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