ऋषि भारद्वाज (Rishi Bhardwaj)

सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषि को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना की थी। इनके पुत्र द्रोणाचार्य थे। वे वैदिक काल के सबसे महान ऋषियों में से एक हैं और ऋषि अंगिरस के वंशज भी हैं। उनके पिता देवर्षि बृहस्पति और माता ममता है। ऋषि भारद्वाज आयुर्वेद के रचयिता हैं।  उनका आश्रम आज भी प्रयागराज में मौजूद है। वे देवास्त्रों सहित उन्नत सैन्य कलाओं के भी उस्ताद रहे हैं। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था जिनसे उनकी एक बेटी देववर्णिनी और एक बेटा गर्ग था।  द्रोणाचार्य (पांडवों और कौरवों के गुरु) का जन्म अप्सरा के प्रति आकर्षण के परिणामस्वरूप हुआ था। कुछ पुराणों के अनुसार, भारद्वाज गंगा नदी के तट पर पाए गए थे और राजा भरत ने उन्हें गोद ले लिया था। वेदों के ज्ञान के लिए उनकी प्यास कभी नहीं बुझती थी और इसके अलावा उन्होंने अधिक वैदिक ज्ञान के लिए इंद्र, भगवान शिव और पार्वती की तपस्या की थी। 

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के दृष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था। भारद्वाज ऋषि के जीवन पर लिखा ये आर्टिकल उनके जीवन का एक सार मात्र है, भारद्वाज ऋषि से जुड़ी समस्त जानकारी आपको भक्तवल्सल के ब्लॉग सेक्शन में मिल जाएगी।


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