ऋषि पंचमी का व्रत रखने से महिलाओं को मिलती है रजस्वला दोष से मुक्ति, पहली बार व्रत रखने पर ध्यान रखें ये नियम

हिंदू धर्म में व्रत रखना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। ये हमें अपने जीवन को सुधारने और आध्यात्म से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है साथ ही हमारे शरीर का संतुलन भी बना रहता है। ऋषि पंचमी का व्रत भी एक ऐसा ही व्रत है, जो हमें ज्ञान और पवित्रता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इस व्रत के माध्यम से, हम सात ऋषियों को याद करते हैं जिन्होंने मानवता को ज्ञान और पवित्रता का मार्ग दिखाया। विशेष रूप से इस व्रत का महत्व महिलाओं के लिए ज्यादा अधिक है, जो अपने मासिक धर्म के दौरान होने वाली अशुद्धता को दूर करने के लिए इस व्रत को धारण करती हैं। इस व्रत के माध्यम से वे अपने शरीर और मन को पवित्र बनाने के लिए प्रार्थना करती हैं और सात ऋषियों से आशीर्वाद लेती हैं। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम ऋषि पंचमी व्रत के महत्व, इसके लाभ, व्रत रखने की विधि और व्रत की कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे।


ऋषि पंचमी के व्रत का महत्व 


शास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अपवित्र माना जाता है, जैसे कि चांडालिनी, ब्रह्मघातिनी और धोबिन। लेकिन चौथे दिन स्नानादि के बाद वे शुद्ध हो जाती हैं। इस बीच उनसे जाने-अनजाने में जो भी पाप हो जाते हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत और पूजन किया जाता है। यह व्रत महिलाओं को अपने पापों से मुक्ति दिलाने और उनकी आत्मा को शुद्ध करने में मदद करता है।


ऋषि पंचमी व्रत की विधि 


1. स्नान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। (कुछ स्थानों पर इस व्रत में स्नान के समय बोलना निषेध बताया गया है)

2. पूजा: स्नान के बाद सात ऋषियों की पूजा करें और उन्हें फूल, फल और अनाज चढ़ाएं।

3. सप्त ऋषियों की पूजा में हल्दी, चंदन, रोली, अबीर, गुलाल, मेहंदी, अक्षत, वस्त्र, फूल आदि का उपयोग किया जाता है। 

4. व्रत का संकल्प: पूजा के बाद व्रत का संकल्प लें और सात ऋषियों से आशीर्वाद मांगें।

5. व्रत: व्रत के दिन केवल एक बार भोजन करें और वह भी सात्विक और शुद्ध भोजन होना चाहिए।

6. कथा सुनना: व्रत के दिन सात ऋषियों की कथा सुनने का भी विधान है।

7. आरती: संध्या के समय सात ऋषियों की आरती करना चाहिए।

8. व्रत का पारायण: अगले दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का पारायण करना चाहिए।


ऋषि पंचमी पर खाया जाता है साठी का चावल 


ऋषि पंचमी में साठी (मोरधन) का चावल और दही खाए जाने की परंपरा है। हल से जुते अन्न और नमक इस व्रत में खाना मना है। पूजन के बाद कलश सामग्री को दान करें। ब्राह्मण भोजन के बाद ही स्वयं भोजन करें।


इन बातों का रखें ध्यान


1. सुबह से दोपहर तक उपवास करें। पूजा स्थान को गोबर से लीपें।

2. मिट्टी या तांबे के कलश में जौं भर कर चौक पर स्थापित करें।

3. पंचरत्न, फूल, गंध, अक्षत से पूजन कर व्रत का संकल्प करें।

4. कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर, उसके दलों में ऋषियों और उनकी पत्नी की प्रतिष्ठा करें।

5. सभी सप्तऋषियों का 16 वस्तुओं से पूजन करें।


ऋषि पंचमी व्रत कथा 


पूजा करने के बाद ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनी जाती है। इस कथा को सुनने का बहुत महत्व होता है। भक्तवत्सल की वेबसाइट पर कथा सेक्शन में जाकर आप ऋषिपंचमी व्रत कथा पढ़ सकते हैं। 


यह भी जानें


ऋषि पंचमी व्रत कथा

गणेश चतुर्थी: श्री गणेश की पूजन

श्री गणेश जी की आरती

श्री गणेश चालीसा 


........................................................................................................
बिसर गई सब तात पराई (Bisar Gai Sab Taat Paraai)

बिसर गई सब तात पराई,
जब ते साध संगत मोहे पाई,

किस दिन है चंपा षष्ठी का व्रत

चंपा षष्ठी का पर्व भारत के प्राचीन त्योहारों में से एक है, जो विशेष रूप से भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप और भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है।

पकड़ लो बाँह रघुराई, नहीं तो डूब जाएँगे - भजन (Pakadlo Bah Raghurai, Nahi Too Doob Jayenge)

पकड़ लो बाँह रघुराई,
नहीं तो डूब जाएँगे ।

झोली भर लो भक्तो, दौलत बरसे भोले के दरबार (Jholi Bharlo Bhakto Daulat Barse Bhole Ke Darbar)

झोली भर लो भक्तो
दौलत बरसे भोले के दरबार,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।