अक्षत यानी कि पीले चावल। हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पूजा-पाठ में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। बिना खंडित हुए चावल को अक्षत कहते हैं। यह पूजा में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्रता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ अक्षत के बिना अधूरा माना जाता है। यह पूजा का विशेष सामग्री है।
इतना ही नहीं पूजा में अक्षत को सौभाग्यशाली माना गया है। पूजा सामग्री में अक्षत को सबसे पहले शामिल किया जाता है। अक्षत को पीले हल्दी में मिलाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। अब ऐसे में पूजा-पाठ में अक्षत का धार्मिक महत्व क्या है। इसे भगवान को चढ़ाने के लाभ क्या हैं। इसके बारे में विस्तार से इस लेख में जानते हैं।
हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि अक्षत भगवान को अर्पित करने से व्यक्ति के सभी पाप और दोष दूर हो जाते हैं। अक्षत की सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है।
अक्षत को भगवान को चढ़ाना बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है। अक्षत शुद्धता और सकारात्मकता का प्रतीक है। आपको बता दें, अक्षत को लक्ष्मी जी का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि अक्षत का नियमित रूप से प्रयोग करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
ज्योतिष में, अक्षत को शुक्र ग्रह से जोड़ा जाता है। शुक्र ग्रह सुख, वैभव, सौंदर्य और प्रेम का कारक है। अतः अक्षत का उपयोग पूजा में शुक्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। अक्षत को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाता है और घर में शांति और समृद्धि लाता है। चंद्रमा मन को शांत करने वाला ग्रह है। अक्षत को चंद्रमा से भी जोड़ा जाता है और मान्यता है कि यह मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है।
अक्षत चढ़ाने के दौरान मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें।
प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन शुरू हो चुका है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जहां देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
पौष पूर्णिमा के पावन अवसर पर, प्रयागराज में 144 वर्षों बाद महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। इस दिव्य और ऐतिहासिक आयोजन में लाखों श्रद्धालु भाग लेने पहुंचे हैं। अगर आप किसी कारणवश प्रयागराज नहीं जा पाए हैं, तो निराश न हों।
महिला नागा साधुओं का अपना अलग संसार है, जो माई बाड़ा के नाम से जाना जाता है। ये साध्वीएं पुरुष नागा साधुओं की तरह ही ईश्वर को समर्पित जीवन जीती हैं, लेकिन उनकी आध्यात्मिक यात्रा एक अलग रंग में रंगी होती है।
प्रयागराज का महाकुंभ फिलहाल पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। महाकुंभ में इस बार भी देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है।