हिन्दू परंपराओं में हर दिन सुबह शाम घरों में पूजा पाठ और संध्या आरती की जाती है। अपने इष्ट देव सहित सभी देवताओं की कृपा हम पर बने रहे इसके लिए पूजा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में पूजा-अर्चना के कई फायदे और नियम बताए गए हैं। इन नियमों में पूजा विधि, सामग्री और पूजन के समय का विशेष उल्लेख किया गया है। विशेष पूजन के समय को लेकर मुहूर्त देखा जाता है लेकिन घर में हर रोज पूजा पाठ के लिए भी समय नियत किया गया है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार यह भी कहा गया है कि असमय किए गए पूजा-पाठ के विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक पूजा के लिए सबसे उत्तम समय प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त को माना गया है। इस समय की गई पूजा से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। ब्रह्म का अर्थ होता है परम तत्व या परमात्मा। इसलिए हमें परमात्मा की प्राप्ति के लिए सूर्योदय होने से पहले जागना चाहिए और पूजा पाठ करना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त रात्रि का आखिरी पहर यानी सुबह चार बजे से साढ़े पांच बजे तक रहता है।
देवाधिदेव महादेव के लिए ही प्रदोष व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन महादेव का पूजन किया जाए तो प्रभु प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। साथ ही उनके सभी कष्टों का भी निवारण कर देते हैं।
हिंदू धर्म में, प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, फरवरी माह का पहला प्रदोष व्रत 9 फरवरी को मनाया जाएगा। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है।
माघ पूर्णिमा का हिंदू धर्म में खास है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा की जाती हैं। इस दिन लोग व्रत करते हैं और सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करते हैं। इसके साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं।
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का काफी महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर लोग व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।