छोटी दिवाली दीयों से घर-आंगन को रोशन करने का पर्व है। इसका संबंध हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि से भी है। इस दिन घी और तेल के दीपक जलाने, यमराज के लिए दीपदान करने और अभ्यंग स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। सही मुहूर्त में पूजा और दीपदान करने से जीवन में आने वाली नकारात्मकता दूर होती है। माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस छोटी दिवाली 2024 इन धार्मिक परंपराओं का पालन कर आप अपने परिवार के लिए सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना करें और जीवन को प्रकाशमय बनाएं।
इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है। इससे अकाल मृत्यु और जीवन में आने वाली नकारात्मकता से बचाव होता है। माना जाता है कि छोटी दिवाली पर जो लोग यमराज के लिए दीप जलाते हैं, उन्हें जीवन में कभी भी अकाल मृत्यु का भय नहीं होता। आइए जानते हैं छोटी दिवाली 2024 की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां…
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 01:20 बजे होगा और इसका समापन 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03:50 बजे होगा। इस वर्ष छोटी दिवाली 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को मनाई जाएगी।
नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है। इस स्नान के दौरान शरीर पर तिल का उबटन लगाना और पवित्र जल से स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह स्नान नकारात्मक ऊर्जा और पापों से मुक्ति दिलाता है।
अभ्यंग स्नान का समय: सुबह 05:25 से 06:30 तक
मान्यता के अनुसार इस इस मुहूर्त में दान पुण्य करने से दिव्य लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
सुबह 04:50 से 05:40 तक ब्रह्म मुहूर्त है। इस समय स्नान और ध्यान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन यमराज की प्रसन्नता और अकाल मृत्यु से बचने के लिए दीप जलाने की परंपरा है। परंपरा के अनुसार दक्षिण दिशा में एक चौमुखा दीपक जलाना अनिवार्य माना गया है। इस दीपक को जलाने से न केवल घर के सदस्यों की सुरक्षा होती है, बल्कि इससे परिवार के सदस्यों पर यमराज की कृपा बनी रहती है। प्रदोष काल (शाम के समय) में घर के आंगन, दरवाजे और खिड़कियों पर दीये जलाने से पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
छोटी दिवाली पर घी और तेल के दीयों के बीच उपयोग को लेकर भी विशेष मान्यताएं हैं।
घी के दीये: घी का दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह दीये विशेष रूप से पूजा स्थल पर जलाए जाते हैं।
सरसों के तेल के दीये: घर के आंगन, दरवाजे और दक्षिण दिशा में तेल के दीये जलाना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि तेल का दीपक नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करता है। परंपरा के अनुसार, यमराज के निमित्त दक्षिण दिशा में सरसों के तेल से भरा चौमुखा दीपक जलाना अनिवार्य माना जाता है। इस दीपक में चार बातियां लगाकर उसे प्रज्वलित करें।
छोटी दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर 16,000 कन्याओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। नरकासुर का वध असत्य पर सत्य की विजय और अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक है। इस घटना की स्मृति में नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली का पर्व मनाया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यमराज ने नरक चतुर्दशी के दिन अपने दूतों को बताया था कि जो लोग इस दिन दीपदान करेंगे, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं सताएगा। इसलिए, इस दिन दीपदान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।
होली फेस्टिवल होलिका दहन के एक दिन बाद मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष अर्थ है। बता दें कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और कई लोग होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जानते है।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, होलिका दहन करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और सुख-समृद्धि बढ़ती है। होलिका दहन के विधिवत आराधना करने से नकारात्मकता भी घर से बाहर चल जाता है। इसके साथ ही माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद बना रहता है।
होली का नाम सुनते ही हमारे मन में रंगों की खुशबू, उत्साह और व्यंजनों की खुशबू बस जाती है। यह भारत के सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, लेकिन इसकी उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। हालांकि, होली से जुड़ी कई किंवदंतियां हैं।
होली का त्योहार सिर्फ द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसका संबंध त्रेतायुग और भगवान श्रीराम से भी गहरा है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में भी होली मनाई जाती थी, लेकिन तब इसका रूप आज से थोड़ा अलग था। ये सिर्फ रंगों का खेल नहीं था, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ा हुआ एक अनोखा त्योहार था।