दिवाली का त्योहार 31 अक्टूबर को पूरे देशभर में धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली का पावन पर्व मनाया जाता है। दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इन दोनों देवताओं की पूजा करने से घर में समृद्धि और शांति आती है। हालांकि लक्ष्मी और गणेश जी के अलावा दिवाली में अन्य देवताओं की पूजा का भी विधान है। आइए जानते हैं कि दिवाली के दिन किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती हैं…
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा जरूरी है। इसके साथ ही इस दिन कुबेर देवता की पूजा का भी विधान है। माता लक्ष्मी धन संपदा की स्वामिनी हैं। वहीं श्री गणेश बुद्धि-विवेक के। बिना बुद्धि-विवेक के धन संपदा प्राप्त होना दुष्कर है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है। उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। लक्ष्मी मां को घर में स्थिर रखने के लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है। इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। ताकि लक्ष्मी के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो।
कहा जाता है कि जब लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ हमेशा गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। माता लक्ष्मी धन और वैभव की देवी हैं, लेकिन वह चंचला हैं। वे अधिक समय तक एक जगह स्थिर नहीं होती हैं। यही वजह है कि लोग धनतेरस और दिवाली पर कुबेर की पूजा करते हैं। ताकि उन्होंने जो धन-संपत्ति अर्जित की है, वह कम न हो। उसमें बढ़ोत्तरी हो और वह संरक्षित रहे। कुबेर की कृपा से घर में धन का भंडार हमेशा भरा रहता है।
शास्त्रों के अनुसार, माता लक्ष्मी के धन-संपादा के भंडार की देखरेख और रक्षा का कार्यभार भगवान कुबेर के जिम्मे है। किसको कितना धन देना है, कब देना है, इसका भार माता ने कुबेर को दिया है। इसलिए दिवाली पर माता लक्ष्मी-गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा जरूरी होती है।
मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं। ज्ञान के बल पर ही धन और बल की वृद्धि होती रहती है। बिना ज्ञान धन और समृद्धि का होना व्यर्थ ही माना जाता है, इसीलिए दिवाली के दिन धन की देवी लक्ष्मी के साथ सरस्वती जी की भी पूजा का महत्व है।
दिवाली के दिन मां काली की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि राक्षसों के अत्याचार को समाप्त करने के बाद भी जब माता महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्र रूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है। ऐसे में दीपावली पूजा में लक्ष्मी-गणेश के साथ कालिका माता की पूजा करने भी आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी साथ ही अनजाने भय से छुटकारा भी मिलेगा।
सनातन धर्म में रंगों को हमेशा से पवित्र माना गया है। रंगोली, न सिर्फ हमारे घरों को सजाती है बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी हमारे मन को शांत और खुशहाल बनाती है।
सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा में विशेष रूप से धूपबत्ती जलाने की परंपरा है। बिना धूपबत्ति के पूजा-पाठ अधूरी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि धूपबत्ती जलाने से घर में सकारात्कता का संचार होता है और व्यक्ति के जीवन में भी शुभता आती है।
मंदिर में प्रवेश के मुख्य नियमों में से एक है, प्रवेश से पहले पैरों को धोना। माना जाता है कि चाहे हम तन और मन से कितने ही शुद्ध क्यों न हों, मंदिर में प्रवेश से पूर्व हाथों के साथ-साथ पैरों को धोना अत्यंत आवश्यक होता है।
हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना करने के दौरान देवी-देवताओं को भोग लगाने का विशेष महत्व है। बिना भगवान को भोग लगाए पूजा अधूरी मानी जाती है।