भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों और विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में दीपावली और छठ पूजा के अवसर पर एक रोचक और विशिष्ट प्रथा प्रचलित है। इस परंपरा के अनुसार पूजा के बाद गोसाई घर (यानी पूजा कक्ष) में भगवान को भोग चढ़ाने के बाद उसका दरवाजा हल्का सटा दिया जाता है और कुछ देर के लिए उसे खाली छोड़ दिया जाता है। यह प्रथा गहरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। जो भक्तों और उनके आराध्य के बीच एक अलौकिक संबंध को दर्शाती है। आइए इस लेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
पूजा घर, जिसे आम बोल चाल की भाषा में गोसाई घर भी कहा जाता है। इसके दरवाजे को हल्का बंद करने और कमरे को कुछ देर के लिए खाली छोड़ देने के पीछे की मान्यता है कि भोग चढ़ाने के बाद भगवान स्वयं आकर उसे ग्रहण करते हैं। यह एक अटूट विश्वास है कि इस दौरान भगवान अपने भक्तों के घर में परोक्ष रूप से उपस्थित रहते हैं और भोजन को स्वीकार भी करते हैं। इस आस्था के अनुसार, भगवान केवल मूर्तियों में नहीं बल्कि प्रत्येक क्रिया और भावना में सजीव रूप से मौजूद रहते हैं। कहा जाता है कि इस अनुष्ठान से भगवान परिवार के एक सदस्य की तरह उस घर में स्थापित हो जाते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। यह विश्वास है कि भगवान की उपस्थिति से घर में शांति, समृद्धि और संकटों से सुरक्षा का वातावरण बना रहता है।
लोगों का मानना है कि भोग अर्पित करने और इस अनुष्ठान को निभाने से भगवान विशेष रूप से सहायक होते हैं। जब व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में होता है या किसी बड़ी समस्या से जूझ रहा होता है, तब यह विश्वास होता है कि भगवान अदृश्य रूप में उसकी सहायता के लिए आते हैं। भक्तों का अनुभव रहा है कि इस परंपरा से उनके संकट टलते हैं और मानसिक शांति मिलती है।
गोसाई घर का दरवाजा सटा कर छोड़ने और भोग लगाने की यह प्रथा आस्था, श्रद्धा और अनुशासन का एक सुंदर संगम है। यह ना केवल धार्मिक आचरण को प्रोत्साहित करती है। बल्कि, परिवार और समाज में आध्यात्मिक एकता और मर्यादा को बनाए रखने का भी मार्ग दिखाती है। गोसाई घर से जुड़े अनुष्ठान हमें प्रकृति और समाज के साथ सामंजस्य से जीने की प्रेरणा भी देते हैं। जिससे हमारे जीवन में शांति और समृद्धि का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
गोसाई घर को सिर्फ पूजा का स्थान नहीं माना जाता बल्कि यह परिवार का आध्यात्मिक केंद्र भी होता है, जहाँ सभी सदस्य नियमित रूप से प्रार्थना और ध्यान करते हैं। भोग चढ़ाने और गोसाई घर को कुछ देर खाली छोड़ने की प्रथा इस विश्वास को प्रकट करती है कि भगवान अपने भक्तों के जीवन में सक्रिय रूप से उपस्थित रहते हैं और उनकी कृपा से घर में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
गोसाई घर की इस परंपरा में गंगा जल और पाँच गांवों की मिट्टी का उपयोग यह संकेत करता है कि घर के सभी सदस्य प्रकृति, समुदाय और ईश्वर से जुड़े रहते हैं। यह प्रथा सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को अगली पीढ़ियों तक पहुँचाने में भी सहायक है।
बोरी मत जाने , वृषभानु की किशोरी छे
होरी में तोसो काहु भाँति नही हारेगी
रिद्धी सिद्धी दातार,
तुमसे गये देवता हार,
रिद्धि सिद्धि का देव निराला,
शिव पार्वती का लाला,
सारी चिंता छोड़ दो,
चिंतामण के द्वार,