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मां शबरी का महाकुंभ से संबंध

मां शबरी का महाकुंभ से संबंध

शादी से पहले मां शबरी बन गईं थी संन्यासी, जानें महाकुंभ से इसका क्या है संबंध 


हिंदू धर्म में मां शबरी का नाम बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वह भगवान राम की परम भक्त थीं और उनके जीवन की कहानी हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है। रामायण में वर्णित मां शबरी और भगवान राम की मुलाकात की कहानी हमें उनकी भक्ति और समर्पण की कहानी सुनाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर राम जी और मां शबरी की मुलाकात हुई थी। इसी वजह से दिन को हर साल शबरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। मां शबरी के जीवन से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती है जिन्हें अपनाने से हमारा जीवन सफल और सार्थक हो सकता है।


जानें कैसे बनी मां शबरी सन्यासी? 


मां शबरी का बचपन का नाम श्रमणा था और उनकी जीवन कहानी हमें साहस, आध्यात्मिकता, और आत्म-मुक्ति की प्रेरणा देती है। जब मां शबरी विवाह के योग्य हुईं तो उनके पिता ने भील कुमार से उनका विवाह तय किया। लेकिन मां शबरी ने इस रिवाज का विरोध किया, क्योंकि इसमें जानवरों की बलि देने की योजना थी। मां शबरी ने न केवल जानवरों को कैद बंधन से मुक्त कर दिया, बल्कि खुद को भी भौतिक बंधनों से मुक्त कर दिया। इसके बाद वह जंगल में ऋषियों के पास पहुंच गईं, जहां उन्हें कन्या समझ कर आश्रम से निकाल दिया गया। लेकिन मां शबरी ने हार नहीं मानी और नदी का रास्ता साफ करने का काम शुरू किया। वह रास्ते में से कांटे भी हटाती थीं जो उनकी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।


मतंग ऋषि ने दी मां शबरी को राम भक्ति की सलाह 


मां शबरी की कहानी में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई जब मतंग ऋषि ने उनके काम को देखकर उन्हें अपने आश्रम में स्थान दिया। मां शबरी ने मतंग ऋषि को अपने पिता के समान मानकर उनकी सेवा और सम्मान किया। जब मतंग ऋषि देह त्याग करने वाले थे, तो मां शबरी ने उनसे कहा कि वह पहले ही अपने पिता को छोड़कर आई हैं और अब वह भी जा रहे हैं तो उनकी रक्षा कौन करेगा? मतंग ऋषि ने मां शबरी को भगवान राम की भक्ति करने की सलाह दी और कहा कि भगवान राम उनकी रक्षा करेंगे। इसके बाद से मां शबरी भगवान राम की भक्ति में लीन हो गईं और उनके नाम का ध्यान करने लगीं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को वनवास के दौरान भगवान राम की मुलाकात मां शबरी से हुई जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ


शबरी का महाकुंभ से नाता 


मां शबरी की कहानी में एक दिलचस्प अध्याय है जब उन्होंने भगवान राम के लिए बेर का इंतजाम किया था। वह जानती थीं कि भगवान राम जल्द ही उनकी कुटिया पर आएंगे इसलिए उन्होंने उनके स्वागत के लिए बेर का इंतजाम किया था। जब भगवान राम और लक्ष्मण जी मां शबरी की कुटिया पर आए तो मां शबरी ने उनके चरण धोए और जूठे बेर खिलाए। लेकिन मां शबरी चाहती थीं कि खट्टे बेर भगवान राम के मुंह में न चले जाएं, इसलिए वह बेरों को चख कर रखती थीं। यह एक अनोखा और प्रेमभरा मिलन था जो मां शबरी और भगवान राम के बीच हुआ था। मां शबरी की कहानी में एक और दिलचस्प बात है कि वह पूर्व जन्म में महारानी थीं। वह महाकुंभ में स्नान और ऋषियों के साथ मंत्र जप करना चाहती थीं लेकिन राजा ने उन्हें ऋषियों के साथ मंत्र जप करने से मना कर दिया था। इसके बाद मां शबरी ने प्राण त्यागने का निर्णय लिया और मां गंगा से वरदान मांगा कि अगले जन्म में उन्हें न इतना खूबसूरत बनाना और न ही राजा के घर में जन्म देना।



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