महाकुंभ के दौरान किस देवी-देवताओं की पूजा होती है, घाटों का क्यों है महत्व
सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि करोड़ों वर्ष पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कुंभ निकला था, उसके अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गई थीं। उन्हीं स्थानों पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक ये चार प्रमुख स्थान हैं, जहां कुंभ का आयोजन किया जाता है।
साल 2025 में यह महापर्व प्रयागराज में 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक आयोजित होगा। महाकुंभ मेले के दौरान स्नान के साथ ही देवी देवताओं की पूजा भी की जाती है। आइए जानते हैं कि महाकुंभ में किन देवी देवताओं की पूजा करने से लाभ मिलता है।
महाकुंभ के दौरान किस देवी-देवताओं की पूजा होती है?
- महाकुंभ मेले के दौरान गंगा मैया की पूजा की जाती है क्योंकि यह मेला गंगा की घाटों पर ही लगता है। माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत कलश से छलकी बूंद के कारण महाकुंभ होता है।
- अमृत कलश से भगवान विष्णु का भी संबंध है इसलिए इस दौरान भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है।
- समुद्र मंथन 14 रत्न प्राप्त हुए। जिसमें से विष को महादेव ने ग्रहण किया। महादेव विष के प्रभाव को रोक सके और संसार को नष्ट होने से उन्होंने बचा लिया। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए और महादेव को शीतल करने के लिए कई बार उनका जल से अभिषेक किया गया। घड़े भर-भर कर उन्हें स्नान कराया गया। ऐसा कहते हैं कि तबसे शिवजी के जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई। इसलिए भगवान शिव की भी महाकुंभ के दौरान पूजा की जाती है।
- महाकुंभ के दौरान माता लक्ष्मी की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करने का विधान है।
सबसे पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार,
सबसे पहले मनाऊँ गणराज,
गजानंद आ जइयो,
सबसे ऊंची प्रेम सगाई,
सबसे ऊंची प्रेम सगाई ।
दरबार हजारो देखे है,
पर माँ के दर सा कोई,