नागा साधु एक विशेष प्रकार के संन्यासी होते हैं, जो अपनी साधना और तपस्या के लिए कठोर जीवनशैली अपनाते हैं। जबकि वे कुंभ मेले जैसे विशेष अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, सामान्य साधु की तरह वे रोज नहाने पर विश्वास नहीं करते। कभी-कभी तो वे महीनों तक नहीं नहाते। नागा साधु बनने के लिए भी एक कठोर जीवनशैली अपनानी पड़ती है। इस लेख में, हम विस्तार से जानेंगे कि नागा साधु पानी से क्यों दूर रहते हैं और क्यों वे सालों तक नहीं नहाते।
नागा साधु महीनों या सालों तक नहाने से परहेज करते हैं, और इसके पीछे एक गहरी धार्मिक और साधना से जुड़ी वजह है। नागा साधुओं का मानना है कि शरीर की बाहरी शुद्धता से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक शुद्धता है। वे खुद को शुद्ध करने के लिए भस्म (राख) का लेप लगाते हैं और भस्म स्नान करते हैं। इसके साथ ही, वे ध्यान और योग के माध्यम से मानसिक और आत्मिक शुद्धता को प्राप्त करते हैं।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और अनोखी है। कहते हैं कि वे पूरी तरह से निर्वस्त्र रहकर गुफाओं और कंदराओं में कठोर तपस्या करते हैं। इनमें से एक विशेष संस्कार है, जिसमें उनके कामेन्द्रियों को निष्क्रिय कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, उन्हें 24 घंटे तक बिना भोजन के अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना पड़ता है, और इस दौरान उनके शरीर पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है। इस कठोर साधना के बाद, उन्हें नागा साधु का दर्जा मिलता है।
जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए इस कठोर परीक्षा में सफल होता है, उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बना दिया जाता है। इसके बाद उसे पांच गुरु दिए जाते हैं, जिन्हें पंच देव या पंच परमेश्वर कहा जाता है—शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश। इन गुरुों के द्वारा उसे भस्म, भगवा वस्त्र और रूद्राक्ष जैसी महत्वपूर्ण वस्त्र और आभूषण दिए जाते हैं, जो नागा साधुओं के प्रतीक माने जाते हैं।
नागा साधु आमतौर पर अपने बाल नहीं कटवाते। यह उनके संन्यास और तपस्या का प्रतीक है। बाल न कटवाना इस बात का संकेत है कि वे सांसारिक इच्छाओं और भौतिक सुख-सुविधाओं से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं। यह उनकी साधना का एक अहम हिस्सा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बालों को बढ़ने देना और जटाएं रखना आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करने में मदद करता है। यह योग और ध्यान के अभ्यास में भी सहायक माना जाता है। साथ ही, जटाएं रखने से उनके जीवन की सरलता और प्रकृति से जुड़ाव भी प्रदर्शित होता है। नागा साधु अपने बालों को जटाओं में इसलिए रखते हैं क्योंकि यह भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव को भी जटाधारी कहा जाता है।
महापुरुष बनने के बाद, नागाओं को अवधूत की उपाधि दी जाती है। अवधूत बनने से पहले उन्हें अपने बाल कटवाने होते हैं और इसके लिए अखाड़ा परिषद से रसीद प्राप्त करनी होती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने के बाद, साधु अपना तर्पण और पिंडदान करते हैं। इसके बाद, वे अपने परिवार और संसार के लिए मृत मान लिए जाते हैं, और उनका एकमात्र उद्देश्य सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा करना होता है।
सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को अम्बितम (माताओं में श्रेष्ठ), नदितम (नदियों में श्रेष्ठ) एवं देवितम (देवियों में श्रेष्ठ) नामों से वर्णित किया गया है।
गंगा और यमुना की तरह नर्मदा नदी को भी हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। नर्मदा नदी को मां दुर्गा से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए मां नर्मदा को हिंदू धर्म की सात पवित्र नदियों में भी शामिल किया गया।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में सिंधु के नाम से जानी जाने वाली सिंधु नदी हिंदू पौराणिक कथाओं और इतिहास का केंद्र रही है।
सप्त नदियों में कावेरी नदी का भी विशेष स्थान है। तमिलनाडु और कर्नाटक में ये अपने जीवनदायनी गुणों की वजह से प्रसिद्ध है। कावेरी नदी को भगवान दत्तात्रेय से जोड़कर देखा जाता है।