महाकुंभ में देश के कोने-कोने से धर्मगुरु और साधु-संत एकत्र हुए हैं। इस विशाल मेले में हर दिन कोई न कोई ऐसा अद्भुत दृश्य दिखाई देता है जो लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। हाल ही में, एक ऐसे साधु ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है जिन्होंने अपने सिर पर अनाज उगा रखा है।
आमतौर पर लोग इस तरह के अविश्वसनीय दावों पर आसानी से विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन जब उन्होंने अपनी पगड़ी उतारी तो सबके मुंह खुले रह गए। उनके सिर पर अनाज की जड़ें साफ तौर पर दिख रही थीं। इस अद्भुत दृश्य ने सभी के संदेहों को दूर कर दिया और उन्हें इस साधु की साधना के प्रति गहरा सम्मान पैदा हुआ।
लोगों ने इस साधु को प्यार से 'अनाज बाबा' नाम दिया है। उनकी यह अद्वितीय साधना न केवल लोगों को आश्चर्यचकित कर रही है बल्कि उन्हें प्रकृति और धर्म के प्रति और अधिक गहरा जुड़ाव महसूस करा रही है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में अनाज वाले बाबा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
देश में शांति और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अनाज वाले बाबा ने एक अद्भुत कदम उठाया है। उन्होंने अपने सिर पर ही खेती कर डाली है। एक हठयोगी के रूप में, बाबा ने बताया कि उन्होंने यह कठिन साधना विश्व शांति और कल्याण के लिए ली है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से अत्यंत दुखी होकर, उन्होंने हरियाली को बढ़ावा देने का संकल्प लिया। जहां कहीं भी जाते हैं, बाबा हरियाली का संदेश देते हैं।
उन्होंने अपने सिर पर चना, गेहूं और बाजरा जैसी फसलें उगाकर यह साबित कर दिया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत प्रयास कितने महत्वपूर्ण होते हैं। सिर पर फसल उगाने वाले बाबा ने एक अद्भुत और अविश्वसनीय दावा किया है। उनके अनुसार, उन्होंने अपने सिर पर सिर्फ मक्का ही नहीं, बल्कि मटर, धान और गेहूं जैसी कई तरह की फसलें भी उगाई हैं। यह दावा सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है।
बाबा का कहना है कि वे समय-समय पर अपने सिर पर पानी डालकर इन फसलों को मजबूत बनाते हैं। यह सुनकर और भी ज्यादा आश्चर्य होता है कि आखिर कैसे कोई व्यक्ति अपने सिर पर उगी फसलों की देखभाल कर सकता है। जब कोई श्रद्धालु उनके पास आता है तो बाबा उन्हें चावल देकर आशीर्वाद देते हैं। यह उनके दयालु स्वभाव को दर्शाता है।
अनाज वाले बाबा ने पिछले पाँच वर्षों से वे लेटकर नहीं सोए हैं, बल्कि बैठे-बैठे ही नींद आ जाती है। उनका मानना है कि अगर वे लेटकर सोएंगे तो उनकी फसल खराब हो जाएगी। इस समय वे किला घाट के पास एकांत में कल्पवास कर रहे हैं। कुंभ मेला समाप्त होने के बाद वे अपने गृहग्राम सोनभद्र वापस लौट जाएंगे।
इस बार का कुंभ मेला, 2025, अत्यंत महत्वपूर्ण है। शासन प्रशासन ने इसे भव्य बनाने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारियां की हैं। लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इस विशाल संख्या को ध्यान में रखते हुए, शहर और कुंभ मेला क्षेत्र दोनों में ही व्यापक इंतजाम किए जा रहे हैं। हर संभव प्रयास किया जा रहा है कि यह कुंभ मेला दिव्य और भव्य हो, जिससे देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इसकी ख्याति फैले।
सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषि को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना की थी।
अत्रि (वैदिक ऋषि) ऋषि को ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक और चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा का भाई माना जाता है।
महर्षि जमदग्नि की गणना सप्तऋषियों में की जाती है। जमदग्नि ऋषि भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे।
गौतम का उल्लेख ऋग्वेद में अनेक बार हुआ है, किन्तु किसी ऋचा के रचयिता के रूप में गौतम को कभी नहीं देखा गया।