असम के उग्रतारा और दीर्घेश्वरी मंदिर शक्तिपीठों के रूप में काफी प्रसिद्ध हैं। ये मंदिर धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों का प्रतीक भी हैं। मान्यता है यहां माता सती के शरीर के कुछ अंग गिरे थे। ये तांत्रिक साधना के लिए महत्वपूर्ण केंद्र भी माने जाते हैं। उग्रतारा और दीर्घेश्वरी मंदिर असम के ऐसे दो प्राचीन मंदिर हैं, जो शक्तिपीठों के रूप में प्रसिद्ध हैं। आइए इस लेख में आपको इन दोनों मंदिरों के इतिहास, धार्मिक महत्व और स्थापत्य कला के बारे में बताते हैं।
उग्रतारा मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी में है और यह देवी उग्रतारा को समर्पित मंदिर है। उग्रतारा देवी पार्वती का उग्र रूप मानी जाती हैं। देवी उग्रतारा का संबंध बौद्ध धर्म से भी जोड़ा जाता है। बताया जाता है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण 1725 ईस्वी में असम के तत्कालीन राजा शिव सिंह द्वारा करवाया गया था। मंदिर के पूर्व में ‘जोरेपुखुरी’ नामक एक तालाब भी है। जिसे राजा ने ही बनवाया था और यह मंदिर के आकर्षण को कई गुना बढ़ा देता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माता सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपमानित होने के कारण यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था। इस घटना से भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उन्होंने तांडव नृत्य शुरू कर दिया। इससे संपूर्ण सृष्टि के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। माता सती के नाभि का भाग इसी स्थान पर गिरा था। जिसके कारण यह स्थान शक्तिपीठ बन गया। यहां पर देवी उग्रतारा की पूजा की जाती है जिन्हें अत्यंत शक्तिशाली और उग्र रूप में माना जाता है।
उग्रतारा मंदिर का निर्माण अहोम शैली में किया गया है। हालांकि, 1897 के असम भूकंप में यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। इससे यहां गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष उजागर हुए। इस मंदिर के पास के क्षेत्र में दाह पार्वतिया नामक स्थल पर खुदाई के दौरान 5वीं और 6वीं शताब्दी के अवशेष मिले हैं। जो उस समय के स्थापत्य और मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण पेश करते हैं। इन अवशेषों में टेराकोटा की मूर्तियां, गंगा और यमुना की नक्काशी और यूनानी कला के प्रभाव भी दिखाई देते हैं। जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।
दीर्घेश्वरी मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर गुवाहाटी में स्थित है और इसे असम के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण अहोम राजा स्वर्ग देव शिव सिंह ने करवाया था और यह मंदिर प्राचीन चट्टानों पर बनी देवी-देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता वार्षिक दुर्गा पूजा उत्सव है। इसमें दूर-दूर से श्रद्धालु हिस्सा लेने पहुंचते हैं।
बता दें कि दीर्घेश्वरी मंदिर की पौराणिक कथा भी माता सती से जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि सती का एक अंग सिटाचल पहाड़ी पर गिरा था। जहां वर्तमान में दीर्घेश्वरी मंदिर स्थित है। यह स्थान तब से शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है और यहां शक्ति की उपासना की परंपरा है। वहीं, दीर्घेश्वरी मंदिर की स्थापत्य शैली सरल पर प्रभावी है। यहां पर चट्टानों पर खुदाई कर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। जो इस क्षेत्र की प्राचीन कला और संस्कृति का प्रमाण हैं। यह मंदिर तांत्रिक साधना और शाक्त उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले, महाकुंभ ने एक बार फिर से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस मेले में देश-विदेश से आए साधु-संतों की भारी भीड़ ने इस पवित्र नगरी को और भी पवित्र बना दिया है।
कुंभ भारतीय वैदिक-पौराणिक मान्यता का महापर्व है। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में पौष पूर्णिमा स्नान से होने वाली है और यह 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मान्यता है कि करोड़ों वर्ष पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कुंभ निकला था, उसके अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गई थीं।
13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। महाकुंभ न केवल भारत में प्रसिद्ध है बल्कि विदेशों में भी इसका आकर्षण देखने को मिलता है। इस बार महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है।