दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या माता बगलामुखी हैं। इन्हें माता पीताम्बरा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह संसार तरंगों से घिरा हुआ है और माता बगलामुखी इन सभी तरंगों की देवी हैं। भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप मां बगलामुखी भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं। इनकी आराधना के पूर्व हरिद्रा गणपति की आराधना का विधान है। इसके बिना देवी आराधना अपूर्ण रहती है।
साधक बगलामुखी की उपासना शत्रुनाश, वाकसिद्धि और वाद-विवाद में विजय के लिए करते हैं। कहते हैं कि बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला में आज हम दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के बारे में जानेंगे…
मां इस रूप में नवयौवना के रूप में पीले रंग की साड़ी धारण की हुई हैं। सोने के सिंहासन पर विराजमान मैया के तीन नेत्र और चार हाथ हैं। मां के सिर पर सोने का मुकुट है और अन्य स्वर्ण आभूषण मैया को शोभायमान कर रहे हैं। मां के दाहिने हाथ में एक गदा हैं और बाएं हाथ से मां अपनी जीभ बाहर खींच रही हैं। बगलामुखी, पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र रूपणी भी कहा जाता है। माता बगलामुखी श्वेत वर्ण और स्वर्ण कांति के साथ सुंदर मुख मंडल पर अप्रतिम मुस्कान लिए आसन पर विराजमान हैं।
मां बगलामुखी की साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाकसिद्धि दिलाती है। बगलामुखी की उपासना में हल्दी की माला, पीले फूल और पीले वस्त्रों का बहुत अधिक महत्व है।
हर जनम में बाबा तेरा साथ चाहिए,
सिर पे मेरे बाबा तेरा हाथ चाहिए,
हर कदम पे तुम्हे होगा,
आभास सांवरे का,
हर कदम पे तुम्हे होगा,
आभास सांवरे का,
हर सांस मे हो सुमिरन तेरा,
यु बित जाये जीवन मेरा,