पितृपक्ष की शुरूआत हो चुकी है, ये 16 दिन हमारे पूर्वजों और पितरों को समर्पित होते हैं। इस दौरान किए गए श्राद्ध-तर्पण से घर-परिवार के पितर देवता तृप्त होते हैं और परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। लेकिन पितृपक्ष में कुछ ऐसी तिथियां आती हैं या यूं कहे कि ऐसे संयोग बनते है कि उस दिन किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितरों को मुक्ति मिलती है। ऐसा ही एक संयोग 21 सितंबर के दिन भी बन रहा है, इस दिन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और शनिवार का दिन है। यह योग पूजा-पाठ के नजरिए से बहुत खास है। इस दिन की गई पूजा-पाठ से पितृ आशीर्वाद देते हैं जिससे जीवन में सुख-शांति और सफलता बनी रहती है। पितृ पक्ष की चतुर्थी पर गणेश जी के लिए व्रत-उपवास करना चाहिए। इस बार चतुर्थी शनिवार को है तो नौ ग्रहों में से एक यानी न्याय के देवता शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाएं। काले तिल और तेल का दान करें। आईए भक्तवत्सल के इस लेख में जानते हैं पितृ पक्ष में करने योग्य काम और श्राद्ध करने की सरल विधि के बारे में...
काले तिल
अनाज
धन
चावल
नमक
जूते-चप्पल
कपड़े
पलंग
पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करें।
गरूड़ पुराण, श्रीमद् भगवद्गीता का पाठ करें।
जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।
गाय को हरी घास खिलाएं।
कौओं के लिए घर की छत पर खाना रखें।
चींटियों को आटा और मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं।
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
श्राद्ध - पितरों के नाम से धूप-ध्यान किया जाता है।
पिंडदान - चावल के आटे से पिंड बनाकर नदी में प्रवाहित किए जाते हैं।
तर्पण - हथेली में जल लेकर पितरों के नाम से अंगूठे की ओर छोड़ा जाता है।
तांबे का चौड़ा बर्तन, जौं, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल, पानी, कुशा, घास, गाय के गोबर से बना कंडा, घी, खीर-पुड़ी, गुड़, तांबे का लोटा।
श्राद्ध करने की तिथि पर सुबह जल्दी उठें और नहाने के बाद पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध और दान करने का संकल्प लें।
दोपहर में करीब 12 बजे दक्षिण दिशा में मुंह करके बाएं पैर को मोड़कर, घुटने को जमीन पर टिका कर बैठें।
तांबे के चौड़े बर्तन में जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।
हाथ में कुशा, घास रखें और उस जल को हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार पितरों का ध्यान करते हुए तर्पण करें।
गाय के गोबर से बना कंडा जलाएं। कंडों से जब धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़, घी, और थोड़ी-थोड़ी खीर-पूरी अर्पित करें।
हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों का ध्यान करते हुए जमीन पर अर्पित करें।
इसके बाद देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए अलग से भोजन निकाल लें।
जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। दान-दक्षिणा दें।
नोट - श्राद्ध करने के लिए दोपहर में करीब 12 बजे का समय सबसे अच्छा रहता है, इसे कुतुप काल कहते हैं। सुबह और शाम का समय देवी-देवताओं की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
नमामि भक्त वत्सलं ।
कृपालु शील कोमलं ॥
नमामि-नमामि अवध के दुलारे ।
खड़ा हाथ बांधे मैं दर पर तुम्हारे ॥
कार्तिगाई दीपम उत्सव दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो भगवान कार्तिकेय और शिव को समर्पित है। यह उत्सव तमिल माह कार्तिगाई की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो उत्तर भारतीय कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि को आयोजित होता है।
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधे नमामी कृष्णम,