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सामवेद (Samveda)

सामवेद (Samveda)

साम शब्द का अर्थ होता है गायन या गाना। सामवेद में विद्या भंडार और माना जाता कि यहीं से संगीत की उत्पत्ती हुई है। इस वेद समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मंत्र, स्वरचिकित्सा, राग, नृत्य मुद्रा भाव के बारे भी जानकारी मिलती चारों वेदों सबसे छोटा अलावा इसमें यज्ञ, अनुष्ठान हवन गाए जाने वाले मंत्र विवरण मिलता कहा ऋषि मुनियों द्वारा साथ देवताओं स्तुति शुरुआत ही कुल 1875 ऋचाएं हैं जिनमें ज्ञानयोग, कर्मयोग भक्तियोग कई शाखाएं लेकिन इनमें तीन प्रचलन कोथमीय, जैमिनीय राणायनीय। खासतौर पर सविता यानी सूर्य देव आराधना मिलते इंद्र सोम पर्याप्त इसके अग्निपुराण लिखा “सामवेद मंत्रों विधिवत उच्चारण किया जाए तो रोग मुक्ती कामनाओं सिद्धी जा सकती है।”

सामवेद के स्वर: सामवेद में जिस संगीत का वर्णन मिलता है उसे आधुनिक हिंदोस्तानी और कर्नाटक संगीत में स्वरों के क्रम में सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा वैदिक काल के कई वाद्ययंत्रों जैसे वीणा, दुंदुभि, नादी, तुरभ और बंकुरा का वर्णन में भी इसी वेद में मिलता है। इसलिए ये कहा जा सकता है कि वर्तमान में जिस संगीत का आनंद हमें मिलता है उसका मूल सामवेद में ही है।

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विरात्रा री पहाड़ियों में, धाम थारो - भजन (Viratra Ri Pahadiyon Me Dham Tharo)

विरात्रा री पहाड़ियों में,
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विसर्जन को चलीं रे, चली रे मोरी मैया (Visarjan Ko Chali Re Chali Mori Maiya)

विसर्जन को चली रे,
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वो लाल लंगोटे वाला, माता अंजनी का लाला (Vo Lal Langote Wala Mata Anjani Ka Lala)

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वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे (Vridavan Dham Apaar Jape Ja Radhe Radhe)

वृन्दावन धाम अपार,
जपे जा राधे राधे,

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