महाभैरव मंदिर भारत के असम राज्य के शोणितपुर जिले के तेजपुर नगर के उत्तरी भाग में एक पहाड़ पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मूल रूप से ये पत्थर का बना था लेकिन इसका पुननिर्माण क्रांकीट से कराया गया है। अहोम साम्राज्य के समय तुंग गंगिया राजवंश ने मंदिर के लिए भूमि दान की और पुजारी नियुक्त किये। यहां महाशिवरात्रि धूमधाम से मनाई जाती है और दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि यहां बाणासुर ने शिव जी की पूजा के लिए एक मंदिर स्थापित कराया था।
महाभैरव मंदिर का इतिहास पुराणों से जुड़ा हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार, राक्षस बाणासुर ने लिंग पूजा की शुरुआत की थी। राक्षस राजा ने तेजपुर में अपनी राजधानी स्थापित की थी और पत्थर से मंदिर का निर्माण कराया था। हालांकि पुरातत्वविदों का मानना है कि मंदिर का निर्माण 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच सलस्तंभ वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। साल 1897 में आए भूकंप से मूल मंदिर नष्ट हो गया था और बाद में 20वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण किया गया था। अब जो मंदिर खड़ा है उसका स्वरूप इस शताब्दी की शुरुआत में स्वयंवर भारती नामक एक भिक्षु ने फिर से बनवाया था, जिन्हें लोकप्रिय रुप से नागा बाबा के नाम से जाना जाता है। कुछ साल बाद भिक्षु श्री महादेव भारती ने मुख्य मंदिर के पास नट मंदिर बनवाया था। बाद में कुछ अन्य भक्तों द्वारा द्वारपाल के रूप में गणेश और हनुमान की मूर्तियों का निर्माण किया गया। महाभैरव मंदिर के जीर्णोद्धार का विकास धीमा था, लेकिन एक स्थानीय कलाकार श्रीजॉय दास ने मुख्य प्रवेश द्वार को उकेरा।
महाभैरव मंदिर असम की पौराणिक कथा भगवान शिव के अवतार महा भैरव से जुड़ी हुई है। असम के राजा अर्जुन ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे वरदान मांगा कि वह असम के लोगों की रक्षा करें और उन्हें सुख समृद्धि प्रदान करें। भगवान शिव ने राजा अर्जुन को वरदान दिया और महा भैरव के रूप में असम में अवतार लिया। महाभैरव ने असम के लोगों की रक्षा की और उन्हें सुख समृद्धि प्रदान की।
महाभैरव मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर दूर-दूर से भक्त आते हैं। इस मंदिर में भगवान को भांग से बने लड्डू का भोग लगाया जाता। महाभैरव मंदिर में विभिन्न पूजाएं की जाती है। वहीं इस मंदिर में कबूतरों को भी आजाद किया जाता है जो इस बात का प्रतीक है कि पूर्वजों की आत्मा को आजाद किया जा रहा है।
मंदिर में शिवरात्रि सबसे भव्य रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है। पूरे मंदिर को खूबसूरती से सजाया जाता है और दुनिया भर से भक्त वहां पहुंचते हैं। इसके अलावा दुर्गा पूजा और अन्य बड़े और छोटे त्यौहार भी समान रूप से मनाए जाते हैं।
महाभैरव मंदिर कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा गुवाहाटी एयरपोर्ट है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी है। जो महाभैरव मंदिर से लगभग 15 किमी दूर है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं
सड़क मार्ग - गुवाहाटी से महाभैरव मंदिर तक सड़क मार्ग से आराम से पहुंचा जा सकता है। यात्रा के दौरान असम की सुंदर वादियों का आनंद ले सकते हैं।
प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।
हिंदू धर्म में मानव जीवन में कुल 16 संस्कारों का बहुत अधिक महत्व है इन संस्कारों में नौवां संस्कार कर्णवेध या कान छेदने का संस्कार।
हिन्दू धर्म में मुहुर्त का कितना महत्व है इस बात को समझने के लिए इतना ही काफी है कि हम मुहुर्त न होने पर शादी विवाह जैसी रस्मों को भी कई कई महिनों तक रोक लेते हैं।