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शुक्रेश्वर मंदिर, गुवाहटी, असम ( Shukreshwar Temple, Guwahati, Assam)

शुक्रेश्वर मंदिर,  गुवाहटी, असम ( Shukreshwar Temple, Guwahati, Assam)

संत शुक्र ने यहां गुजारा एकांतवास इसलिए नाम पड़ा शुक्रेश्वर, सबसे बड़ा लिंगम और शुक्राचार्य से जुड़ी कथा 


शुक्रेश्वर मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है जो असम राज्य में स्थित है। देशभर से लोग भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर गुवाहाटी शहर के पानबाजार इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर शुक्रेश्वर पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को भगवान शिव के सबसे बड़े लिंगम और छठे ज्योतिर्लिंग लिंगम के लिए भी जाना जाता है। यहां यह मंदिर 18वीं शताब्दी का है और भगवान शिव के अस्तित्व का जश्न मनाने के लिए दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। 


मंदिर का इतिहास संत शुक्र से जुड़ा है, जिन्होंने शुक्रेश्वर पहाड़ी पर एकांतवास किया था, जहां ने नियमित रूप से भगवान शिव का ध्यान और पूजा करते थे। जिस स्थान पर उन्होंने ध्यान किया था, उसे कालिका पुराण के अनुसार हस्तगिरि कहा जाता है, क्योंकि यह हाथी के कूबड़ आकार का है। इस मंदिर का निर्माण बाद में साल 1744 में अहोम के राजा प्रमत्त सिंह ने करवाया था, जिन्होंने अपने शासन के दौरान कई धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया था। साल 1759 में राजा राजेश्वर सिंह ने शिव पंथ को बढ़ावा देने का कार्यभार संभाला। जिस नदी के किनारे मंदिर स्थित है, उसके किनारे पर भक्त पवित्र स्नान और अन्य पूजा गतिविधियों के लिए जाते हैं। मंदिर में भी खूबसूरती से डिजाइन की गई सीढ़ियां हैं जो पवित्र नदी तक जाती हैं और नदी तक की यात्रा को एक अद्भुत अनुभव बनाती हैं। 



शिव के सबसे बड़े लिंगम के लिए प्रसिद्ध


 

ये मंदिर भगवान शिव के सबसे बड़े लिंगम के लिए जाना जाता है। भारत का ये महान भारतीय स्मारक असम के अहोम वंश के राजा प्रमत्त सिंह की देन है। पूरे साल, कई दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं, जिनमें से कई विदेशी देश भी शामिल हैं, जो 18वीं शताब्दी में बने इस सबसे बड़े शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के बगल में एक नट मंदिर है। हालांकि शुक्रेश्वर मंदिर अभी भी अच्छी स्थिति में है, लेकिन बगल के नट मंदिर को लोहे की चादर से बदल दिया गया है।



राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य से जुड़ी मंदिर की कथा 



शुक्रेश्वर मंदिर की कथा भगवान शिव और उनके भक्तों के बीच गहरे धार्मिक संबंधों को दर्शाती है। यह कथा विशेष रूप से पौराणिक कथाओं में शिव और उनके भक्तों की भक्ति और समर्पण की कहानी है। शुक्राचार्य जो कि राक्षसों के गुरु और एक महान तांत्रिक माने जाते हैं उनको शिव के प्रति गहरी भक्ति थी। शुक्राचार्य ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए कठिन तपस्या की और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान किए। शुक्राचार्य की कठिन तपस्या और भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी सभी इच्छाएं पूरी कीं। भगवान शिव ने शुक्राचार्य को आशीर्वाद दिया और उन्हें एक विशेष शक्ति प्रदान की। 



शुक्रेश्वर मंदिर के त्यौहार



मंदिर में मुख्य उत्सव महाशिवरात्रि के समय आयोजित होता है और उस समय पूरे मंदिर को खूबसूरत फूलों और जगमगाती रोशनी से सजाया जाता है। 



शुक्रेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गुवाहाटी एयरपोर्ट है। इसके बाद आप बोरिहार हवाई अड्डा और शिलांग हवाई अड्डें भी आ सकते हैं। जो गुवाहाटी से लगभग 84 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग - भारतीय रेलवे शुक्रेश्वर मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छे परिवहन में से एक है जो परेशानी मुक्त और बहुत आसान सेवा प्रदान करता है। मंदिर के कुछ नजदीकी रेलवे स्टेशनों में से अमीन गांव रेलवे स्टेशन शामिल है। जो मंदिर से केवल 13 किमी की दूरी पर है। यहां से आप टैक्सी लेकर मंदिर जा सकते हैं।


सड़क मार्ग - गुवाहाटी शहर की सड़कें उत्तर पूर्वी राज्य के अधिकांश प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। इसके अलावा शहर में अच्छे सड़क मार्ग है जो देश के अधिकांश प्रमुख शहरों से आसानी से जुड़े हुए है। इसलिए, जो लोग सड़क मार्ग से मंदिर की यात्रा करना चाहते है, वो आसानी से यहां आ सकते हैं।


मंदिर का समय - सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक। 



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