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बिहार के इस मंदिर में मुफ्त होती हैं शादी

बिहार के इस मंदिर में मुफ्त होती हैं शादी

बिहार का अनोखा मंदिर जहां मुफ्त में होती हैं शादियां, ग्रामीण निभाते हैं दुल्हन के परिवार का फर्ज


बिहार के बेगूसराय जिले के नगर परिषद बीहट में बड़ी मां दुर्गा मंदिर एक अनूठी परंपरा का केंद्र है। यहां, बिना खर्च के हर साल हजारों विवाह कराए जाते हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि शादी के दौरान दुल्हन के परिजनों का फर्ज स्थानीय ग्रामीण निभाते हैं। वे शादी की हर जरूरी व्यवस्था करते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों यहां शादी करने में कोई बोझ नहीं उठाना पड़ता। यहां दूर-दूर से जोड़े विवाह के लिए आते हैं और पूरे हिंदू रीति-रिवाजों के साथ यह शुभ कार्य संपन्न होता है। यह पहल सहयोग का अनूठा उदाहरण है।


दिखावे वाला नहीं है ये विवाह स्थल


आज के समय में शादी-विवाह का खर्च बहुत अधिक बढ़ गया है। लग्जरी और भव्य समारोहों के कारण कई लोग कर्ज के बोझ में दब जाते हैं। सामाजिक दबाव और दिखावे के नाम पर परिवार अपनी सामर्थ्य से ज्यादा खर्च कर देते हैं। इससे वे जीवनभर आर्थिक संकट से जूझते हैं। लेकिन, ऐसे समय में भी बिहार के बेगूसराय जिले में एक पवित्र स्थान पर ऐसी परंपरा कायम है जहां बिना खर्च के प्रत्येक साल हजारों शादियां कराई जाती हैं। इस पहल का उद्देश्य गरीब परिवारों को राहत देना और शादी के महंगे अनुष्ठानों से मुक्ति दिलाना है।


बड़ी मां दुर्गा मंदिर है विवाह केंद्र


बेगूसराय जिले के नगर परिषद बीहट में स्थित बड़ी मां दुर्गा का मंदिर ना सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए एक धार्मिक स्थल है। बल्कि, यहां आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए विवाह आयोजन की अनोखी परंपरा भी निभाई जाती है। इस मंदिर में शादी के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।  


ग्रामवासी निभाते हैं परिवार का कर्तव्य


बीहट के स्थानीय लोगों की माने तो गांव के लोग दुल्हन के परिजन की भूमिका निभाते हैं। शादी में आवश्यक वस्तुएं जैसे साड़ी, सिंदूर और अन्य उपहार मंदिर और ग्रामीणों के सहयोग से ही उपलब्ध कराए जाते हैं। सामूहिक प्रयास से ना केवल शादी संपन्न होती है। बल्कि, नवदंपति के जीवन की शुरुआत भी सम्मानजनक तरीके से होती है। ग्रामीण बताते हैं कि गरीब परिवारों की शादी में मदद करने से उन्हें आत्मिक संतोष और खुशी की प्राप्ति होती है।


दूर-दूर से आते हैं दुल्हा-दुल्हन


बड़ी मां के इस दिव्य दरबार में विवाह के लिए बिहार के विभिन्न कोनों से जोड़े आते हैं। यहां ना केवल स्थानीय लोग बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों से भी दुल्हा-दुल्हन अपने विवाह की उम्मीदें लेकर पहुंचते हैं। ग्रामीण इस पूरी प्रक्रिया को अपने पारिवारिक कर्तव्य की तरह ही निभाते हैं। इसका नजारा भी अद्भुत होता है। 


भोजन और संस्कारों की भी व्यवस्था


शादी के दौरान भोजन और अन्य अनुष्ठानों की व्यवस्था भी मंदिर कमेटी के सहयोग से की जाती है। यदि लड़की पक्ष विशेष भोजन या अनुष्ठान की मांग करता है तो उसकी भी पूर्ति कर दी जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि इस मंदिर में ना केवल शादी बल्कि अन्य संस्कार, जैसे उपनयन (मुंडन), नामकरण और श्राद्ध कर्म भी संपन्न किए जाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए यह मंदिर आशा की एक किरण है। जहां वे अपने कार्य बिना किसी आर्थिक बोझ के संपन्न कर सकते हैं।


पूर्णतः धार्मिक प्रक्रिया से होती है शादी 


यहां होने वाले विवाह संस्कार पूरी तरह हिंदू परंपराओं के अनुसार संपन्न होते हैं। दंपति मां दुर्गा के समक्ष सात फेरे लेते हैं। जिनमें जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े संकल्प लिए जाते हैं। अग्नि के सामने वर-वधू एक-दूसरे के साथ जीवन भर साथ निभाने की शपथ लेते हैं। इसके बाद कन्यादान होता है। जिसमें दुल्हन के अभिभावक या उनके स्थान पर ग्रामीण कन्या का हाथ वर के हाथ में सौंपते हैं। पूरे विवाह संस्कार के दौरान पुजारी मंत्रोच्चारण करते हैं जिससे वातावरण मनमोहक हो उठता है। 

 

गाइडलाइंस का होता है पालन 


इस पवित्र विवाह स्थल पर शादी संपन्न कराने से पहले कुछ सरकारी शर्तों का पालन अनिवार्य है। जिसमें लड़की की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल होने के प्रमाण प्रस्तुत करने होते हैं। इसके साथ ही वर और वधू दोनों की सहमति भी आवश्यक है। मंदिर समिति यह सुनिश्चित करती है कि शादी से जुड़ी सभी कानूनी शर्तें पूरी हों ताकि विवाह वैध और विवाद मुक्त रहे।


गरीबों के लिए अच्छी पहल


इस मंदिर की अनूठी पहल समाज के उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो शादी के अनावश्यक खर्चों से बचना चाहते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां की परंपरा दिखाती है कि शादी जैसे पवित्र बंधन के लिए खर्चीले आयोजन की जरूरत नहीं है। समाज में सहयोग और संवेदनशीलता से ही इस तरह के आयोजनों को संभव बनाया जा सकता है।


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कुंभ संक्रांति के दिन दान

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