साल 2025 में अपने नन्हे मेहमान के आगमन के साथ आप उनके नामकरण संस्कार की तैयारी में जुट गए होंगे। यह एक ऐसा पल है जो न केवल आपके परिवार के लिए बल्कि आपके बच्चे के भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। नामकरण संस्कार, जिसमें बच्चे को उसका पहला नाम दिया जाता है। यह हिंदू धर्म में 16 प्रमुख संस्कारों में से एक है। नामकरण संस्कार न केवल आपके बच्चे की पहचान को परिभाषित करता है बल्कि यह उसके जीवन के उद्देश्य और मार्ग को भी निर्धारित करता है। लेकिन नामकरण संस्कार को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है कि आप इसे एक शुभ मुहूर्त में करें। शुभ मुहूर्त का चयन करने से आपके बच्चे के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है जो उसके भविष्य को उज्जवल बनाने में मदद करता है। तो आइए जानते हैं कि अगस्त 2025 में नामकरण के लिए शुभ मुहूर्त कब-कब रहने वाले हैं।
नामकरण संस्कार शिशु के जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ संस्कार है, जो उसके अस्तित्व और पहचान का प्रतीक होता है। लेकिन हिंदू धर्म की परंपराओं के अनुसार, चातुर्मास के दौरान इस संस्कार को करना वर्जित माना गया है। चातुर्मास 2025: 6 जुलाई से 1 नवंबर तक है। इस अवधि में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जब देवता विश्राम में हों, तब नामकरण, विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, कर्णवेध जैसे मांगलिक संस्कार नहीं किए जाते इसके साथ ही, इस समय ग्रहों की स्थिति भी शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती, जिससे नामकरण जैसे संस्कार के सकारात्मक फल प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए, यदि आप अपने शिशु का नामकरण संस्कार कराने की योजना बना रहे हैं, तो इसके लिए देवउठनी एकादशी (1 नवंबर 2025) के बाद का समय शुभ रहेगा। सही समय पर किया गया नामकरण संस्कार शिशु के जीवन में सौभाग्य, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है।
आमतौर पर नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के 10 दिन बाद किया जाता है। माना जाता है कि शिशु के जन्म से सूतक प्रारंभ हो जाता है। इसकी अवधि अलग-अलग होती है। पाराशर स्मृति के अनुसार, ब्राह्मण वर्ण में सूतक 10 दिन, क्षत्रियों में 12 दिन, वैश्य में 15 दिन और शूद्र एक महीने का माना गया है। हालांकि, आज के समय में वर्ण व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई है ऐसे में इसे 11वें दिन किया जाता है। पारस्कर गृह्यसूत्र में कहा गया है, “दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति”। इसका मतलब 10वें दिन भी नामकरण संस्कार किया जाता है। यह पिता द्वारा संपन्न होता है। वहीं, यह संस्कार 100वें दिन या शिशु के जन्म से 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी किया जाता है।
नामकरण संस्कार एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ज्योतिषीय अनुष्ठान है जो बच्चे के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संस्कार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि इसका ज्योतिषीय महत्व भी बहुत बड़ा है। एक नाम बच्चे के भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है और जब माता-पिता पूरे विश्वास और श्रद्धा से इस संस्कार को करते हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव बच्चे के जीवन पर पड़ता है। इसलिए किसी शुभ तिथि और समय का चयन कर, ज्योतिषी की सलाह से ही बच्चे का नामकरण समारोह करना चाहिए। इसका महत्व इस प्रकार है