छठ पूजा उत्तर भारत का प्रमुख त्योहार है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। इस महापर्व में मिट्टी के हाथी और कोसी भराई की पवित्र परंपरा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि मन्नत पूरी होने पर लोग मिट्टी का हाथी अर्पित कर सूर्य देव और छठी मईया को धन्यवाद देते हैं। गन्ने से बने मंडप (कोसी) में दीपक, कलश और हाथी रखकर पूजा की जाती है। पूजा के बाद हाथी की मूर्ति को नदी में प्रवाहित किया जाता है।
छठ महापर्व में मिट्टी के हाथी चढ़ाने और जल में विसर्जित करने की सदियों पुरानी परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि जो लोग छठी मैया से मन्नत मांगते हैं और उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वे श्रद्धा स्वरूप मिट्टी के हाथी की पूजा करते हैं। इसके बाद इस हाथी को विसर्जित किया जाता है। व्रती हाथी को पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत पर रखते हैं और सुबह के अर्घ्य के समय इसे नदी या तालाब में विसर्जित कर देते हैं।
हाथी को मिट्टी से तैयार किया जाता है और इसमें 6, 12, या 24 दीये लगे होते हैं।
हाथी के ऊपर ढक्कन होता है जिसमें लोग तेल भरते हैं और पूजा के समय दीप जलाते हैं।
गन्ने से बने कोसी के बीच इस हाथी को रखा जाता है और इसके साथ फल, ठेकुआ और कलश भी सजाया जाता है।
छठ पूजा में कोसी भराई की परंपरा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे विशेष रूप से शुभ और मंगलदायक माना जाता है। यह अनुष्ठान खासतौर से उन परिवारों द्वारा किया जाता है जिनके घर में मांगलिक कार्य हुए होते हैं। जैसे शादी या फिर संतान का जन्म। इसके अलावा जिन लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं वे भी कोसी भराई करते हैं। दूसरे अर्घ्य के लिए सुबह यह कोसी घाट पर ले जाई जाती है और वहां विसर्जित कर दी जाती है।
लोक मान्यता है कि जो लोग छठी मईया से मन्नत मांगते हैं और उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। वे सभी हाथी और कोसी चढ़ाकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि मन्नत पूरी होने पर देवी-देवताओं को आभार स्वरूप अर्पण करना अनिवार्य होता है।
छठ पूजा की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए सभी पूजन सामग्री प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए। इसलिए मिट्टी के हाथी, दीया, कलश और अन्य सामग्रियों का विशेष महत्व है। बाजारों में छठ के समय मिट्टी के हाथी 200 से 800 रुपये तक के दामों में उपलब्ध होते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस तिथि को पितरों की शांति और मोक्ष के लिए उत्तम दिन माना जाता है। इस दिन किए गए तर्पण, पिंडदान और पूजा से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष को एक ऐसा महत्वपूर्ण योग माना गया है, जो जातक के जीवन में अनेक बाधाएं उत्पन्न करता है।
वास्तु शास्त्र प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाला प्राचीन विज्ञान है। जब किसी भवन या स्थान में वास्तु के सिद्धांतों का पालन नहीं होता, तो वहां नकारात्मक ऊर्जा या समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को सौंदर्य, प्रेम, कला, विलासिता और भौतिक सुख-सुविधाओं का प्रतीक माना गया है। अगर कुंडली में शुक्र कमजोर या अशुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति को रिश्तों में तनाव, आर्थिक अस्थिरता और सौंदर्य से जुड़ी समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं।