हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाने वाला देव दिवाली पर्व भगवान शिव की विजय का प्रतीक है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, जिसके उपलक्ष्य में देवताओं ने स्वर्गलोक में दीप जलाकर दिवाली मनाई थी। यह पर्व भक्ति, प्रकाश और धर्म की विजय का प्रतीक माना गया है। इस वर्ष 15 नवंबर 2024 को देव दिवाली मनाई जा रही है और इस दिन दीप दान करने का विधान है।
देव दिवाली का त्योहार मुख्य रूप से काशी में भव्य तरीके से मनाया जाता है, जहां घरों, कॉलोनियों और मंदिरों को सजाया जाता है। प्रदोष काल में गंगा नदी के तट पर दिए जलाकर विधि अनुसार पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्गलोक से धरती पर आते हैं और इन दीपों के प्रकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। यह पर्व आध्यात्मिक और मानसिक शांति का संचार करता है और हमें धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष देव दिवाली पर व्यतीपात और वरीयान योग का निर्माण हो रहा है। इस दौरान भरणी नक्षत्र का संयोग भी रहेगा, जो पूजा और दीपक जलाने के लिए बेहद शुभ है। ऐसे में आईये जानते हैं दीपक जलाने के शुभ मुहूर्त के बारे में।
देव दिवाली के दिन प्रदोष काल में दीपक जलाने या दीप दान करने का विधान है। पंचांग के अनुसार 15 नवंबर के दिन प्रदोष काल शाम 5 बजकर 10 मिनट से शाम 7 बजकर 47 मिनट तक जारी रहेगा। ऐसे में आप घर, कॉलोनी मंदिर व घाट पर इस शुभ समय में दीप प्रज्वलित कर सकते हैं।
देव दिवाली के दिन भद्रा का भी साया रहेगा। इस दिन भद्रा सुबह 6 बजकर 44 मिनट से शाम 4 बजकर 37 मिनट तक है। यह स्वर्ग की भद्रा है क्योंकि इसका वास स्वर्ग में है। इसलिए इसका अशुभ प्रभाव पृथ्वी पर होता है। ऐसे में भद्रा के साये में दीप दान ना करें।
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोस्तुते।।दीपो ज्योति परंब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोस्तुते।।
देव दिवाली पर दीप जलाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो भगवान शिव की विजय का प्रतीक है। दीप जलाने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और दीप जलाने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। दीप जलाने से देवता स्वर्गलोक से धरती पर आते हैं और अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। यह पर्व आध्यात्मिक और मानसिक शांति का संचार करता है और हमें धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। दीप जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में नई रोशनी और उमंग का संचार करने की प्रेरणा देता है।
अमावस्या का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। यह दिन पितरों को समर्पित है और माना जाता है कि इस दिन किए गए पूजा-पाठ और दान का विशेष फल मिलता है। यह वह दिन होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चंद्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और दान का विशेष फल मिलता है।
भगवान शिव, देवों के देव महादेव, को प्रसन्न करना सबसे सरल माना जाता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भोलेनाथ की कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है। हर व्यक्ति शिव शंभू की कृपा पाने को आतुर रहता है।
नए साल 2025 की शुरुआत होने वाली है और हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है जो साधक की हर मनोकामना पूरी करने और पृथ्वी लोक पर स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति करने में मदद करता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है।