रोशनी और उमंग के त्योहार के रूप में देशभर में दीपावली धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य अंधकार पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दिवाली समृद्धि और सुख-शांति के लिए भी खास होती है। इस अवसर पर घरों की विशेष सजावट की जाती है। इनमें माता लक्ष्मी के पदचिन्ह और शुभ-लाभ के चिन्ह बनाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। तो आइए विस्तार से समझते हैं कि लक्ष्मी पद चिन्ह बनाने का महत्व क्या है। इसे बनाने का तरीका क्या है और इससे जुड़े वास्तु-शास्त्र के नियमों का पालन क्यों जरूरी है।
लक्ष्मी माता को धन, समृद्धि, सौभाग्य, और संपत्ति की देवी माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जिन घरों में साफ-सफाई और सकारात्मक ऊर्जा होती है वहां वे वास करती हैं। उनके पदचिन्ह इस बात के प्रतीक हैं कि लक्ष्मी माता का आगमन घर में हुआ है और वे अपने साथ सुख-समृद्धि लाती हैं। शास्त्रों के अनुसार पदचिन्हों की आराधना से धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है। यह परिवार में सौभाग्य और खुशहाली भी लाता है। इसलिए, दिवाली की रात घर में लक्ष्मी माता का स्वागत करने के लिए लोग आलता, कुमकुम या स्टिकर से उनके चरण चिह्न बनाते हैं और अपने दरवाजों पर शुभ-लाभ अंकित करते हैं।
शुभ-लाभ का महत्व:- दिवाली पर "शुभ-लाभ" लिखने की परंपरा का भी विशेष महत्व है। शुभ-लाभ का अर्थ है सद्कर्म और आर्थिक उन्नति। घर में इन शब्दों को अंकित करने का उद्देश्य यह है कि घर में प्रवेश करने वाला हर व्यक्ति शुभ विचारों और सकारात्मकता से ओतप्रोत हो जाए।
शुभ-लाभ का सही स्थान:- शुभ-लाभ के चिन्ह मुख्य द्वार के आसपास ऐसे लगाए जाएं कि हर आने-जाने वाले व्यक्ति की उन पर नजर पड़े। इससे घर में सकारात्मकता का वातावरण बना रहता है।
धनतेरस से ही घर की साफ-सफाई और सजावट की जाती है। जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी केवल स्वच्छ और व्यवस्थित स्थानों पर वास करती हैं।
पूजा सामग्री: पूजा में दीप, धूप, फूल, चावल, कुमकुम, मिठाई, और आलता का उपयोग किया जाता है। आलते या कुमकुम से लक्ष्मी माता के पदचिन्ह बनाए जाते हैं और दीप जलाकर पूरे घर में रोशनी की जाती है।
दीपों का महत्व: दिवाली पर घर के हर कोने में दीपक जलाने का महत्व है। यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
लक्ष्मी पद चिन्ह बनाना इस विश्वास को दर्शाता है कि माता लक्ष्मी घर में आई हैं और अपने साथ धन-संपत्ति का आशीर्वाद साथ लाईं हैं। शुभ लाभ के चिन्ह और स्वच्छता का वातावरण घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है। इससे परिवार के सदस्यों में उत्साह और आनंद का संचार होता है। वहीं, लक्ष्मी माता का पूजन और उनके चरण चिन्ह बनाना यह संदेश भी देता है कि हम अपने जीवन में आर्थिक प्रगति और सौभाग्य का स्वागत करना चाह रहे हैं।
छोटी दिवाली के दिन मुख्य रूप से 5 दीये जलाने का प्रचलन है। इनमें से एक दीया घर के ऊंचे स्थान पर, दूसरा रसोई में, तीसरा पीने का पानी रखने की जगह पर, चौथा पीपल के पेड़ के तने और पांचवा घर के मुख्य द्वार पर जलाना सबसे उचित माना गया है।
दिवाली का त्योहार पूरे देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है।
छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के दिन श्रीकृष्ण, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इनके अलावा इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का भी विधान है।
छोटी दिवाली का पावन त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली के साथ-साथ रूप चौदस, काली चतुर्दशी और नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है।