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October 2025 Vrat Tyohar (अक्टूबर 2025 व्रत-त्योहार)

October 2025 Vrat Tyohar (अक्टूबर 2025 व्रत-त्योहार)

Vrat Tyohar September 2025: अक्टूबर महीने में पड़ेंगे कई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार, यहां विस्तार से देखें लिस्ट

अक्टूबर का महीना भारत में अध्यात्म, उत्सव और सामाजिक मेल-जोल का प्रतीक होता है। यह समय धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं को भी एक नया उत्साह प्रदान करता है। इस माह में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार आते हैं, जो जीवन में संयम, भक्ति और समाज के प्रति कर्तव्यों की भावना को जागृत करते हैं। अक्टूबर 2025 में व्रतों और त्योहारों की एक समृद्ध श्रृंखला देखने को मिलेगी, जिनमें महानवमी, दशहरा, दिवाली, करवा चौथा, भाई दूज और छठ पूजा जैसे पर्व शामिल हैं। ये अवसर न केवल धार्मिक विश्वासों को बल देते हैं, बल्कि परिवार और समाज के बीच संबंधों को भी प्रगाढ़ बनाते हैं। आइए, अक्टूबर 2025 में आने वाले प्रमुख व्रत और त्योहारों पर एक विस्तृत दृष्टि डालते हैं।

अक्टूबर 2025 व्रत-त्योहार कैलेंडर लिस्ट यहां देखें

1 अक्टूबर (बुधवार): महा नवमी, सरस्वती बलिदान

  • महा नवमी- महा नवमी दुर्गा पूजा का तीसरा और अंतिम दिन है, जिसमें देवी दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन देवी दुर्गा ने दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध किया था। महा नवमी पर महास्नान और षोडशोपचार पूजा से पूजा का आरंभ होता है, और नवमी हवन किया जाता है, जो दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। नवमी तिथि के अनुसार पूजा और व्रत किया जाता है, और बलिदान के लिए अपराह्न काल सबसे अच्छा समय माना जाता है।
  • सरस्वती बलिदान- नवरात्रि के दौरान सरस्वती पूजा के तृतीय दिवस को सरस्वती बलिदान दिवस के रूप में जाना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, जो हिन्दू धर्म की प्रमुख तीन देवियों में से एक हैं। सरस्वती बलिदान पूजा उत्तराषाढा नक्षत्र में की जानी चाहिए, जिसमें पहले उत्तर पूजा की जाती है और फिर नारियल से हवन किया जाता है। इसके बाद उत्तराषाढा नक्षत्र के दौरान कूष्माण्ड की बलि प्रदान की जाती है।

2 अक्टूबर (गुरूवार): सरस्वती विसर्जन, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी/दशहरा, बंगाल विजयादशमी, मैसूर दसरा

  • सरस्वती विसर्जन- नवरात्रि के दौरान सरस्वती पूजा के चौथे और अंतिम दिन को सरस्वती विसर्जन दिवस या सरस्वती उद्वासन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की विधिवत आराधना करनी चाहिए और उनसे बुद्धि, विद्या और ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना करनी चाहिए। श्रवण नक्षत्र में सरस्वती विसर्जन करना उचित माना जाता है। विसर्जन के साथ ही चार दिवसीय सरस्वती पूजा का समापन हो जाता है।
  • दुर्गा विसर्जन- दुर्गा विसर्जन दशमी तिथि के दौरान एक निश्चित शुभ समय में किया जाता है, जो आमतौर पर प्रातःकाल या अपराह्न में होता है। यदि श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि दोनों अपराह्न में होते हैं, तो अपराह्न को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। विसर्जन के बाद, कई भक्त नवरात्रि के उपवास को तोड़ते हैं, इसलिए दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त नवरात्रि पारण के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।
  • विजयादशमी/दशहरा - विजयादशमी का त्योहार भगवान श्री राम की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। इसे दशहरा या दसरा भी कहा जाता है और नेपाल में इसे दशैं के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जिन्हें अपराह्न समय में करना उचित माना जाता है।
  • बंगाल विजयादशमी - विजयादशमी का त्योहार भगवान राम की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है, जिसे दशहरा या दसरा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में विजयादशमी अन्य राज्यों से एक दिन बाद मनाई जा सकती है, क्योंकि यहाँ मुहूर्त की बजाय केवल दशमी तिथि को महत्व दिया जाता है, जबकि अन्य राज्यों में मध्यान्ह के समय तिथि और नक्षत्र के संयोग के आधार पर मनाया जाता है। नेपाल में इसे दशैं के रूप में मनाया जाता है।
  • मैसूर दसरा - विजयादशमी के उत्सव पर मैसूर में एक भव्य दशहरा शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें देवी चामुण्डेश्वरी की प्रतिमा एक सुसज्जित हाथी पर विराजमान होकर चलती है। इस शोभायात्रा में झांकी, नृत्य समूह, संगीत, सजे हुए हाथी, घोड़े और ऊंट शामिल होते हैं। लगभग पांच किलोमीटर लम्बी यह शोभायात्रा मैसूर पैलेस से शुरू होकर बन्निमन्तप में समाप्त होती है, जहां शमी के पेड़ की पूजा की जाती है। यह हाथी परेड 'जम्बो सवारी' के नाम से प्रसिद्ध है।

3 अक्टूबर (शुक्रवार): पापांकुशा एकादशी

  • पापांकुशा एकादशी - पापांकुशा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में रखा जाता है। इस व्रत के पालन से मनुष्य अपने जीवन के पापों से मुक्ति पा सकता है और यमलोक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। रात्रि जागरण और भगवान का स्मरण भी इस व्रत का हिस्सा है। द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को अन्न और दक्षिणा दान करने के बाद व्रत का समापन होता है। व्रत के नियमों का पालन करने से व्रती को बैकुंठ धाम प्राप्त होता है।

4 अक्टूबर (शनिवार): शनि त्रयोदशी, शनि प्रदोष व्रत

  • शनि त्रयोदशी - प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है और इसे दक्षिण भारत में प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। यह व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी को किया जाता है, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आती हैं। प्रदोष व्रत के दिन के अनुसार इसे सोम प्रदोष, भौम प्रदोष और शनि प्रदोष कहा जाता है, जब यह क्रमशः सोमवार, मंगलवार और शनिवार को पड़ता है।
  • शनि प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत चंद्र मास की दोनों त्रयोदशी को किया जाता है, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में आती हैं। यह व्रत तब किया जाता है जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल में व्याप्त होती है, जो सूर्यास्त से शुरू होता है। शनि प्रदोष व्रत, जो शनिवार को पड़ता है, नाना प्रकार के संकटों और बाधाओं से मुक्ति के लिए किया जाता है। भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं, इसलिए यह व्रत शनि ग्रह से संबंधित दोषों, कालसर्प दोष और पितृ दोष के निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है। इस व्रत के पालन से भगवान शिव की कृपा से सभी ग्रह दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है और शनि देव की कृपा से कर्मबन्धन काटने में मदद मिलती है।

6 अक्टूबर (सोमवार): आश्विन पूर्णिमा व्रत, कोजागर पूजा, शरद पूर्णिमा

  • आश्विन पूर्णिमा व्रत - हिन्दु धर्म में पूर्णिमा व्रत को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है, जो प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। बत्तीसी पूर्णिमा व्रत, जिसे द्वात्रिंशी पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है, का उल्लेख भविष्यपुराण में है, जिसमें मार्गशीर्ष से पौष माह तक की पूर्णिमाओं में व्रत करने और भाद्रपद की पूर्णिमा को उद्यापन करने का विधान है। इस व्रत से सुख-सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु के पूजन और चन्द्रोपासना के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिससे पापों का क्षय, पुण्य वृद्धि और मानसिक शुद्धि होती है। विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में इसका उल्लेख है, जो इसकी कल्याणकारी और फलदायी प्रकृति को दर्शाता है।
  • कोजागर पूजा - कोजागर व्रत पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा-आराधना की जाती है। इस व्रत में रात्रिकाल में जागरण करने का विधान है, क्योंकि आश्विन पूर्णिमा की रात्रि में माता लक्ष्मी संसार में भ्रमण हेतु निकलती हैं और जागते हुए भक्तों को धन-धान्य से सम्पन्न करती हैं। इस व्रत को कोजागरी पूजा, बंगाली लक्ष्मी पूजा और कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। स्कन्दपुराण के अनुसार, कोजगर व्रत एक सर्वश्रेष्ठ व्रत है, जिसका पालन करने से उत्तम गति प्राप्त होती है और जीवन में ऐश्वर्य, आरोग्य और सुख की प्राप्ति होती है।
  • शरद पूर्णिमा - शरद पूर्णिमा हिन्दु कैलेण्डर में एक प्रमुख पूर्णिमा है, जिसमें चन्द्रमा की सोलह कलाओं का महत्व है। इस दिन चन्द्रमा की पूजा करना विशेष महत्व रखता है, क्योंकि सोलह कलाओं का संयोजन एक आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करता है। भगवान श्री कृष्ण को सोलह कलाओं से परिपूर्ण अवतार माना जाता है, जबकि भगवान श्री राम को बारह कलाओं का संयोजन माना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन नवविवाहित सौभाग्यवती स्त्रियां उपवास प्रारम्भ करती हैं, जो वर्ष की प्रत्येक पूर्णिमासी को उपवास करने का संकल्प लेती हैं। गुजरात में इसे शरद पूनम के नाम से जाना जाता है।

7 अक्टूबर (मंगलवार): वाल्मिकी जयंती , मीराबाई जयंती, आश्विन पूर्णिमा

  • वाल्मिकी जयंती - महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की। उन्हें आदि कवि भी कहा जाता है। वाल्मीकि की जयंती आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। वह भगवान श्री राम के समकालीन थे और उन्होंने अपने आश्रम में देवी सीता को शरण दी थी, जहां उनके जुड़वां पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था। वाल्मीकि का प्रारंभिक जीवन एक डाकू के रूप में था, लेकिन देवर्षि नारद मुनि के परामर्श से उन्होंने राम नाम का जाप करते हुए तपस्या की और महर्षि वाल्मीकि बन गए।
  • मीराबाई जयंती - मीरा बाई एक महान हिन्दु कवि और भगवान श्री कृष्ण की भक्त थीं। उनका जन्म 1498 में राजस्थान के कुडकी गांव में हुआ था और उनका विवाह चित्तौड़ के राजा भोज राज से हुआ था। मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण को अपना प्रियतम माना और उनकी भक्ति में जीवन समर्पित किया। उन्होंने लगभग 1300 कविताएं लिखीं जो भगवान श्री कृष्ण की स्तुति में हैं। मीरा बाई की जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्यों पर एकरूपता नहीं मिलती। उनकी मृत्यु 1547 में हुई थी और प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, वह चमत्कारिक रूप से कृष्ण की छवि में विलीन हो गई थीं।
  • आश्विन पूर्णिमा - आश्विन पूर्णिमा हिन्दुओं के लिए एक शुभ तिथि है, जो शरद ऋतु में आती है। इस दिन चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ प्रकाशित होता है और दूध-चावल की खीर बनाकर चन्द्रमा की किरणों में रखी जाती है, जिससे उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं। आश्विन पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागर लक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है, जिसमें देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। इस रात जागरण करने वालों को माता लक्ष्मी धन-धान्य और सुख-सम्पत्ति प्रदान करती हैं।

8 अक्टूबर (बुधवार): कार्तिक मास प्रारंभ

  • कार्तिक मास प्रारंभ - हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस महीने में भगवान विष्णु अपने लंबे विश्राम के बाद जागते हैं। इस मास में भगवान विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने से सभी तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करना या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करना पुण्यदायी माना जाता है, जिसे कार्तिक स्नान भी कहा जाता है। इसके अलावा, इस मास में भजन-कीर्तन, दीपदान और तुलसी की पूजा-अर्चना करना भी शुभ माना जाता है। कार्तिक मास में करवा चौथ, दिवाली और भाई दूज जैसे प्रमुख पर्व भी मनाए जाते हैं।

10 अक्टूबर (शुक्रवार): करवा चौथ, मासिक कार्तिगाई, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी

  • करवा चौथ - करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, हालांकि अमांत पंचांग का पालन करने वाले क्षेत्रों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इसे आश्विन माह में माना जाता है। यह अंतर केवल माह के नाम का होता है, जबकि तिथि सभी जगह एक ही रहती है। करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी एक ही दिन पड़ते हैं और दोनों का धार्मिक महत्व जुड़ा होता है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए सूर्योदय से चंद्रमा दर्शन तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है और व्रत चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करने के बाद ही खोला जाता है। मिट्टी के करवा (करक) का इस व्रत में विशेष महत्व होता है, जिससे चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है और पूजा के बाद इसे ब्राह्मण या किसी सुहागन को दान दिया जाता है। करवा चौथ को कुछ स्थानों पर करक चतुर्थी भी कहा जाता है।
  • मासिक कार्तिगाई - कार्तिगाई दीपम तमिल हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्राचीन और प्रमुख त्योहार है, जिसे विशेष रूप से भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय घरों और गलियों में तेल के दीप एक पंक्ति में जलाए जाते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय और आलोकित हो उठता है। यह पर्व कृत्तिका या कार्तिकाई नक्षत्र के प्रभावी होने पर मनाया जाता है और इसी नक्षत्र के नाम से इसका नाम भी लिया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए स्वयं को एक अनन्त प्रकाश ज्योति में परिवर्तित कर लिया था। यद्यपि कार्तिगाई का पालन हर महीने किया जाता है, लेकिन कार्तिकाई माह में आने वाला कार्तिगाई दीपम सबसे विशेष माना जाता है। तिरुवन्नामलई की पहाड़ी पर इस अवसर पर एक विशाल दीप जलाया जाता है, जिसे महादीपम कहा जाता है और यह कई किलोमीटर दूर से दिखाई देता है। इस पर्व के दौरान हज़ारों श्रद्धालु वहां एकत्र होते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं।
  • वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी - कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को वक्रतुण्ड संकष्टी व्रत मनाया जाता है, जिसमें भगवान गणेश के वक्रतुण्ड स्वरूप की पूजा की जाती है। गणेश जी के अष्टविनायक रूपों में पहला स्वरूप वक्रतुण्ड माना जाता है, जिनका अर्थ है टेढ़ी सूंड या टेढ़े मुख वाले गणेश। मुद्गल पुराण सहित कई धर्मग्रंथों में इन रूपों का विस्तृत वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, मत्सरासुर नामक दैत्य का वध करने के लिए गणेश जी ने वक्रतुण्ड रूप धारण किया था और अंततः उसे पराजित कर क्षमा याचना के पश्चात् जीवन दान दिया।

13 अक्टूबर (सोमवार): अहोई अष्टमी, राधा कुण्ड स्नान, कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी

  • अहोई अष्टमी - अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपने पुत्रों की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं, जिसमें वे उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (सायंकाल) तक कठोर उपवास रखती हैं। इस व्रत का पारण आकाश में तारों के दर्शन के बाद किया जाता है, हालांकि कुछ महिलाएं चंद्रमा के दर्शन के उपरांत व्रत खोलती हैं, लेकिन चंद्रोदय देर से होने के कारण यह कठिन होता है। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली से आठ दिन पहले आता है, जो उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है। अष्टमी तिथि को किए जाने के कारण इसे अहोई आठें भी कहा जाता है। करवा चौथ की तरह ही यह व्रत भी निर्जल उपवास के रूप में मनाया जाता है और संध्या समय तारे दिखाई देने पर ही इसका पारण किया जाता है। 
  • राधा कुण्ड स्नान - अहोई अष्टमी के दिन राधाकुण्ड में स्नान करना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पावन माना जाता है। विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए जिन्हें गर्भधारण में कठिनाई होती है। उत्तर भारतीय पूर्णिमान्त पंचांग के अनुसार यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन राधाकुण्ड में डुबकी लगाने से राधा रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान की प्राप्ति में सफलता मिलती है। हर वर्ष हज़ारों दंपत्ति इस आस्था के साथ गोवर्धन पहुंचते हैं और मध्यरात्रि के निशिता काल में डुबकी लगाते हैं, जिसे सबसे शुभ समय माना गया है। दंपत्ति कुष्मांडा (कच्चा सफेद पेठा) को लाल वस्त्र में सजाकर जल में राधा रानी को अर्पित करते हैं, ताकि उनकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण हो। जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वे दोबारा राधाकुण्ड आकर डुबकी लगाते हैं और आभार प्रकट करते हैं।
  • कालाष्टमी - कालाष्टमी, हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और यह भगवान कालभैरव की पूजा का प्रमुख दिन होता है। भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और भैरव स्वरूप की आराधना करते हैं। साल की सबसे महत्वपूर्ण कालाष्टमी को कालभैरव जयंती कहा जाता है, जो उत्तर भारत के पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह और दक्षिण भारत के अमांत पंचांग के अनुसार कार्तिक माह में आती है, हालांकि तिथि एक ही होती है। यह वही दिन माना जाता है जब भगवान शिव ने कालभैरव रूप में अवतार लिया था। इसे भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, व्रत उसी दिन किया जाता है जब अष्टमी तिथि रात्रि में प्रबल हो, भले ही वह सप्तमी से शुरू हो रही हो। 
  • मासिक कृष्ण जन्माष्टमी - प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भक्त मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा कर उनके आशीर्वाद से दुखों से मुक्ति की कामना की जाती है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके भगवान कृष्ण की पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। पूजा में फूल, अक्षत, तुलसी दल अर्पित करने के बाद धूप-दीप जलाकर बाल गोपाल की आरती की जाती है। भगवान को माखन-मिश्री और मेवे का भोग अर्पित कर प्रसाद का वितरण करना शुभ माना जाता है।

17 अक्टूबर (शुक्रवार): गोवत्स द्वादशी, रमा एकादशी

  • गोवत्स द्वादशी - गोवत्स द्वादशी धनतेरस से एक दिन पहले मनाई जाती है, जिसमें गायों और बछड़ों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद उन्हें गेहूं से बने उत्पाद दिए जाते हैं। इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं वे दिनभर गेहूं और दूध से बने उत्पादों का सेवन नहीं करते। इसे नन्दिनी व्रत भी कहा जाता है, जिसमें नन्दिनी नामक दिव्य गाय की पूजा होती है। महाराष्ट्र में इसे वसु बारस के नाम से जाना जाता है और दीपावली का पहला दिन माना जाता है।
  • रमा एकादशी - कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है, जिसमें श्रीहरि और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और धन की कमी नहीं होती। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से तिजोरी सदैव धन से भरी रहती है और परिवार के सदस्यों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है।

18 अक्टूबर (शनिवार): धनतेरस, यम दीपम, शनि प्रदोष व्रत

  • धनतेरस - धनतेरस पूजा प्रदोष काल के दौरान की जानी चाहिए, जो सूर्यास्त के बाद लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक रहता है। इस पूजा के लिए स्थिर लग्न का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, जिससे लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती हैं। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और यह अक्सर प्रदोष काल के साथ मिलता है। धनतेरस पूजा के लिए त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और स्थिर लग्न का समय महत्वपूर्ण होता है। इस दिन यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है, जिसे यम दीपम कहा जाता है, ताकि परिवार के सदस्यों की असामयिक मृत्यु से बचा जा सके।
  • यम दीपम - दीवाली के दौरान त्रयोदशी तिथि को घर के बाहर एक दीपक यमराज के लिए जलाया जाता है, जिसे यम दीपम कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दीपदान से यमदेव प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। सन्ध्याकाल में जलाए गए इस दीपक से परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना की जाती है।
  • शनि प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी तिथियों पर किया जाता है, जो शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आती हैं। यह व्रत तब किया जाता है जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में व्याप्त होती है। शनि प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने पर विशेष महत्व रखता है, जो भगवान शिव और शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत से शनि ग्रह से संबंधित दोष, कालसर्प दोष और पितृ दोष आदि का निवारण होता है। शास्त्र सम्मत विधि से व्रत करने पर भगवान शिव की कृपा से सभी ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है और कर्म बंधन कट जाते हैं।

19 अक्टूबर (रविवार): काली चौदस, हनुमान पूजा, मासिक शिवरात्रि

  • काली चौदस - काली चौदस, जिसे भूत चतुर्दशी भी कहा जाता है, मुख्य रूप से गुजरात में दीवाली उत्सव के दौरान मनाई जाती है। यह चतुर्दशी तिथि पर तब निर्धारित होती है जब मध्य रात्रि में चतुर्दशी तिथि प्रचलित होती है, जिसे महा निशिता काल कहा जाता है। इस दिन मध्यरात्रि में श्मशान जाकर अंधकार की देवी और वीर वेताल की पूजा की जाती है। काली चौदस को रूप चौदस और नरक चतुर्दशी से अलग समझना चाहिए। इसे बंगाल काली पूजा से भी भ्रमित नहीं करना चाहिए, जो एक दिन बाद अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है। इसलिए काली चौदस की तिथि का अवलोकन करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
  • हनुमान पूजा - हनुमान पूजा दीवाली से एक दिन पहले की जाती है, जो काली चौदस के दिन आती है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से बुरी आत्माओं से सुरक्षा और शक्ति की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि उनसे पहले हनुमान जी का पूजन किया जाएगा। इसलिए लोग दीवाली से पहले हनुमान जी की पूजा करते हैं। अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में इस दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है, जबकि उत्तर भारत में अधिकांश भक्त चैत्र पूर्णिमा पर हनुमान जन्मोत्सव मनाते हैं।
  • मासिक शिवरात्रि - महाशिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के मिलन का विशेष पर्व है, जो हर साल फाल्गुन या माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की थी। महाशिवरात्रि भगवान शिव के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है और श्रद्धालु इस दिन शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं। मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से भगवान शिव की कृपा से कठिन कार्य भी पूरे हो सकते हैं। इस व्रत को विवाहित जीवन में सुख-शांति और विवाह की कामना के लिए भी किया जाता है। मंगलवार के दिन पड़ने वाली शिवरात्रि विशेष शुभ मानी जाती है। शिवरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में निशिता काल के दौरान की जाती है, जो भगवान शिव के भोले-भाले स्वभाव को दर्शाती है।

20 अक्टूबर (सोमवार): लक्ष्मी पूजा, नरक चतुर्दशी, दीवाली, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, काली पूजा, कमला जयंती

  • लक्ष्मी पूजा - दीपावली का त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय, कार्तिक अमावस्या की तिथि पर मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसी कारण, हर वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों द्वारा दीप जलाकर इस पर्व को मनाया गया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और हर वर्ष दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है, दीप जलाए जाते हैं और घरों को रोशनी से सजाया जाता है। धार्मिक विश्वास है कि मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
  • नरक चतु्र्दशी - दीपावली का पंचदिवसीय उत्सव धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज तक मनाया जाता है। इसमें चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन अभ्यंग स्नान करने की परंपरा है। खासकर चतुर्दशी को, जिसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दीवाली कहा जाता है, अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व चतुर्दशी तिथि में स्नान करने से नरकगति से मुक्ति मिलती है। स्नान के समय तिल के तेल का उबटन प्रयोग में लाया जाता है। कभी-कभी यह तिथि लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन भी पड़ सकती है, जो चतुर्दशी और अमावस्या की स्थिति पर निर्भर करता है। काली चौदस और नरक चतुर्दशी अक्सर एक मानी जाती हैं, जबकि वे वास्तव में दो अलग पर्व होते हैं।
  • केदार गौरी व्रत - केदार गौरी व्रत दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे केदार व्रतम् भी कहा जाता है। यह व्रत दीपावली अमावस्या के दिन किया जाता है और लक्ष्मी पूजा के साथ जुड़ा होता है। कुछ परिवारों में यह व्रत 21 दिनों तक चलता है, जबकि अधिकांश लोग एक दिन का उपवास रखते हैं। भगवान शिव के भक्तों के लिए यह व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण है और दीवाली के अवसर पर विशेष रूप से मनाया जाता है।
  • दीवाली - कार्तिक माह में दीवाली का पर्व अत्यधिक उत्साह और बेसब्री से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह पर्व भगवान श्रीराम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है और लोग इसे बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं।
  • चोपड़ा पूजा - गुजरात में दीवाली को चोपड़ा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें व्यापारी वर्ग देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर एक सफल और लाभप्रद व्यावसायिक वर्ष की प्रार्थना करते हैं। इस दिन नए बही-खातों या लैपटॉप की पूजा की जाती है, जिसमें स्वास्तिक, ॐ और शुभ-लाभ बनाए जाते हैं। चोपड़ा पूजा के लिए चौघड़िया मुहूर्त का विशेष महत्व है, जिसमें अमृत, शुभ, लाभ और चर मुहूर्त सबसे शुभ माने जाते हैं। हालांकि, लग्न आधारित दीवाली मुहूर्त और प्रदोष लक्ष्मी पूजा मुहूर्त को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह परंपरा गुजरात के अलावा राजस्थान और महाराष्ट्र में भी व्यापारी वर्ग द्वारा मनाई जाती है और इसे मुहूर्त पूजन भी कहा जाता है।
  • शारदा पूजा - दीपावली पूजा गुजरात में शारदा पूजा और चोपड़ा पूजा के नाम से भी जानी जाती है, जिसमें देवी सरस्वती, लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा की जाती है। देवी सरस्वती ज्ञान, बुद्धि और विद्या की देवी हैं, जबकि माता लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं। श्री गणेश बुद्धि और विद्या के प्रदाता हैं। इस दिन तीनों की पूजा करने से स्थाई संपत्ति और वृद्धि की कामना की जाती है। शारदा पूजा विद्यार्थियों और व्यापारी वर्ग दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें नए चोपड़े (बही-खातों) की पूजा की जाती है और समृद्धि व सफलता के लिए प्रार्थना की जाती है। यह पूजा दीवाली हैं और इसका विशेष महत्व गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में है।
  • काली पूजा - काली पूजा एक हिंदू त्योहार है, जो देवी काली को समर्पित है। यह पर्व दीवाली उत्सव के दौरान अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में काली पूजा का विशेष महत्व है, जबकि अन्य जगहों पर लक्ष्मी पूजा की जाती है। काली पूजा के लिए मध्यरात्रि का समय उपयुक्त माना जाता है, जबकि लक्ष्मी पूजा के लिए प्रदोष का समय उपयुक्त है। इन राज्यों में लक्ष्मी पूजा का प्रमुख दिन आश्विन माह की पूर्णिमा को कोजागर पूजा या बंगाल लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है। काली पूजा को श्यामा पूजा भी कहा जाता है और इसका अपना विशेष महत्व और अनुष्ठान हैं।
  • कमला जयंती - देवी कमला दस महाविद्याओं में से दसवीं महाविद्या हैं और उन्हें तांत्रिक लक्ष्मी के रूप में भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में उन्हें देवी लक्ष्मी के समान स्वरूप में वर्णित किया गया है, जो अपने भक्तों को संपत्ति, समृद्धि, उर्वरता, और सौभाग्य प्रदान करती हैं। देवी कमला की साधना से धन और धान्य की कमी नहीं रहती और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। उन्हें कमल पुष्प अत्यंत प्रिय है। देवी कमला भगवान विष्णु की वैष्णवी शक्ति और लीला सहचरी हैं, और आगम-निगम दोनों ही उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। देवी कमला को त्रिपुरा भी कहा जाता है, क्योंकि वह भगवान शिव के त्रिपुर स्वरूप की शक्ति हैं या भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों उनकी आराधना करते हैं।

21 अक्टूबर (मंगलवार): दर्श अमावस्या, कार्तिक अमावस्या 

  • दर्श अमावस्या - हिंदू धर्म में दर्श अमावस्या पितरों को समर्पित एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसमें रात के समय विशेष उपाय किए जाते हैं। ये उपाय जीवन में सुख-समृद्धि लाने और बिगड़े कामों को बनाने में प्रभावी माने जाते हैं। दर्श अमावस्या की रात में किए जाने वाले उपाय पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने, नकारात्मकता को दूर करने और चंद्र दोष को शांत करने से संबंधित होते हैं, जो रुके हुए कार्यों को गति देते हैं और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं।
  • कार्तिक अमावस्या - कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मीजी पृथ्वी पर आती हैं, जैसा कि ब्रह्म पुराण में बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन दीपदान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। स्कंदपुराण के मुताबिक, कार्तिक अमावस्या पर गीता पाठ, अन्न दान और भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाना चाहिए। इससे सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख बढ़ता है। अन्नदान करने से चिरंजीवी होने का फल मिलता है और यह हजारों गाय दान करने जितना पुण्य देता है।

22 अक्टूबर (बुधवार): गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, बलि प्रतिपदा, गुजराती

  • गोवर्धन पूजा - गोवर्धन पूजा आमतौर पर दीवाली के अगले दिन मनाई जाती है, जो भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देवता को पराजित करने के उपलक्ष्य में है। यह कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि के दौरान मनाया जाता है और इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन विभिन्न अनाज, कढ़ी और सब्जियों से बने भोजन को भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। महाराष्ट्र में इसे बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान वामन की राजा बालि पर विजय का पुण्यस्मरण किया जाता है। गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ भी मिल सकता है, जो कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
  • अन्नकूट पूजा - गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियों और व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस दिन गेहूं, चावल, बेसन की कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। यह पूजा भगवान कृष्ण की पूजा के साथ-साथ प्रकृति और अन्न की महत्ता को भी दर्शाती है।
  • बलि प्रतिपदा - बलि पूजा, जिसे बलि प्रतिपदा भी कहा जाता है, कार्तिक प्रतिपदा के दिन मनाई जाती है, जो दीवाली के अगले दिन होती है। यह पूजा दानव राजा बलि को समर्पित है, जिन्हें भगवान विष्णु ने पाताल लोक में भेज दिया था लेकिन उन्हें तीन दिन के लिए पृथ्वी पर आने की अनुमति दी थी। ऐसी मान्यता है कि राजा बलि इस दौरान अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। बलि पूजा में राजा बलि और उनकी पत्नी विन्ध्यावली की छवि को पाँच रंगों से सजाकर पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में राजा बलि की पूजा ओणम उत्सव के दौरान भी की जाती है, जिसकी अवधारणा उत्तर भारत में बलि पूजा के समान है।
  • गुजराती नया साल - गुजराती नव वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, जो अक्सर अन्नकूट पूजा या गोवर्धन पूजा के दिन होता है। इस दिन पुरानी खाता पुस्तकों को बंद कर नई पुस्तकों का शुभारंभ किया जाता है, जिन्हें चोपड़ा कहा जाता है। दीवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा में नई चोपड़ाओं का पूजन किया जाता है और लक्ष्मीजी के आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है, जिसे चोपड़ा पूजन कहा जाता है। इस दौरान नई पुस्तकों पर शुभ चिह्न बनाकर वित्तीय वर्ष को लाभदायक बनाने की कामना की जाती है।

23 अक्टूबर (गुरूवार): भैया दूज, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा

  • भैया दूज - भाई दूज का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों को टीका लगाकर उनके दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन बहनें प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और भाई को आमंत्रित कर थाली सजाती हैं। भाई का तिलक करके कलावा बांधती हैं और आरती उतारती हैं। भाई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बहन को उपहार देते हैं। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन यमुना में स्नान का विशेष महत्व है, जिससे पाप नष्ट होते हैं और आयु व धन में वृद्धि होती है। इस व्रत से बहनों को सौभाग्य और समृद्धि मिलती है। साथ ही भाई यमलोक के भय से मुक्त रहते हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।
  • यम द्वितीया - यम द्वितीया का पर्व कार्तिक माह की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है, जो आमतौर पर दीवाली के दो दिन बाद आता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें भगवान चित्रगुप्त और यमदूतों की भी पूजा शामिल है। यम द्वितीया पूजन के लिए अपराह्न काल सबसे उपयुक्त समय है और पूजन से पहले प्रातःकाल यमुना स्नान करने का सुझाव दिया जाता है। इस दिन को भाई दूज के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों को भोजन कराती हैं और उन्हें दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन बहनों के घर भोजन करने से भाइयों को दीर्घायु प्राप्त होती है। साथ ही बहनों को अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है।
  • चित्रगुप्त पूजा - चित्रगुप्त पूजा कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाई जाती है, जो मुख्यतः कायस्थ समाज द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना की जाती है, जो यमराज के सहायक हैं और जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त पूजा में कलम-दवात और बही-खातों की भी पूजा की जाती है, जिसे मस्याधार पूजा भी कहा जाता है। भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ समाज के अधिष्ठाता और कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। उनके प्रमुख मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर और खजुराहो में हैं। साथ ही उनकी पूजा भारत के अलावा थाईलैंड में भी की जाती है।

25 अक्टूबर (शनिवार): नागुला चविथी, विनायक चतुर्थी

  • नागुला चविथी: नागुला चविथी पर्व दीपावली अमावस्या के चार दिन बाद कार्तिक मास में मनाया जाता है, जो नाग देवताओं की पूजा के लिए समर्पित है। यह पर्व मुख्यतः विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने बच्चों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए मनाया जाता है, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में। इस दिन लोग जीवित सर्पों की पूजा करते हैं, जो नाग देवताओं के प्रतिनिधि माने जाते हैं। हिंदू धर्म में सर्पों को पूजनीय माना गया है, और नागुला चविथी पूजन में बारह विशिष्ट नागों की पूजा की जाती है। यह पूजा नाग देवताओं को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है।
  • विनायक चतुर्थी: विनायक चतुर्थी हर महीने में दो बार आती है - शुक्ल पक्ष में विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष में संकष्टी चतुर्थी। भाद्रपद महीने में आने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में प्रसिद्ध है। विनायक चतुर्थी को वरद विनायक को भी कहा जाता है, जिसमें भगवान गणेश से आशीर्वाद और मनोकामना की पूर्ति की कामना की जाती है। विनायक चतुर्थी का व्रत करने से भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं, जो जीवन में उन्नति और मनवांछित फल प्राप्त करने में मदद करते हैं। इस दिन गणेश पूजा दोपहर के मध्याह्न काल में की जाती है, जो विनायक चतुर्थी के शुभ मुहूर्त के साथ निर्धारित होती है।

26 अक्टूबर (रविवार): दुर्गाष्टमी, सरस्वती पूजा, संधि पूजा 

  • लाभ पंचमी - लाभ पंचमी को गुजरात में सौभाग्य पंचमी, ज्ञान पंचमी और लाभ पंचम भी कहा जाता है, जो लाभ और सौभाग्य से जुड़ा हुआ है। इस दिन को अत्यधिक शुभ माना जाता है और ये दिन दीवाली उत्सव का समापन होता है। लाभ पंचमी पर पूजा करने से जीवन में लाभ, व्यवसाय में अनुकूलता और परिवार में सौभाग्य की वृद्धि होती है। गुजरात में अधिकांश व्यवसायी इस दिन अपनी व्यावसायिक गतिविधियां पुनः आरंभ करते हैं और इसे गुजराती नववर्ष का पहला कार्य दिवस मानते हैं। इस अवसर पर नए खाता-बही का उद्घाटन किया जाता है, जिसमें बायीं ओर 'शुभ' और दायीं ओर 'लाभ' लिखकर साथ ही केंद्र में स्वस्तिक बनाकर शुभारंभ किया जाता है।

27 अक्टूबर (सोमवार): छठ पूजा, स्कंद षष्ठी

  • छठ पूजा - छठ पूजा भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है, जो ऊर्जा और जीवन-शक्ति के देवता हैं। इस पावन अवसर पर भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करने से समृद्धि, प्रगति और कल्याण की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, डाला पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है, जो इस पर्व की विविधता और महत्व को दर्शाता है। इस पूजा के माध्यम से भक्त भगवान सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
  • स्कंद षष्ठी - भगवान स्कन्द तमिल हिंदुओं के एक प्रमुख देवता हैं, जो भगवान शिव-पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं। उन्हें मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रह्मण्य के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कन्द को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में व्यापक रूप से की जाती है। उनकी भक्ति और आराधना से भक्तों को आध्यात्मिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।

30 अक्टूबर (गुरूवार): गोपाष्टमी, मासिक दुर्गाष्टमी

  • गोपाष्टमी - गोपाष्टमी का त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो मथुरा, वृन्दावन और ब्रज क्षेत्र में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठाया था। गोपाष्टमी के दिन इन्द्र देव ने अपनी पराजय स्वीकार की थी। इस त्योहार पर गायों और उनके बछड़ों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है, जो गायों के प्रति सम्मान और आभार का प्रतीक है। महाराष्ट्र में इसे गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। गोपाष्टमी का पर्व गायों के महत्व और उनकी पूजा की परंपरा को दर्शाता है।
  • मासिक दुर्गाष्टमी - हर महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर दुर्गाष्टमी का उपवास किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु दुर्गा माता की पूजा करते हैं और पूरे दिन का व्रत रखते हैं। मुख्य दुर्गाष्टमी, जिसे महाष्टमी कहते हैं, आश्विन माह के शारदीय नवरात्रि उत्सव के दौरान पड़ती है। इस दिन को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है और मासिक दुर्गाष्टमी को मास दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत और पूजा से भक्त दुर्गा माता की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सुख-शांति और शक्ति की कामना करते हैं।

31 अक्टूबर (शुक्रवार): अक्षय नवमी, जगद्धात्री पूजा

  • अक्षय नवमी - अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी को मनाया जाता है, जो देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले आता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सत्ययुग का आरंभ हुआ था, इसलिए इसे सत्य युगादि भी कहा जाता है। इस दिन दान-पुण्य के कार्यों का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि इसका पुण्यफल कभी कम नहीं होता और अगले जन्मों में भी प्राप्त होता है। अक्षय नवमी का महत्व अक्षय तृतीया के समान है, जो त्रेतायुग का आरंभ है। इस दिन मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करना विशेष रूप से पुण्यदायी माना जाता है। अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है, जिसमें आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल में इसे जगद्धात्री पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सत्ता की देवी जगद्धात्री की पूजा की जाती है।
  • जगद्धात्री पूजा - कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को देवी जगद्धात्री की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा का एक रूप हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार और अन्य पूर्वी क्षेत्रों में बड़े उत्साह से की जाती है। देवी जगद्धात्री का अर्थ है "जगत की माता" या "संसार का पालन करने वाली"। उन्हें इस सृष्टि का पालन करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका स्वरूप शान्त, उदार और सशक्त है। साथ ही उन्हें सिंह पर आरूढ़, लाल वस्त्रों में, शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए दर्शाया जाता है। देवी जगद्धात्री की उपासना भारत के पूर्वी भागों में बहुत प्रचलित है और उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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