आम तौर पर नए साल की शुरुआत 1 जनवरी को होती है। लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होती है। इस बार यह तिथि 30 मार्च को पड़ेगी। बता दें कि हिंदू कैलेंडर, आम कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है, जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। विक्रम संवत की शुरुआत विक्रमादित्य नामक शासक ने की थी। इसके अलावा हिंदू नववर्ष को अलग-अलग नामों से विभिन्न राज्यों में जाना जाता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगाडी, कश्मीर में नवरेह नाम से त्योहार प्रसिद्ध हैं। चलिए आपको लेख के जरिए हिंदू नववर्ष के बारे में विस्तार से बताते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च 2025 को दोपहर 02:30 बजे से शुरू होगी और 30 मार्च 2025 को शाम 05:08 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार हिंदू नववर्ष 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन से विक्रम संवत 2082 की शुरुआत होगी।
हिंदू धर्म में हिंदू नववर्ष का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है, जिसमें माता के 9 रूपों की पूजा की जाती है। इसके अलावा इस दिन से एक और मान्यता जुड़ी है। माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी के चलते लोग चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अपने घरों को सजाते हैं, नए वस्त्र पहनते हैं और मंदिरों में खास पूजा की जाती है।
विक्रम संवत की शुरुआत विक्रमादित्य नामक शासक ने की थी। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल आगे है। उस समय के बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर ने इसे आगे बढ़ाने में मदद की। विक्रम संवत से ही साल में 12 महीने और सप्ताह में 7 दिन की शुरुआत हुई थी। विक्रम संवत में महीने सूर्य और चंद्र की गति पर निर्भर करते हैं।
किसी भी व्यक्ति के लिए घर उसका मंदिर होता है। इसी कारण से जब वो अपने घर के निर्माण कार्य की शुरुआत करता है, उससे पहले भूमि का पूजन करवाता है।
महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हम भगवान शिव की महिमा और उनकी प्रिय चीजों के बारे में बात करने जा रहे हैं। भगवान शिव को आशुतोष कहा जाता है, जिसका अर्थ है तुरंत और तत्काल प्रसन्न होने वाले देवता।
सनातन धर्म में मंत्र और स्तोत्र का विशेष महत्व माना जाता है। धर्म शास्त्रों में मंत्र जाप और स्तोत्र के नियमित पाठ के द्वारा भगवान को प्रसन्न करने का विधान है।