शनिदेव के प्रकोप से भला कौन अनजान है और व्यक्ति शनिदेव की दृष्टि से सदैव ही बचना चाहते हैं लेकिन जब देवाधिदेव महादेव ही शनिदेव की दृष्टि से न बच सके तो हम इंसानों की क्या ही मजाल ? एक बड़ी ही रोचक कथा के अनुसार -
एक बार महादेव ने शनि को उनकी दृष्टि की परीक्षा लेने के उद्देश्य बुलाया कि उनकी दृष्टि का मुझपर क्या असर होता है, शनिदेव को बुलाकर बोले कि- हे, शनिदेव मैं देखना चाहता हूँ कि आपकी दृष्टि मुझपर क्या प्रभाव डालती है तो शनिदेव बोले कि हे प्रभु आप क्यों मुझे दुविधा में डाल रहे हैं, जबकि आप तो मेरी दृष्टि का प्रभाव जानते ही हैं जो मुझे आपकी तपस्या के फल स्वरूप ही प्राप्त हुई है। लेकिन महादेव नहीं माने और बोले कि नहीं मुझे तो परीक्षण करना ही है, महादेव की बात सुनकर शनिदेव कैलाश से चले गए।
अगले दिन जब शनिदेव अपने गुरु महादेव कि आज्ञानुसार वापस कैलाश पहुंचे तो वहाँ महादेव नहीं थे इसलिए शनिदेव वहीँ एक स्थान पर बैठकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे इधर भोलेनाथ उनकी दृष्टि से बचने के लिए हाथी का रूप बनाकर दिनभर जंगल में विचरण करते रहे।
शाम होने पर जब शिव अपने मूल स्वरुप में आकर वापस कैलाश पहुंचे और शनिदेव को बोले कि अरे शनि क्या हुआ तुम्हारी दृष्टि का? मुझ पर तो तुम्हारी दृष्टि का कोई प्रभाव ही नहीं हुआ।
तब शनिदेव मुस्कुराकर बोले कि हे प्रभु जब स्वयं महादेव मेरी दृष्टि के भय से दिनभर तक हाथी के रूप में जंगल में विचरण करते रहे तो आप ही बताइये इससे बड़ा और क्या साक्ष्य होगा, और इंसानों और अन्य जीवों पर मेरी दृष्टि का क्या प्रभाव होगा, उसपे भी प्रभु ये वरदान भी तो आपका ही दिया हुआ है तो फिर ये खाली कैसे जा सकता है।
महादेव शनिदेव कि बातों से बड़े ही प्रसन्न हुए और उन्हें विधिवत अपना कार्य करने का आशीर्वाद दिया, लेकिन शनिदेव ने महादेव से क्षमा याचना करते हुए कहा कि हे प्रभु आपके कहने पर ही सही लेकिन मैंने आप पर अपनी दृष्टि डालने का जो अपराध किया है इसलिए अब से कोई भी प्राणी आपके द्वादश ज्योर्तिर्लिंग का पथ आपके या मेरे समक्ष भक्तिपूर्वक करेगा उसपर मेरी दृष्टि का प्रकोप नहीं होगा और उसे मेरा आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।
तो अब आप समझे न कि शनिदेव अपने नियमों को लेकर कितने सख्त हैं लेकिन हाँ वे अच्छे कार्य करने वाले प्राणियों का कल्याण भी करते हैं। शनिदेव के स्तोत्र और मंत्र पड़ने के लिए जुड़े रहिये bhaktvatsal.com से।
बोलिये शनिदेव की जय, बोलो महादेव की जय
मेरे बाबा साथ,
छोड़ना ना तुझे है कसम,
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
चहुं दिशि बरसें राम रस,
छायों हरस अपार,
हिंदू धर्म में प्रत्येक माह की अष्टमी को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे विश्व में कृष्ण भक्तों के द्वारा खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है।