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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का थनौद गांव बहुत खास है। यहां नवरात्रि के दौरान एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां मां दुर्गा की प्रतिमाओं का श्रृंगार केवल महिलाएं ही करती हैं, जिसमें मूर्तिकारों की पत्नियां, बहनें, बेटियां और बहुएं शामिल होती हैं। इस परंपरा की जड़ें कई पीढ़ियों पुरानी है। मूर्तियों पर मेंहदी लगाने के लिए यहां प्रोफेशनल आर्टिस्ट बुलाए जाते हैं। जो प्रतिमाओं को आकर्षक और दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं। नवरात्रि की शुरुआत 03 अक्टूबर से हो रही है। ऐसे में आपको इस अनोखे तरह से मनाई जाने वाली नवरात्रि के बार में जानना चाहिए…...
दुर्ग जिले से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थनौद गांव को शिल्पग्राम के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई पीढ़ियों से मूर्ति निर्माण किया जा रहा है। थनौद गांव में बनी मूर्तियों की डिमांड देशभर में रहती है। नवरात्रि में बनने वाली सुंदर मूर्तियों का श्रृंगार नवरात्रि शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले ही शुरू हो जाता है। मूर्तियों को बनाते समय, गांव के कारीगर वेश्यालय और किन्नर के पैर के नीचे की मिट्टी मिलाकर प्रतिमा को मनचाहा आकार देते हैं।
थनौद की अनोखी परंपरा के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमाओं का श्रृंगार सिर्फ महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। गांव के मूर्तिकार बताते हैं कि यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। इन मूर्तियों का श्रृंगार घर की मां, बहन, बेटी और बहू ही करती हैं। मान्यता है कि बेटी और बहू के बिना मां का श्रृंगार अधूरा रह जाता है। यदि घर की महिलाएं किसी कारणवश बाहर होती हैं तो उन्हें नवरात्रि से पहले बुला लिया जाता है ताकि वह प्रतिमाओं का श्रृंगार कर पाएं।
वहीं, थनौद गांव में प्रतिमाओं को सजाने के लिए प्रोफेशनल मेंहदी आर्टिस्ट तक बुलाई जाती हैं। जो विभिन्न पंडालों में माता की प्रतिमाओं पर मेंहदी लगाने का काम करती हैं। मालूम हो कि यहां हर साल सिर्फ लड़कियां ही मां का श्रृंगार करती हैं और यह उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है। टीम की सभी लड़कियां खुद अपने हाथों से मां की प्रतिमा को सजाती हैं।
मूर्तियों के तैयार होने के बाद समिति के लोग मूर्तिकारों और श्रृंगार करने वाली महिलाओं का सम्मान करना भी नहीं भूलते। मां की प्रतिमा को तैयार करने में अपना योगदान देने वाली महिलाओं का सम्मान किया जाता है। नवरात्रि से एक हफ्ते पहले से ही मां को परिधान पहनाने और मेंहदी लगाने का काम शुरू हो जाता है। दुर्ग जिले के थनौद गांव की यह अनोखी परंपरा ना केवल कला और संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। बल्कि, इसमें महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां मूर्तियों का श्रृंगार सिर्फ महिलाओं द्वारा किया जाना इस परंपरा की सबसे बड़ी खासियत है
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