Logo

पेशवाई का इतिहास

पेशवाई का इतिहास

MahaKumbh 2025: 16वीं शताब्दी से चली आ रही पेशवाई की परंपरा, साधुओं ने मुगलों से लड़ा था युद्ध, जानिए पूरा इतिहास


महाकुंभ की शुरुआत में अब केवल 15 दिन से भी कम का समय बचा है।  इससे पहले, विभिन्न अखाड़े प्रयागराज में अपनी पेशवाई निकाल रहे हैं और नगर में प्रवेश कर रहे हैं। कई अखाड़ों ने अपनी पेशवाई पूरी कर ली है, जिन्हें देखने के लिए प्रयाग का वातावरण उमड़ पड़ा है। 


पेशवाई, अखाड़ों का भव्य नगर प्रवेश होता है, जो कुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है। यह संतों और महंतों का भव्य जुलूस होता है, जो उनकी शक्ति और संस्कृति का प्रतीक बनता है। यह परंपरा गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी है। आइए, हम आपको इस परंपरा के इतिहास और मुगलों से इसके संबंध के बारे में बताते हैं।



महाकुंभ में पेशवाई का मतलब  


महाकुंभ में साधु-संतों की पेशवाई एक प्रमुख आकर्षण होती है। सरल शब्दों में कहें तो, जब साधु-संत महाकुंभ के दौरान जुलूस निकालते हैं और नगर में प्रवेश करते हैं, तो इसे पेशवाई कहा जाता है। इस भव्य शोभायात्रा में बैंड-बाजे, ढोल-नगाड़े और हाथी-घोड़े के रथ शामिल होते हैं, जिन पर अखाड़ों के प्रमुख साधु विराजमान होते हैं। इसके अलावा, अनुयायी और शिष्य पैदल यात्रा करते हैं, और पंक्ति में सबसे आगे नागा साधु अपने शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए चलते हैं।



पेशवाई का इतिहास 


पेशवाई की परंपरा सदियों पुरानी मानी जाती है, और इसका एक गहरा संबंध मुगल काल की घटनाओं से भी है। कुछ ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार, 16वीं शताब्दी में जहांगीर ने कुंभ मेले के दौरान संतों के एकजुट होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद, जब कुंभ मेला आयोजित हुआ, तो जहांगीर की सेना ने संतों पर हमला कर दिया, जिसमें लगभग 60 संतों की मृत्यु हो गई। इस अत्याचार से नाराज नागा साधुओं ने मुकाबला किया और जहांगीर की सेना को हराया। तभी से कुंभ मेला क्षेत्र में संतों का एक साथ प्रवेश करने की परंपरा शुरू हुई।



पेशवाई का भव्य स्वरूप


पेशवाई का दृश्य अत्यंत भव्य और आकर्षक होता है। इसमें शामिल साधु-संत पारंपरिक वेशभूषा में होते हैं, जबकि नागा साधु अपने शरीर पर भभूत लगाए और शस्त्रों के साथ जुलूस में शामिल होते हैं, जो उन्हें विशेष ध्यान आकर्षित करने वाला बनाता है। इस भव्य शोभायात्रा में घोड़े, हाथी, ऊंट और फूलों से सजे रथ होते हैं। इसके अलावा, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि और वैदिक मंत्रोच्चार से वातावरण पूरी तरह से आध्यात्मिकता से भर जाता है।


........................................................................................................
यह भी जाने
HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang