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चार जगह ही क्यों लगता है कुंभ

चार जगह ही क्यों लगता है कुंभ

देश भर में सिर्फ चार जगहों पर ही क्यों लगता है कुंभ मेला, जानें इसके पीछे की पौराणिक कहानी 


कुंभ मेला भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह आयोजन हिंदू धर्म की गहराई और आस्था का प्रतीक है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। हर 12 वर्षों में यह महापर्व चार पवित्र स्थलों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित किया जाता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर सिर्फ इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला क्यों आयोजित किया जाता है? इसका जवाब पौराणिक कथाओं, ज्योतिष गणनाओं और ऐतिहासिक महत्व में छिपा है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 


कुंभ मेले का पौराणिक महत्व


कुंभ मेले की परंपरा का सीधा संबंध समुद्र मंथन की कथा से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। जब अमृत कलश निकला, तो उसे लेकर देवता और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया। भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ के माध्यम से अमृत को असुरों से बचाने का प्रयास किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में गिरीं। इन्हीं स्थानों को पवित्र मानते हुए यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा।


ज्योतिषीय गणना और कुंभ का महत्व


कुंभ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित एक अद्भुत घटना है। हिंदू धर्म में कुंभ का आयोजन तब किया जाता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य विशेष राशियों (मेष या सिंह) में प्रवेश करता है। इन खगोलीय परिस्थितियों को शुभ और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है।


इन 4 पवित्र स्थलों का विशेष महत्व


  1. प्रयागराज (इलाहाबाद): त्रिवेणी संगम के पवित्र स्थान प्रयागराज को कुंभ मेले का सबसे प्रमुख स्थान माना जाता है। यह गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम पर स्नान को अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है। गंगा और यमुना भौतिक रूप से दिखाई देती हैं, जबकि सरस्वती को अदृश्य माना जाता है। मान्यता है कि संगम पर स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
  2. हरिद्वार: गंगा का प्रवेश द्वार हरिद्वार, जहां गंगा नदी पहाड़ों से उतरकर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है, कुंभ मेले के लिए दूसरा महत्वपूर्ण स्थल है। यहां हर की पौड़ी घाट पर स्नान का विशेष महत्व है। यह स्थान शिवालिक पर्वतमाला के तल पर स्थित है और इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। हरिद्वार का कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।
  3. नासिक: गोदावरी के तट पर बसे नासिक में भव्य कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। यह स्थान त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां अमृत की बूंदें गिरी थीं, जिससे यह स्थान पवित्र हुआ। त्र्यंबकेश्वर में भगवान शिव के दर्शन और गोदावरी में स्नान करने से भक्त मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।
  4. उज्जैन: महाकालेश्वर और शिप्रा नदी का संगम उज्जैन, जिसे विजय नगरी भी कहा जाता है, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे शून्य डिग्री का केंद्र माना गया है। महाकालेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना और शिप्रा नदी में स्नान का विशेष महत्व है।


कुंभ मेले का सांस्कृतिक महत्व


कुंभ मेला धार्मिक उत्सव तो है ही साथ ही यह भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का परिचायक भी है। लाखों करोड़ों श्रद्धालु कुंभ में स्नान, पूजा और साधु-संतों के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं। यह मेले लोगों को धार्मिकता, भक्ति और आत्मा की शुद्धि का अवसर प्रदान करते हैं।


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कुंभ की पौराणिक कथाएं क्या हैं?

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जो पौराणिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख स्थलों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होता है।

यज्ञ में स्वाहा क्यों बोला जाता है ?

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