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शंख के बिना अधूरी है माता लक्ष्मी की पूजा

शंख के बिना अधूरी है माता लक्ष्मी की पूजा

जानिए कौन हैं मां लक्ष्मी के भाई? इनके बिना अधूरी रहती हैं प्रत्येक पूजा?


हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती तो त्रिदेवियों के रूप में पूजा जाता है। ये देवियां क्रमश: भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा जी की पत्नी है और इन्हें ऐश्वर्य, सुख और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता है। इन्हीं देवियों में से एक माता लक्ष्मी धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी हैं। ऋषि भृगु एवं माता ख्याति की पुत्री माता लक्ष्मी जी का पूजन सनातनियों की परंपरा का हिस्सा है। वहीं दिपावली त्यौहार पर माता की पूजा करने का विशेष विधान है। इसलिए जब कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है तब माता लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा आराधना जरूर होती है। माता लक्ष्मी की पूजा से धन-संपन्नता का वरदान प्राप्त होता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जिस घर में भी माता लक्ष्मी अपने चरण रखती हैं वहां कभी भी रुपए पैसों की कमी नहीं होती। लेकिन क्या आप जानते हैं मैया लक्ष्मी का एक भाई भी है जिनके बिना प्रत्येक पूजा को अधूरा माना जाता है?  जानते  हैं इस लेख में…


शंख है मां लक्ष्मी का भाई 


ऋषि भृगु एवं माता ख्याति की पुत्री माता लक्ष्मी जी का छोटा भाई शंख को माना जाता है। हमारे शास्त्रों में यह मान्यता है कि बिना शंख के माता लक्ष्मी की पूजा अधूरी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। परंतु माता लक्ष्मी अकेले अवतरित नहीं हुईं। उनके भाई का भी अवतरण उनके साथ ही हुआ था। माता लक्ष्मी और शंख दोनों समुद्र से पैदा हुए थे। इसके कारण दोनों को भाई-बहन माना जाता है। इसी वजह से माता लक्ष्मी के हाथ में हमेशा एक शंख दिखाई देता है। शंख भगवान विष्णु का प्रमुख आयुध भी है। 


शंख है बहुत विशेष 


माना जाता है कि शंख की ध्वनि आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न होती है। शास्त्रों के अनुसार शंख की उत्पत्ति शंखचूर्ण की हड्डियों से हुई है। इसलिए इसे पवित्र वस्तुओं में परम पवित्र व मंगलकारी माना गया है। 


शंख में है देवताओं का वास 


दक्षिणावर्ती शंख के शीर्ष में चन्द्र देवता, मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा, यमुना तथा सरस्वती का वास माना गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख अनेक प्रकार के रूपों में विराजमान होकर देवताओं की पूजा में निरन्तर पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अचूक साधन है। इसके पवित्र जल को तीर्थ समान माना जाता है। जहां कहीं भी शंखध्वनि होती है, वहां लक्ष्मी जी सम्यक प्रकार से विराजमान रहती हैं। जो शंख के जल से स्नान कर लेता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। जहां पर शंख रहता है वहां भगवान श्री हरि, देवी लक्ष्मी समेत निवास करते हैं। इन्ही वजहों से बिना शंख के भगवान विष्णु और अन्य देवताओं सहित लक्ष्मी जी की पूजा अधूरी मानी जाती है।


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