प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है, और साधु-संतों का आगमन शुरू हो चुका है। 13 जनवरी से कल्पवासी भी आने लगेंगे, और यह महाकुंभ 26 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान संगम किनारे करोड़ों श्रद्धालु 45 दिनों तक कल्पवास करेंगे। इस विशाल माघ मेले की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी 'वेणी माधव' के कंधों पर होती है। माघ मेले के रक्षक माने जाने वाले वेणी माधव, कल्पवास के समय मेला क्षेत्र में लगातार भ्रमण करते रहते हैं। आइए जानते हैं, वेणी माधव कौन हैं और क्यों उनका इस मेले में इतना महत्व है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघ मेले में केवल कल्पवासी ही नहीं, बल्कि देवता और दानव भी यहां स्नान के लिए आते हैं। कल्पवासी पूरे एक महीने तक गंगा के किनारे रहकर संयम का पालन करते हैं। मेला क्षेत्र के दारागंज में स्थित प्राचीन वेणी माधव मंदिर भी श्रद्धालुओं का प्रमुख स्थल है, जहां वे पूरे माह दर्शन करने के लिए आते हैं। संगम स्नान के बाद, वेणी माधव मंदिर में दर्शन करने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने भी अपने ग्रंथों में उल्लेखित किया है। वेणी माधव को माघ मेले का रक्षक भी माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वेणी माधव का संबंध माघ मेले से उतना ही पुराना है, जितना माघ मेले का इतिहास। मान्यता है कि संगम पर सृष्टि का पहला यज्ञ हुआ था, जिसमें देवता और दानव दोनों ने भाग लिया था। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से इस मेले की रक्षा करने का अनुरोध किया, और भगवान विष्णु ने इसे सुरक्षित किया। इसके बाद, वेणी माधव भगवान विष्णु के बाल रूप में यहां प्रतिष्ठित हो गए। प्रयागराज में द्वादश माधव भी विराजमान हैं, और साल में एक बार द्वादश माधव यात्रा निकाली जाती है। माघ मेले की शुरुआत से पहले, वेणी माधव को नगर भ्रमण कराया जाता है।
वेणी माधव माघ मेले के पूरे समय में भ्रमण करते रहें और माघ मेले की रक्षा भी करते रहें। मान्यता है कि कल्पवास तभी पूर्ण माना जाता है जब इस दौरान वेणी माधव के दर्शन किए जाएं। दारागंज में शालिग्राम शिला से निर्मित वेणी माधव की प्रतिमा के साथ त्रिवेणी की प्रतिमा भी स्थित है। यह विश्वास है कि संगम स्नान के बाद भगवान वेणी माधव के दर्शन करने से पूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है, जैसा कि पुराणों और रामचरितमानस में वर्णित है। इस प्राचीन मंदिर के प्रांगण में चैतन्य महाप्रभु जी वेणी माधव जी के दर्शन के लिए संकीर्तन और नृत्य किया करते थे।
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में विशेष तौर पर मनाया जाने वाला छठ पर्व कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत की पहली शर्त 36 घंटे लंबा निर्जला उपवास रखना होती है।
छठ पूजा बिहार और इसके आस पास के क्षेत्र का प्रमुख पर्व है और काफी धूमधाम से इसे मनाया जाता है। इसमें सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मईया की आराधना की जाती है।
छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू महापर्व है। जिसे मुख्य रूप से बिहार, झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
छठ पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसे कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। छठ महापर्व का देशभर में प्रचलन बढ़ रहा है।