Mahakumbh 2025: नागा संन्यासी करते हैं 21 श्रृंगार, संगम की रेती पर भस्म भभूत लेपेटे शिव रूप में दे रहे दर्शन
महाकुंभ का पहला अमृत स्नान पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र में आरंभ हो चुका है। प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी के पूजन के उपरांत नागा साधु शिव के स्वरूप में खुद को सजा चुके हैं। नख से शिख तक भभूत, जटाजूट, आंखों में सूरमा, हाथों में चिमटा, होठों पर सांब सदाशिव का नाम और समस्त शरीर में भभूत लपेटे, दिगंबर, हाथ में डमरू, त्रिशूल और कमंडल के साथ ही अवधूत की धुन में झूमते हुए नागा साधु त्रिवेणी के तट स्नान कर रहे हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में नागा साधुओं के 21 श्रृंगार के बारे में विस्तार से जानते हैं।
शरीर, मन और वचन का करते हैं श्रृंगार
हिंदू धर्म में सुहागिन 16 श्रृंगार करती हैं। जबकि, नागा साधु अमृत स्नान के लिए 21 श्रृंगार करते हैं। इसमें शरीर के साथ ही मन और वचन का भी श्रृंगार शामिल होता है। इसके साथ ही सर्वमंगल की कामना भी की जाती है। शरीर में भस्म लगाने के बाद चंदन, पांव में चांदी के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटना, रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में चिमटा, डमरू, कमंडल, माथे पर तिलक, आंखों में सूरमा, लंगोट, हाथों व पैरों में कड़ा और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करने के बाद नागा साधु तैयार होते हैं।
ऊपर से ज्यादा अंदर का श्रृंगार महत्वपूर्ण
इस श्रृंगार का मतलब दिखावा करना नहीं होता है। नागा साधु इसे अंदर तक महसूस भी करते हैं। महादेव को प्रसन्न करने के लिए 21 श्रृंगार के साथ ही नागा साधु संगम में अमृत स्नान की डुबकी लगाते हैं। महाकुंभ के मेले में आसन लगाए नागा साधु बाबा भोले की साधना करते हैं। बता दें कि नागा बनने के बाद साधना और तपस्या बेहद जरूरी होती है। स्नान से पहले नागा साधु खुद को सजाते हैं। इसमें तन के साथ ही मन को भी सजाना जरूरी होता है।
इष्टदेव महादेव से जुड़ा है 21 शृंगार
सिर से नख तक श्रृंगार के साथ ही मन का भी श्रृंगार भी जरूरी होता है। नागा साधु जो भी शरीर पर श्रृंगार करते हैं वह उनके इष्टदेव महादेव से जुड़ा हुआ है, जो इस प्रकार हैं।
- भभूत:- क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास कराती है भभूत। नागा साधु भभूत को सबसे पहले अपने शरीर पर मलते हैं।
- चंदन:- हलाहल का पान करने वाले भगवान शिव को चंदन अर्पित किया जाता है। नागा साधु भी हाथ, माथे और गले में चंदन का लेप लगाते हैं।
- रुद्राक्ष:- रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। नागा साधु सिर, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
- तिलक:- माथे पर लंबा तिलक भक्ति का प्रतीक होता है।
- सूरमा:- नागा साधु आंखों का श्रृंगार सूरमा से करते हैं।
- कड़ा:- नागा साधु हाथों व पैरों में कड़ा पीतल, तांबें, सोने या चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव भी पैरों में कड़ा धारण करते थे।
- चिमटा:- चिमटा एक तरह से नागा साधुओं का अस्त्र भी माना जाता है। नागा साधु हमेशा हाथ में चिमटा रखते हैं।
- डमरू:- भगवान शिव का सबसे प्रिय वाद्य डमरू भी नागा साधुओं के श्रृंगार का हिस्सा है।
- कमंडल:- जल लेकर चलने के लिए नागा साधु अपने साथ कमंडल भी धारण करते हैं।
- जटा:- नागा साधुओं की जटाएं भी एकदम अनोखी होती हैं। प्राकृतिक तरीके से गुथी हुई जटाओं को पांच बार लपेटकर पंचकेश श्रृंगार किया जाता है।
- लंगोट:- भगवा रंग की लंगोट को नागा साधु धारण करते हैं।
- अंगूठी:- नागा साधु अपने हाथों में कई प्रकार की अंगूठियां भी पहनते हैं। हर एक अंगूठी किसी ना किसी बात का प्रतीक माना जाता है।
- रोली:- नागा साधु अपने माथे पर भभूत के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं।
- कुंडल:- नागा साधु कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं।
- माला:- नागा साधुओं की कमर में माला भी उनके श्रृंगार का हिस्सा होती है।
- प्रवचन:- बेहतर प्रवचन व आशीर्वचन देना भी श्रृंगार का हिस्सा होता है।
- मधुर वाणी:- मधुर वाणी भी नागा साधुओं के श्रृंगार का हिस्सा है।
- साधना:- सर्वमंगल की कामना से नागा साधु जो साधना करते हैं, वह सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार है।
- सेवा:- नागा साधुओं में सेवा का भाव भी एक श्रृंगारहोता है जो बेहद जरूरी है।
पुलिस कर रही भीड़ का नियंत्रण
इनके शिविरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है। स्थिति यह है कि पुलिस को हस्तक्षेप कर लोगों को नियंत्रित करना पड़ रहा है। हर कोई नागा संन्यासियों का चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना चाहता है।