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शारदीय नवरात्र 2025 नवपत्रिका पूजा

शारदीय नवरात्र 2025 नवपत्रिका पूजा

Navpatrika Puja 2025 Date: शारदीय नवरात्र में किस दिन की जाएगी नवपत्रिका पूजा? जानें पूजन विधि और महत्व

शारदीय नवरात्रि का हर दिन देवी दुर्गा की साधना और आराधना के लिए खास महत्व रखता है। नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर नवपत्रिका पूजा की परंपरा है, जिसे पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। इसे कल्लाबोऊ पूजा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन की पूजा से न केवल मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं, बल्कि अच्छी फसल और समृद्धि का भी आशीर्वाद मिलता है।

नवपत्रिका पूजा 2025 की तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 28 सितंबर 2025 को दोपहर 2 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ होकर 29 सितंबर 2025 को शाम 4 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के आधार पर सप्तमी 29 सितंबर, सोमवार को मानी जाएगी और इसी दिन नवपत्रिका पूजा संपन्न होगी।

  • सूर्योदय: सुबह 05:49 बजे
  • ब्रह्म मुहूर्त: 04:37 से 05:25 बजे तक
  • अभिजीत मुहूर्त: 11:47 से 12:35 बजे तक
  • विजय मुहूर्त: 02:11 से 02:58 बजे तक
  • गोधूलि मुहूर्त: 06:09 से 06:33 बजे तक

नवपत्रिका पूजा क्या है?

‘नवपत्रिका’ का अर्थ है नौ प्रकार के पत्तों का समूह। इन पत्तों को मां दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। पूजा में प्रयुक्त नौ पत्ते हैं – केला, कच्वी, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बेल और जौ। इन्हें एकत्र कर गुच्छा बनाया जाता है और पवित्र जल में स्नान कराया जाता है। इस स्नान को महास्नान कहा जाता है।

नवपत्रिका पूजा विधि

महासप्तमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर भक्त व्रत का संकल्प लेते हैं। इसके बाद सभी नौ पत्तों को एक साथ बांधकर केले के तने से जोड़ दिया जाता है और लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी से सजाया जाता है। फिर नवपत्रिका को मां दुर्गा की प्रतिमा के समीप स्थापित कर षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है।

  • मां को जल, फल, फूल और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
  • चंदन, कुमकुम और पुष्पों से नवपत्रिका का अलंकरण किया जाता है।
  • इसके बाद मां दुर्गा की महाआरती की जाती है।
  • अंत में प्रसाद का वितरण कर भक्तजन मां की कृपा प्राप्त करते हैं।

नवपत्रिका पूजा का महत्व

नवपत्रिका पूजा का संबंध सीधे कृषि और उर्वरता से माना जाता है। प्राचीन मान्यता है कि नवरात्रि में नवपत्रिका की पूजा करने से अच्छी उपज मिलती है और खेत-खलिहान अन्न से भर जाते हैं। यही कारण है कि किसान विशेष रूप से इस पूजा में भाग लेते हैं। धार्मिक दृष्टि से यह पूजा देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना का प्रतीक है।

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