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शिवलिंग की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?

शिवलिंग की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?

Shivling Utpatti Katha: कैसे हुई थी शिवलिंग की उत्पत्ति और क्यों होती है इसकी पूजा, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक मान्यता

Shivling Utpatti Katha: भगवान शिव को अनेक नामों से जाना जाता है और उन्हें अनादि, अनंत तथा अजन्मा कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था, तब भी महादेव शिवलिंग रूप में विद्यमान थे। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? इस बारे में विभिन्न पुराणों में अलग-अलग कथाएं मिलती हैं। पौराणिक ग्रंथों में शिवलिंग के प्राकट्य की कई कहानियां प्रचलित हैं, जो शिव की महिमा को प्रकट करती हैं। लेकिन यदि हम भागवत पुराण की बात करें, तो उसमें शिवलिंग की उत्पत्ति को लेकर एक विशिष्ट कथा वर्णित है। यह कथा न केवल रोचक है, बल्कि शिव के आदि स्वरूप को समझने में भी सहायक है। ऐसे में आइए जानते हैं भागवत पुराण में वर्णित वह कथा, जो शिवलिंग के उद्भव और उसकी पूजा की परंपरा की शुरुआत से जुड़ी हुई है।

शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा 

भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, जब सृष्टि की रचना हुई थी, तब भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच यह बहस छिड़ गई कि दोनों में से कौन श्रेष्ठ है। दोनों ही स्वयं को सबसे शक्तिशाली सिद्ध करने के लिए आमने-सामने आ गए। इसी बीच आकाश से अचानक एक दिव्य और विशाल शिवलिंग उपस्थित हुआ। तभी आकाशवाणी हुई कि जो भी इस दिव्य चमकीले पत्थर का अंतिम छोर तलाश लेगा, वही सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा। भगवान विष्णु नीचे की ओर गए और ब्रह्माजी ऊपर की ओर चले। हजारों वर्षों की खोज के बाद भी दोनों को इसका कोई छोर नहीं मिला। 

विष्णु जी ने हार स्वीकार कर ली, लेकिन ब्रह्मा जी ने अहंकार में आकर झूठ का सहारा लिया और एक केतकी पुष्प को साक्षी बनाकर कहा कि उन्होंने इसका अंत देख लिया है। तभी महादेव स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा के झूठ का भंडाफोड़ किया और कहा कि यह दिव्य लिंग मेरा ही स्वरूप है। मैं ही शिवलिंग हूं। मेरा कोई आरंभ है न अंत, मैं अनंत हूं। यही कारण है कि शिवलिंग को सृष्टि की आदि शक्ति और अनंत ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है, और तब से उसकी पूजा की परंपरा चली आ रही है।

शिवलिंग का अर्थ क्या है?

शिवलिंग को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक और एक दिव्य ज्योति स्वरूप माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निर्माण मन, आत्मा, बुद्धि, चित्त, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी जैसे नौ तत्वों से हुआ है। यह सृष्टि के मूल आधार और शिव की निराकार उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसा कहा जाता है कि शिवलिंग ही इस सृष्टि में सबसे पहले प्रकट हुआ था। शिवलिंग की पूजा करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। जब कोई श्रद्धा और भक्ति भाव से शिवलिंग का पूजन करता है, तो भगवान शिव प्रसन्न होकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

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