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नवग्रह मंडल के स्वामी सूर्य के बारे में जानें, Navagrah Mandal ke svaamee sooryaay ke baare mein jaanen

नवग्रह मंडल के स्वामी सूर्य के बारे में जानें, Navagrah Mandal ke svaamee sooryaay ke baare mein jaanen

सूर्यदेव को नवग्रह मंडल का स्वामी या राजा माना जाता है, खगोलीय दृष्टि से देखा जाए तो यह सौर मंडल में केंद्र में स्थित है और पृथ्वी के काफी समीप है सूर्य की ऊर्जा के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संचालित होता है व चन्द्रमा जैसे ग्रह भी इन्हीं से प्रकाश प्राप्त करते हैं।  ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी सूर्य अत्यंत महत्वपूर्ण है और इन्हे आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य का शाब्दिक अर्थ है सर्व प्रेरक, सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक और सर्व कल्याणकारी। ऋग्वेद के अनुसार देवताओं में सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है, यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। वहीं ब्रह्मवैर्वत पुराण में सूर्य को परमात्मा स्वरूप बताया गया है।


मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब समस्त जगत प्रकाश रहित था तब ब्रह्मा के मुख से 'ऊँ' प्रकट हुआ, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप माना गया और रौशनी प्रकट हुई। इसके बाद भूः भुवः तथा स्वः शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द 'ऊँ' में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के आदि अर्थात प्रारम्भ में उत्पन्न होने के कारण ही इनका नाम आदित्य हुआ। एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्मा जी के प्रपौत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्यायों से हुआ जिनमे से अदिति, दिति, विनता और कद्रू का प्रमुख रूप से उल्लेख है। अदिति के गर्भ से सूर्यदेव का जन्म होने के कारण भी इन्हें आदित्य नाम दिया गया। भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में भी सूर्य से संबंधित अनेक कथाओं का वर्णन मिलता है।


ज्योतिष के अनुसार सूर्यदेव को कालपुरुष की कुंडली में पांचवे भाव का स्वामी माना गया है जो संतान, शिक्षा और प्रेम का कारक भाव है। सूर्यदेव सिंह राशि के स्वामी हैं तथा कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों पर इनका स्वामित्व है।  मेष राशि में सूर्यदेव उच्च तथा तुला राशि में नीच के माने जाते हैं, ये चंद्रमा, मंगल और गुरु को अपना मित्र, बुध से सम तथा शुक्र एवं शनि की शत्रु मानते हैं अतः कुंडली में मित्र या उच्च राशि में होने पर अच्छे तथा शत्रु या नीच राशि में होने पर ख़राब परिणाम प्राप्त होते हैं। सूर्य ग्रहों के राजा हैं इसलिए इन्हे उग्र, तेजस्वी  माना गया हैं, ये पिता के कारक ग्रह हैं।  इन्हे राजकीय मामलों के लिए सर्वोत्तम माना जाता हैं और जिनकी कुंडली में सूर्यदेव अच्छी अवस्था में होते हैं ऐसे लोग अधिकारी, सरकार चलाने वाले अथवा राजा के तुल्य होते हैं। 


सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए कुछ सरल उपाय -


१) पिता का आशीवार्द लें तथा कभी भूलकर भी उनका अपमान न करें। 

२) सूर्य को प्रातः काल ताम्बे के लौटे में जल, पुष्प, अक्षत लेकर अर्घ्य दें। 

३) कभी रिश्वत न लें और न ही दें, टैक्स चोरी से बचें। 

४) कोई भी अनैतिक कार्य जैसे की सट्टा, मदिरापान, जुआँ इत्यादि से बचे। 

५) आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें। 


नीचे दिए हुए कुछ मंत्र का जाप से भी सूर्यदेव को प्रसन्न किया जा सकता है -


१) ॐ सूर्याय नम:

२) ॐ घृणि सूर्याय नम:

३) ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम:

४) ॐ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्। 

५) ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:। विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।


ऊपर दिए गए सभी उपाय और मंत्र ऐसे तो दैनिक चर्या में उपयोग किये जा सकते हैं फिर भी किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह लेकर ही अपनी कुंडली के शुभाशुभ अनुसार ही इनका प्रयोग करें। ये अवश्य ध्यान रखें कि सूर्यदेव ग्रहों के राजा हैं इसलिए सूर्य प्रधान व्यक्ति को अहं और स्वार्थ न पालकर राजा की तरह सबका ध्यान रखना चाहिए तभी जीवन में सफलता मिलती हैं।


जय भगवान भास्कर, जय हो सूर्यदेव की

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