सनातन धर्म के सभी देवी-देवताओं का अपना एक विशेष वाहन है। जो सदैव उनके साथ होता है। उनके दिव्य स्वरूप में उस वाहन का बड़ा महत्व है। सभी देवताओं के वाहन की अपनी कथा और विशेषता है। यह सब दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण है। फिर चाहे माता रानी का सिंह हो, भोलेनाथ का नंदी हो, गणेश जी का मूषक हो, कार्तिकेय का मोर हो, इंद्र का ऐरावत हो या माता सरस्वती का हंस, सभी शक्तिवान और सामर्थ्यवान है। भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी भी इसी क्रम में आते हैं।
आज भक्त वत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं श्री हरि विष्णु के वाहन गरुड़ जी की कहानी…
ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की पुत्री दो पुत्रियों का नाम विनता और कद्रु था, जिनका विवाह कश्यप मुनि के साथ हुआ था। कश्यप ऋषि ने अपनी दो पत्नियों विनता और कद्रु के संतानोत्पत्ति के लिए यज्ञ प्रारंभ किया। कश्यप ऋषि ने कद्रू से पूछा कि उन्हें और कितने पुत्र चाहिए? तो उसने बहुत सारे पुत्र होने की इच्छा जताई। वहीं ऋषि कश्यप की दूसरी पत्नी विनता ने 2 पुत्रों की कामना की। गर्भवती होने के बाद कद्रू ने हजार अंडों से सांपों को जन्म दिया था। वहीं विनिता ने दो अंडे दिए। एक अंडे से अरुण और दूसरे से गरुड़ जन्में। अरुण सूर्यदेव के वाहन बन गए, वहीं गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन बनें।
कश्यप मुनि की पत्नी विनता और कद्रू जरुर दोनों बहनों थी लेकिन उनमें बिल्कुल भी नहीं बनती थी। एक बार कद्रू ने विनता को खेल में हराकर उसे अपनी दासी बना लिया। कद्रू कि यह शर्त थी उनके सर्प पुत्रों के लिए अमृत लाकर देने पर ही वो गरुड़ जी की मां को छोड़ेगी।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार स्वर्ग में देवताओं ने युद्ध में असुरों से अमृत कलश छिन लिया था। उस कलश को देवताओं से गरुड़ ने छीन लिया था। इसके जरिए वे अपनी मां को मुक्त करवाना चाहते थे जो सांपों की माँ कद्रू की कैद में थी। इसके लिए गरुड़ स्वर्ग अमृत कलश लेकर उड़ गए। और कद्रू के पास पहुंच गए। अपने वचन अनुसार कद्रू ने गरुड़ जी की मां को छोड़ दिया। लेकिन रात में मौका पाकर इंद्र ने अमृत कलश फिर अपने अधिकार में ले लिया।
दूसरे दिन कलश को न पाकर नागलोक में सभी दुखी हो गए। फिर नागों ने उस कुशा को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था। कुशा से उनकी जीभ के दो हिस्से हो गए। नाराज सांपों ने गरुड़ पर हमला कर दिया। तभी से सांपों और गरुड़ में दुश्मनी हो गई। लेकिन भगवान विष्णु गरुड़ की मातृभक्ति से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने गरुड़ को अपना वाहन बना लिया।
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