Chhath Puja 2025: छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र पर्वों में से एक है, जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। यह पर्व प्रकृति, आत्मसंयम और आस्था का संगम है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में व्रती बिना जल और अन्न ग्रहण किए पूर्ण निष्ठा के साथ सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। छठ का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना, जो जीवन के चक्र ‘शुरुआत और अंत’ दोनों का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं, छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व।
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा अत्यंत धार्मिक और गहन मानी जाती है। यह परंपरा केवल पूजा का एक हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन का प्रतीक है। जिस तरह सूर्य डूबता और फिर उगता है, उसी तरह मानव जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसलिए डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह दर्शाता है कि जीवन के अंत या कठिन समय को भी सम्मानपूर्वक स्वीकार करना चाहिए। वहीं उगते सूर्य को अर्घ्य देना नई शुरुआत और आशा का प्रतीक है।
वैदिक परंपरा में सूर्य को जीवन, ऊर्जा और ज्ञान का स्रोत माना गया है। ऋग्वेद और आदित्य उपनिषद में सूर्य की उपासना को अत्यंत फलदायी बताया गया है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा यह सिखाती है कि हमें हर दिन के अंत में कृतज्ञ होना चाहिए, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देना नई ऊर्जा और अवसरों का स्वागत करना है। ऐसा माना जाता है कि इस तरह से सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन से नकारात्मकता दूर होती है।
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य की किरणों में मौजूद पराबैंगनी किरणें शरीर में विटामिन-डी का निर्माण करती हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वहीं, जल में खड़े होकर अर्घ्य देने से शरीर की ऊर्जा संतुलित होती है और मानसिक शांति मिलती है।
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